योगी आदित्यनाथ: दलित अधिकारों के सशक्त रक्षक अवैद्यनाथ जी की विरासत के उत्तराधिकारी

Yogi Adityanath: Inheritor of the legacy of Avaidyanath ji, a strong defender of Dalit rightsरीना एन सिंह 

अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट 

भारत की राजनीति और धर्म-संस्कृति के इतिहास में कुछ ऐसे महापुरुष होते हैं जो समय से आगे सोचते हैं और समाज की चेतना को दिशा देते हैं। ब्रह्मलीन महंत श्री अवैद्यनाथ जी ऐसे ही एक महामानव थे जिन्होंने धर्म, राजनीति और समाज सेवा को एक सूत्र में पिरोते हुए दलित समाज को सम्मान, आत्मबल और पहचान दी। गोरखनाथ मठ के पीठाधीश्वर और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी के गुरु, महंत अवैद्यनाथ न केवल राम जन्मभूमि आंदोलन के अग्रदूत थे, बल्कि वे भारत के पहले ऐसे संत-राजनीतिज्ञ थे जिन्होंने दलित समुदाय के सम्मान और सहभागिता को हिंदू जागरण का अनिवार्य अंग बनाया।साल 1980 के दशक में तमिलनाडु के मीनाक्षीपुरम में हुए सामूहिक धर्मांतरण की घटना ने उन्हें अत्यंत व्यथित किया।

उन्होंने इस धर्मांतरण को राष्ट्रांतरण की संज्ञा दी और यह सवाल उठाया कि वह कौन-सी पीड़ा है जो हमारे ही भाई-बहन हजारों वर्षों की सनातन परंपरा को छोड़कर दूसरी राह अपनाने को मजबूर हो जाते हैं। उन्होंने इसे हिंदू समाज के आत्मावलोकन का क्षण माना और गांव-गांव जाकर सामाजिक समरसता अभियान चलाया। यह वही समय था जब महंत अवैद्यनाथ जी ने धर्म और राजनीति में दलित सहभागिता को मुख्य धारा में लाने का संकल्प लिया।उनका मानना था कि समाज के उपेक्षित और तिरस्कृत वर्गों को यदि गरिमा और सम्मान नहीं दिया गया तो सामाजिक विघटन और धर्मांतरण जैसी घटनाएं बढ़ेंगी। इसी सोच के चलते उन्होंने अनेक ऐतिहासिक कदम उठाए।

1994 में वाराणसी के प्रसिद्ध डोम राजा के घर जाकर उन्होंने प्रमुख धर्माचार्यों के साथ भोजन किया, जो एक क्रांतिकारी कदम था। सदियों से ‘चांडाल’ कहे जाने वाले समुदाय के साथ इस प्रकार का आध्यात्मिक और सामाजिक संवाद पहली बार हुआ था। यह केवल प्रतीकात्मक कार्य नहीं था, बल्कि यह एक ऐलान था कि हिंदू धर्म सभी जातियों और वर्गों का धर्म है।महंत अवैद्यनाथ जी की यही सोच राम जन्मभूमि आंदोलन में भी स्पष्ट रूप से सामने आई।

उन्होंने प्रस्ताव रखा कि श्रीराम मंदिर की नींव रखने के लिए पहली ईंट किसी दलित भाई के हाथों रखवाई जाए। यह कार्य 1989 में किया गया, जब अयोध्या में शिलान्यास हेतु दलित समाज के व्यक्ति को चुना गया, जिससे पूरे विश्व में यह संदेश गया कि राम का धर्म दलितों को साथ लेकर चलता है, उन्हें बहिष्कृत नहीं करता। यही विचार आगे चलकर पूरे राम जन्मभूमि आंदोलन की आत्मा बना।इतना ही नहीं, जब बिहार में जातिवादी राजनीति अपने चरम पर थी और दलित समाज को वोट बैंक बनाकर केवल प्रयोग किया जा रहा था, तब महंत अवैद्यनाथ जी ने पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर में एक दलित युवक को पुजारी नियुक्त कर समाज के सामने एक नया आदर्श प्रस्तुत किया।

यह कदम इस बात का प्रमाण था कि मंदिरों और धर्म स्थानों पर केवल ऊंची जातियों का नहीं, बल्कि समस्त समाज का समान अधिकार है।आज जब भारत की सबसे उच्च संवैधानिक कुर्सियों पर दलित, आदिवासी और पिछड़े वर्ग के प्रतिनिधि विराजमान हैं — राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (आदिवासी), प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (ओबीसी), और मुख्य न्यायाधीश (पिछड़ा वर्ग) — तो यह समझना आवश्यक है कि इस सामाजिक-राजनीतिक चेतना की नींव महंत अवैद्यनाथ जैसे संतों ने वर्षों पहले रख दी थी।

आज उनके उत्तराधिकारी योगी आदित्यनाथ जी न केवल उनकी आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं, बल्कि वे दलितों के सम्मान, सुरक्षा और सशक्तिकरण के सबसे प्रभावी राजनेता के रूप में उभरकर सामने आए हैं। उत्तर प्रदेश में उनके शासन में दलितों को सामाजिक सुरक्षा, कानूनी संरक्षण और धार्मिक सम्मान जैसे अनेक क्षेत्रों में व्यापक समर्थन मिला है। गोरखनाथ पीठ आज भी हर वर्ग के लोगों के लिए आश्रय और आत्मबल का केंद्र बना हुआ है।

महंत अवैद्यनाथ जी के जीवन और विचारों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, 28 मई — उनकी जयंती — पर संपूर्ण हिंदू समाज यह स्वीकार करता है कि गोरखपुर ही वह पहला केंद्र बना जहां दलित उत्थान को धर्म और राजनीति से जोड़ा गया।

यह परंपरा आज भी जीवित है, और योगी आदित्यनाथ जी उसके सशक्त वाहक हैं। उनका नेतृत्व आने वाले समय में दलित समाज के लिए सुरक्षा, आत्मगौरव और प्रगति की दिशा में एक नया युग रचेगा। यही महंत अवैद्यनाथ जी की सबसे बड़ी विरासत है — सर्वसमावेशी हिंदू धर्म और एकात्म मानवता का संदेश।

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