हाथरस में योगी की सूझबूझ की परीक्षा
कृष्ण मोहन झा
देश के सबसे बडे राज्य उत्तरप्रदेश के मुखंयमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना काल में अपनी अद्भुत संवेदनशीलता से सारे देश में जो अलग पहिचान बनाई थी उसे हाथरस में एक दलित लडकी के साथ की गई दरिंदगी की भयावह घटना इतना धूमिल कर दिया है कि योगी अब बचाव की मुद्रा में दिखाई देने लगे हैं। केवल योगी सरकार ही नहीं बल्कि समूची मानवता को शर्मसार कर देने वाली इस घटना के मात्र दो दिन बाद बलरामपुर में भी हाथरस की पुनरावृत्ति ने योगी सरकार को कहीं का नहीं छोडा।
उम्मीद तो यह की जा रही थी कि वे मृतका के शोकाकुल माता पिता को ढाढस बंधाने के लिए खुद को हाथरस जाने से नहीं रोक सकेंगे परंतु उनके स्थान पर डी एम हाथरस पहुंचे और उनका मकसद पीडिता के परिवार जनों को सांत्वना देना नहीं बल्कि उनके जले पर नमक छिडकना था। वे उनसे यह कहकर इस असहनीय दुख को भूल जाने के लिए दबाव बनाते सुने गए कि मानलो तुम्हारी बेटी कोरोना के कारण मर जाती तो? इतना ही डीएम साहब ने कथित रूप से उन्हें यह परोक्ष धमकी देने में भी कोई संकोच नहीं किया कि मीडिया वाले तो दो दिन बाद चले जाएंगे, हम तो यहीं रहेंगे,फिर हम भी बदल गए तो?
सोचने की बात यह है कि जब डी एम ही इतनी भयावह घटना पर पर्दा डालने की कोशिश करने में संकोच न करें तो, गरीब, दलित परिवार किससे न्याय की उम्मीद कर सकता है । हाथरस में पहले तो हैवानों की दरिंदगी ने तडपा तडपा कर एक बेटी को मौत की नींद सुला दिया फिर शोक के सागर में डूबे उसके माता पिता और परिजनों को सूचना दिए बिना आधी रात को चोरी छिपे उसका दाह संस्कार भी कर दिया गया । उसके बाद उनके घर ही नहीं पूरे गांव की पुलिस ने ऐसी घेरा बंदी कर दी कि मीडिया वाले उन तक पहुंच ही न सकें ।
जाहिर सी बात है कि पुलिस यह चाहती थी कि मृतका के परिवार के लोग अपने साथ हुई पुलिस की ज्यादती के बारे में मीडिया से एक शब्द भी न बोल सकें । उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हाथरस कांड घटना की सीबीआई जांच की सिफारिश केंद्र से की है । यह उक्त घटना के विरोध में उपजे आक्रोश को शांत करने की दिशा में उठाया गया एक कदम है परंतु दिल दहला देने वाली दरिंदगी का शिकार हुई लडंकी के परिवार जन इससे भी संतुष्ट नहीं हैं । उन्होंने पूरे मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज से कराने की मांग की है। परिवार जनों का कहना हैकि अगर सरकार इस दुखद घटना की सीबीआई जांच ही कराना चाहती है तो वह सुप्रीम कोर्ट के किसी जज की निगरानी में होनी चाहिए ।
अब इस पर फैसला तो अदालत को ही करना है परंतु योगी सरकार के उक्त फैसले से यह तो साबित हो ही गया है कि खुद मुख्यमंत्री योगी को अपनी सरकार की पुलिस की सक्षमता और निष्षक्षता पर भरोसा नहीं है। अगर ऐसा नहीं होता तो उन्हें राज्य सरकार के वरिष्ट पुलिस अधिकारियों को हाथरस कांड में निलंबित करने के लिए विवश नहीं होना पडता । गौरतलब है कि योगी सरकार इस मामले में हाथरस जिले के एस पी ,डी एस पी सहित 6 पुलिस अधिकारियों को निलंबित कर चुकी है लेकिन डी एम पर अभी तक कोई कार्यवाही न होने पर आश्चर्य व्यक्त किया जा रहा है जबकि उन पर यह आरोप शुरू से ही लग रहे हैं कि उनके आदेश पर ही पीडिता के शव को रातों रात जलवा दिया गया और माता पिता व अन्य परिजनों को उसका चेहरा तक देखने की अनुमति नहीं दी गई ।
हाथरस में जिला प्रशासन एवं पुलिस की भूमिका पर जो सवाल उठ रहे हैं उनका जवाब शायद योगी सरकारके पास भी नहीं है ।आश्चर्य की बात तो यह है कि पीडिता के परिवार को संरक्षण देने के बजाय पुलिस उन पर यह दबाव बनाने में जुटी रही कि वे अपनी पीडा के बारे में मीडिया से कुछ न कहें । न जाने कौन सा राज खुल जाने के भय से उत्तर प्रदेश की पुलिस ने मीडिया प्रतिनिधियों को पीडिता के परिवार जनों से नहीं मिलने दिया ।पुलिस की मीडिया के लोगों से बदसलूकी की खबरों के फैलने से जब पुलिस की भूमिका पर सवाल उठने लगे तब पुलिस को मीडिया एवं राजनीतिक दलों के प्रतिनिधियों को पीडिता के परिवार जनों से मिलने की अनुमति देने के लिए मजबूर होना पडा परंतु तब तक काफी देर हो चुकी थी इस देरी ने पुलिस की भूमिका को संदेह के घेरे में ला दिया ।
गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा की वरिष्ठ नेता उमाभारती ने भी कहा था कि मीडिया को पीडिता के परिवारजनों से मिलने की अनुमति दी जाना चाहिए । उमाभारती ने तो यहांतक कहा कि अगर वे कोरोना पीडित नहीं होतीं तो खुद पीडिता के परिजनों से मिलने के हाथरस जातीं । उमाभारती जैसी संवेदनशीलता और शोकाकुल परिजनों के प्रति व्यक्त सहानुभूति निसंदेह सराहनीय है परंतु आश्चर्य तो इस बात का है कि यह पहल उत्तरप्रदेश की योगी सरकार और भा ज पा की ओर से नहीं की गई । हाथरस की वीभत्स और भयावह घटना को लेकर विपक्ष ने योगी सरकार के विरुद्ध जो अभियान चला रखा है उसने पहले तो सरकार को बचाव की मुद्रा अख्तियार करने के लिए विवश किया परंतु बाद में उसे यह अहसास हुआ कि बचाव की मुद्रा छोडकर अब विपक्ष को घेरने की नीति अपनाकर ही इस चुनौती से निपटा जा सकता है शायद इसीलिए योगी आदित्यनाथ ने कल यह बयान दिया कि उत्तरप्रदेश में पिछले एक माह से सामाजिक और सांप्रदायिक सद्भाव बिगाडने की साजिश रची जा रही थी । मुख्यमंत्री योगी ने यह बयान खुफिया तंत्र द्वारा जुटाई गई जानकारी के आधार पर दिया है ।उनहोंने ऐसी साजिश रचने वाले तत्वों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की चेतावनी दी है।इसी के तहत राज्य में 19एफ आई आर दर्ज की गईं ।
राज्य के खुफिया तंत्र केद्वारा जुटाई गई जानकारी को अगर विश्वसनीय मान लिया जाए तब यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि सरकार को उसने समय रहते सचेत क्यों नहीं किया ।यह तो माना जा सकता है कि विपक्षी दलों ने हाथरस की घटना को खुद को दलित समुदाय का हितैषी साबित करने के लिए एक अवसर मान लिया परंतु सवाल यह उठता है कि सरकार ने यह स्थिति पैदा होने से रोकने के लिए पहले से सतर्कता क्यों नहीं बरती । दरअसल सरकार की ओर से सबसे बडी चूक तो तब हो गई जब हाथरस के डीएम ने पीडिता के परिवार जनों को सूचित किए बिना आधी रात को उसका अंतिम संस्कार करवा दिया । विपक्षी दलों पर इस घटना का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश करने का आरोप लगाने का भी सरकार को पूरा अधिकार है और उस आरोप में सच्चाई भी हो सकती है परंतु क्या कांग्रेस नेता प्रियंका गांधी वाड्रा से झूमाझटकी को टाला नहीं जा सकता था ।
गौरतलब है कि बाद में हाथरस की पुलिस को इसके लिए खेद भी व्यक्त करना पडा ।
इसी तरह गांव की पंचायत द्वारा यह फैसला दिया जाना कि मृतका के साथ बलात्कार वहीं हुआ ,आश्चर्य जनक प्रतीत होता है और उससे यह सवाल भी जन्म लेता है कि क्या मृतका के साथ कोई दरिंदगी नहीं हुई थी ।
इस घटना के कई दिन बीत जाने के बाद जो नई चौंकाने वाली जानकारियां सामने आ रही हैं उनकी गंभीरता से और सूक्ष्म जांच किए जाने की आवश्यकता है । पुलिस ने यह भी बताया है कि मृतका के परिवारजनों को गलत बयानी के 50लाख रु का प्रलोभन दिया गया था इस पूरे मामले में पीपुल्स फ्रंट आफ इंडिया समेत कुछ अन्य संगठनों के नाम भी सामने आए हैं और विदेशी फंडिंग का भी आरोप लगा है। हाथरस में सपा,राष्ट्रीय लोक दल ,भीम आर्मी के नेताओं सहित अग्यात लोगों पर मुकदमा दर्ज किया गया है और उन पर राष्ट्रद्रोह,आपराधिक षडयंत रचने जातीय उन्माद फैलाने ,पुलिस पर हमला तथा कोविड-19की गाइड लाइन के उल्लंघन से संबंधित धाराएं लगाई गईं हैं ।
उधर विपक्षी दलों ने इन सब आरोपों को गलत बताते हुए कहा है कि योगी सरकार हाथरस की घटना से हुई किरकिरी से बचने के लिए विपक्ष पर झूठे आरोप लगा रही है। इस घटना ने मुख्यमंत्री योगी की सख्त प्रशासक की छवि को प्रभावित किया है । उन्होंने कोरोना काल में अपने प्रभावी कदमों से पूरे देश में सराहना अर्जित की थी हाथरस में उनकी प्रतिष्ठा दांव पर लगी हुई है। मुख्यमंत्री योगी के लिए हाथरस की घटना एक ऐसी कठिन चुनौती है जिससे पार पाने के उन्हें मौलिक सूझबूझ और इच्छा शक्ति का परिचय देना होगा ।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं. )