महिला दिवस: कोरोना के दौरान मां दुर्गा के 9 रूपों को चरितार्थ करती महिलाएं
दिव्या तिवारी
कोरोना के श्राप ने सभी की जिंदगी बदल कर रख दी, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाएं हुईं। हर वर्ग, हर तबके की महिलाओं ने कई तरह की चुनौतियों का सामना किया। पुरूष प्रधान देश में, सुपर हीरोज की सोच वाले समाज में खुद को और निखारा, बुलंद किया और बता दिया कि हम हैं असली सुपर वुमन, जिनके कारण भारत विश्व पटल पर बन रहा है ‘सुपर पावर’।
देश को कोरोना का दंश झेलते हुए एक साल से ज्यादा हो गया है। इस एक साल में देश ने ना जाने क्या क्या देखा, लगभग सभी की जिंदगी बदल गई। लेकिन एक तबका जिसके जीवन को महामारी ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया वो हैं महिलाएं। हिंदू मान्यताओं में महिलाओं को देवी का रूप माना जाता है। नवदुर्गा में मां के 9 रूपों को हम पूजते हैं। कोरोना के दौरान महिलाओं ने भी देवी के नौ रूप धारण कर अपने घर, समाज और देश के लिए काम किया। उन्हें हर विपदा से बचाया, जैसे मां दुर्गा बचाती हैं। आज महिला दिवस पर हम उन महिलाओं को नमन करते हैं।
नवरात्री का पहला दिन होता है मां शैलपुत्री का। कहते हैं मां शैलपुत्री की आराधना करने से धन धान्य से परिपूर्ण रहते हैं। यही स्वरूप लेकर कोरोना में महिलाओं ने कम संसाधनों में भी घर के सदस्यों को धान्य की कमी महसूस नही होने दी। यकीन मानिए ये आसान नहीं था। कम धन और कम धान्य में भी भूख और स्वाद की पूर्ती करना मां शैलपुत्री का ही आशीर्वाद है।
नवरात्री का दूसरा दिन है मां ब्रह्माचारिणी का, जिनकी उपासना से त्याग और संयम का भाव बढ़ता है। जैसे कोरोना के दौरान हर स्त्री ने आराम को, सुख सुविधाओं को त्याग दिया। खुद भी संयम का अदम्य उदाहरण बनीं और परिवार को भी संयम की सीख दी। महिलाओं ने ही सिखाया कि हर परिस्थिति में संयम से काम लेना कितना जरूरी है।
नवरात्री का तीसरा दिन मां चंद्रघंटा के नाम है। मां के इस रूप की पूजा से पापों में कमी और वीरता के गुणों में वृद्धि होती है। साल 2020 में अचानक आए कोरोना रूपी पाप को महिलाओं ने अपने साहस और विवेक से हराया। मां चंद्रघंटा के आशिर्वाद से महिलाओं ने सिर्फ शारीरिक ही नहीं मानसिक रोग को भी हराया। कोरोना के समय लगभग हर घर में मानसिक दबाव रोगों मे बदल रहे थे। ऐसे में महिलाओं ने सलाहकार बनकर उन्हें अवसाद से भी बचाया। घर की बड़ी बुज़ुर्ग महिला ने घरेलु नुस्खों का ज्ञान और महत्व लोगों को याद दिलाया।
मां का चौथा रूप है कुष्माण्डा, जो रोगों को दूर करती हैं। मां कुष्माण्डा का रूप धर देश की डॉक्टरों ने, नर्सो ने, सारे मेडिकल स्टाफ ने ना जाने कितने मरीज़ो के रोग दूर किए, उनकी जान बचाई। हफ्तों, महीनों खुद घर नहीं गईं और देश की सेवा की। हर उस महिला और उनके परिवार को नमन। उन्हें भी जिन्होंने इस युद्ध में खुद की जान तक लुटा दी। स्वास्थ्य सुविधाओं से जुड़ी हर उस महिला को हमारा नमन।
पांचवा रूप है मां स्कंदमाता। मां का ये रूप भक्तों की हर मनोकामना पूरी करता है। इस समय घर की महिला ने भी परिवार की हर इच्छा को पूरा किया। बच्चों की टीचर से लेकर घर की वित्त मंत्री तक और रसोइए (शेफ) से लेकर टेक्निकल एक्सपर्ट तक बन गईं। वर्क फ्रॉम होम करना हो या ऑन लाइन क्लास महिला ने हर नया काम सीखा और हर जरूरतों को पूरा किया।
छठवां दिन समर्पित है मां कात्यायनी को जो फलदायिनी होती हैं। परेशान भक्तों को उनके परिश्रम का फल देती हैं। उसी रूप को चरितार्थ किया हमारी देश की उन महिलाओं ने जो कोरोना वैक्सीन और दवाईयों की खोज कर रहीं थीं। हर उस महिला डॉक्टर और साइंटिस्ट को नमन जिन्होंने देशवासियों की उम्मीदों को वैक्सीन रूपी फल दिया और देश ही नहीं विदेशों में भी नाम रौशन किया।
नवरात्री का सांतवा दिन है मां कालरात्रि का याने मां का वो रौद्र रूप जिससे पूरी धरती कांपती है। जरूरत पड़ने पर महिलाओं को मां कालरात्रि का रूप लेकर दुष्टों का नाश करना पड़ता है। कोरोना में भी देश के लिए दुश्मन बनते जा रहे लोगों का नाश करने खड़ी थीं वो महिलाएं जो पुलिस और बीएसएफ जैसे विभाग में ड्यूटी कर रही थीं। उन्होंने बता दिया कि वो जान खतरे में डालकर भी देश के लिए अपना धर्म निभा सकती हैं, तो ज़रूरत पड़ने पर मां कालरात्रि की तरह रौद्र रूप भी दिखा सकती हैं।
नवरात्री में आंठवा दिन होता है मां महागौरी का। मां इस रूप में आकर सुख समृद्धी में वृद्धी करती हैं। ठीक इसी तरह उन महिलाओं को नमन जिन्होंने कोरोना काल में बढ़ते आर्थिक बोझ को कम करने के लिए खुद भी बीड़ा उठाया। ताकि परिवार में सुख समृद्धी वापस ला सके। इसके लिए महिलाओं ने नए नए काम शुरू किए, घर से ही व्यापार भी किया, नौकरी की और घर में समृद्धी वापस लाईं। कंधे से कंधा मिलाकर घर के पुरूषों का बोझ कम किया। घर की हर उस महागौरी को प्रणाम।
नवरात्री का आखरी दिन होता है मां सिद्धदात्री का मतलब सभी तरह की सिद्धियों को देने वाली मां। हर महिला ने घर को, परिवार को और देश को हर संभव सिद्धि, सफलता दी। कोरोना के श्राप ने सभी की जिंदगी बदल कर रख दी, लेकिन सबसे ज्यादा प्रभावित महिलाएं हुईं। हर वर्ग, हर तबके की महिलाओं ने कई तरह की चुनौतियों का सामना किया। पुरूष प्रधान देश में, सुपर हीरोज की सोच वाले समाज में खुद को और निखारा, बुलंद किया और बता दिया कि हम हैं असली सुपर वुमन, जिनके कारण भारत विश्व पटल पर बन रहा है ‘सुपर पावर’।
लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं।