सुदर्शन न्यूज़ चैनल के कार्यक्रम ‘बिंदास बोल’ पर सुप्रीम कोर्ट ने क्यों लगाई रोक, जानें

Big decision of Supreme Court: Employing "lower caste" prisoners in jails for cleaning and manual scavenging work declared unconstitutionalशिवानी रज़वारिया

सुदर्शन टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रम “बिंदास बोल’ को अगर आप देखते हैं तो आप इससे परिचित होंगे कि कुछ समय से बिंदास बोल का ‘यूपीएससी जिहाद’ नामक एपिसोड सुप्रीम कॉर्ट तक पहुंच गया था जिस पर कोर्ट में सुनवाई भी शुरू हो चुकी है।

सबसे पहले बिंदास बोल के यूपीएससी जिहाद वाले एपिसोड का 25 अगस्त को एक टीजर अपलोड किया गया था जिसमें चैनल के संपादक ने यह दावा किया था कि 28 अगस्त को प्रसारित होने वाले उनके कार्यक्रम बिंदास बोल में कार्यपालिका के सबसे बड़े पदों पर मुस्लिम घुसपैठ का पर्दाफाश किया जाएगा.

जैसे ही टीजर सामने आया सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और आलोचना का शिकार होने लगा। इसी के चलते लोगों की प्रतिक्रियाएं आने लगी और मामला कोर्ट तक पहुंच गया। सोशल मीडिया पर आलोचनाओं की बाढ़ जैसे आ गयी. भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारियों के संगठन ने इसकी निंदा करते हुए इसे गैस जिम्मेदाराना पत्रकारिता बताया.

वही पुलिस सुधार को लेकर काम करने वाले एक स्वतंत्र थिंक टैंक इंडियन पुलिस फाउंडेशन ने भी इसे अल्पसंख्यक उम्मीदवारों के आईएएस और आईपीएस बनने के बारे में एक हेट स्टोरी करार देते हुए उम्मीद जताई थी कि ब्रॉडकास्टिंग स्टैंडर्ड अथॉरिटी यूपी पुलिस और संबंध सरकारी संस्थाएं इसके विरूद्ध सख्त कार्यवाही करेंगे। आईएएस और आईपीएस अधिकारियों ने भी इस कार्यक्रम के टीजर की आलोचना की।

जामिया मिलिया इस्लामिया यूनिवर्सिटी के छात्रों ने दिल्ली हाईकोर्ट में इस प्रोग्राम के खिलाफ एक याचिका दायर की थी. याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली हाई कोर्ट के न्यायाधीश नवीन चावला ने इस कार्यक्रम के प्रसारण के खिलाफ स्टे आर्डर जारी किया था। जिसकी सुनवाई पर तीन जजों की खंडपीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा था कि इस चैनल की ओर से किया जा रहें दावें घातक हैं और इनसे यूपीएससी की परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर लांछन लग रहा है और इससे देश का नुक़सान होता है।

न्यायधीश चंद्रचूड ने कहा था, “एक एंकर आकर कहता है की विशेष समुदाय यूपीएससी में घुसपैठ कर रहा है क्या इससे ज्यादा घातक कोई बात हो सकती है ऐसे आरोपों से देश की स्थिरता पर असर पड़ता है और यूपीएससी परीक्षाओं की विश्वसनीयता पर लगता है.” “हर व्यक्ति जो यूपीएससी के लिए आवेदन करता है वह समान चयन प्रक्रिया से गुजर कर आता है और यह इशारा करना कि एक समुदाय सिविल सेवाओं में घुसपैठ करने की कोशिश कर रहा है कि देश को बड़ा नुकसान पहुंचाता है.”

दरअसल, सुदर्शन न्यूज़ पर आने वाले इस प्रोग्राम में एक विशेष समुदाय पर नौकरशाही में बढ़ती घुसपैठ के पीछे षड्यंत्र का दावा किया गया था। जब यह मामला दिल्ली हाईकोर्ट में पहुंचा इस कार्यक्रम पर 28 अगस्त को हाई कोर्ट द्वारा रोक लगा दी गई थी। दिल्ली हाई कोर्ट से स्टे आर्डर आने के बाद 10 सितंबर को केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने चैनल को यह कार्यक्रम प्रसारित करने की इजाजत दे दी.

हाई कोर्ट में सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने अपने इस फैसले पर सफाई देते हुए कहा, सुदर्शन न्यूज़ के इस प्रोग्राम के खिलाफ कई शिकायतें मिली हैं। मंत्रालय ने न्यूज़ चैनल को नोटिस जारी कर इस पर जवाब मांगा है। 10 सितंबर को मंत्रालय द्वारा आदेश में लिखा गया कि सुदर्शन चैनल के प्रधान संपादक सुरेश चव्हाणके ने 31 अगस्त को आधिकारिक रूप से अपना जवाब दे दिया था।जिसके बाद मंत्रालय ने निर्णय लिया कि अगर कार्यक्रम के कंटेंट से किसी तरह के नियम कानून का उल्लंघन होता है तो चैनल के खिलाफ कार्यवाही की जाएगी। मंत्रालय ने यह भी कहा कि कार्यक्रम प्रसारित होने से पहले कार्यक्रम की स्क्रिप्ट नहीं मांगी जा सकती और ना ही उसके प्रसारण पर रोक लगाई जा सकती है।

जिसके जवाब में सुदर्शन चैनल ने दावा किया कि उन्होंने अपने कार्यक्रम में किसी भी नियम का उल्लंघन नहीं किया है और कहा कि ‘इस तरह की रोक टीवी प्रोग्रामों के ऊपर प्रसारण से पहले ही सेंसरशिप लागू करने जैसी है.’ मंत्रालय ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि नियमों के अनुसार टीवी कार्यक्रमों की प्री-सेंसरशिप नहीं की जाती। प्री-सेंसरशिप की जरूरत फिल्म, फिल्मी गाने, फिल्मों के प्रोमो, ट्रेलर आदि के लिए होती है जिन्हे सीबीएफसी से सर्टिफिकेट लेना होता है। मंत्रालय ने सुदर्शन चैनल को यह हिदायत दी थी कि वह इस बात का ध्यान रखें कि किसी भी तरह से प्रोग्राम कोड का उल्लंघन ना हो, अन्यथा उसके खिलाफ कानूनी कार्यवाही हो सकती है.

 

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