कांग्रेस से ‘बेज्जती’ झेलने के बाद भी क्यों मजबूर हैं पप्पू यादव? जानिए उनके पास क्या हैं विकल्प

चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: पटना में महागठबंधन के वोटर लिस्ट सत्यापन के विरोध मार्च में जो हुआ, उसने पप्पू यादव की सियासी हैसियत पर कई सवाल खड़े कर दिए। कांग्रेस नेता राहुल गांधी और आरजेडी नेता तेजस्वी यादव की गाड़ियों में पप्पू यादव को चढ़ने तक नहीं दिया गया। यह घटना कैमरे में कैद हो गई और उसका वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुआ।
इस पूरे घटनाक्रम ने पप्पू यादव को कहीं न कहीं बेआबरू कर दिया। हालांकि पप्पू यादव ने इसे अपमान मानने से इंकार किया और कहा, “सुकरात को भी ज़हर दिया गया था, शिव ने भी विष पिया था। राहुल गांधी मेरे नेता हैं, उनके लिए सम्मान है।”
लेकिन सवाल यह है कि जब इतना बड़ा ‘सियासी अपमान’ हो गया, तो पप्पू यादव आखिर कांग्रेस में क्यों टिके हुए हैं? क्या उनके पास कोई विकल्प नहीं बचा? आइए जानते हैं कि क्या हैं वो मजबूरियां, जिनकी वजह से पप्पू यादव ‘विष पीकर भी शिव’ बने हुए हैं:
कांग्रेस से बाहर निकलने का कोई साफ विकल्प नहीं
बिहार की मौजूदा राजनीति महागठबंधन बनाम एनडीए के ध्रुवीकरण पर केंद्रित है। ऐसे में एक तीसरे विकल्प के तौर पर पप्पू यादव की राजनीतिक जमीन संकुचित हो गई है। जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर वह खुद को मुख्यधारा में लाने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन साथ नहीं मिल रहा।
भाजपा से नजदीकी बनाना नामुमकिन
पप्पू यादव के पास बीजेपी के साथ जाने का विकल्प भी नहीं है। अगर वह ऐसा करते हैं, तो उनका मुस्लिम वोट बैंक पूरी तरह टूट जाएगा। इससे उनकी पूरी सियासी पहचान खतरे में पड़ सकती है। ऐसे में यह रास्ता वो चाहकर भी नहीं अपना सकते।
आरजेडी के दरवाज़े भी बंद
आरजेडी और पप्पू यादव के बीच सियासी और निजी रिश्तों में खटास किसी से छिपी नहीं है। लालू यादव और पप्पू यादव के संबंध कभी मधुर नहीं रहे, और अब तो तेजस्वी यादव का कद पार्टी में सर्वोच्च है। ऐसे में तेजस्वी के आगे कोई भी ताकतवर चेहरा खड़ा करने की संभावना लालू कभी नहीं रखेंगे।
प्रशांत किशोर का भी रास्ता बंद
कुछ समय पहले तक लग रहा था कि पप्पू यादव प्रशांत किशोर की ‘जन सुराज’ यात्रा में शामिल हो सकते हैं, लेकिन अब वह दरवाज़ा भी बंद हो गया है। वजह यह है कि पूर्णिया से बीजेपी के पूर्व सांसद उदय सिंह को जन सुराज पार्टी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बना दिया गया है। ऐसे में एक ही जिले से दो पप्पू—राजनीति में साथ नहीं आ सकते।
स्वतंत्र राजनीति की ओर वापसी?
पप्पू यादव ने पहला चुनाव निर्दलीय लड़ा था और आज भी, इतने साल बाद, वह उसी स्थिति में पहुंच गए हैं। जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय हो चुका है, लेकिन जमीनी समर्थन और गठबंधन में सम्मान दोनों की कमी साफ झलकती है। अब उनके पास या तो स्वतंत्र राजनीति करने का रास्ता है, या फिर अपमान सहते हुए कांग्रेस के साथ बने रहने का।