अभी नहीं मिलेगी मास्क से छुट्टी, नियमों का पालन करें

दीप्ति अंगरीश
पिछले डेढ़ साल से देश कोरोना के रौद्र रूप का सामना कर रहा है। संक्रमण शारीरिक व मानसिक रूप से तोड़ देता है। इससे बचाव बहुत हद तक आपके पास है। यदि आप डॉक्टरों की थोड़ी-सी मदद करें तो कोरोना का संक्रमण कम किया जा सकता है। यानी आप और समाज, इस घातक बीमारी से बचे सकते हैं। कोरोना की दूसरी लहर में भारत के 624 डॉक्टर्स (आईएमए के अनुसार) अपनी जान गंवा चुके हैं। महामारी के दौर में सरकार द्वारा जारी की गई गाइडलाइन को अपनाएं। देखा जा रहा है कि जिन लोगों ने वैक्सीन लगवा ली है वह लापरवाह हो गए है, उन्हें लगता है कि वैक्सीन लगवाने के बाद कोरोना अनुरूप व्यवहार का पालन करना जरूरी नहीं, जबकि ऐसा नहीं है, आप वायरस के वाहक हो सकते हैं। संभव है कि क्योंकि आपने वैक्सीन लगवा रखी है आपको वायरस प्रभावित नहीं करेगा, लेकिन जिन्होंने वैक्सीन नहीं लगवा रखी उन्हें आपके जरिए गंभीर संक्रमण हो सकता है। कोरोना की पहली व दूसरी लहर का तांडव आपने देखा है। आगे क्या हो सकता है। उम्मीद है इसका बेहतर पूर्व अनुमान लगाया जा सकता है।

सरकारी गाइडलाइंस के अनुसार मास्क पहनने से कोरोना की जंग को जीता जा सकता है, लेकिन आज भी लोग पुलिस और प्रशासन के डर के कारण मास्क पहनते हैं। कभी मास्क आड़ा या तिरछा होता है या कभी कान पर लटका होता है। गाइडलाइंस के अनुसार एएन95 या दो लेयर का पहनना है जो नाक से शुरू हो ढोड़ी को कवर करें, पर कुुछ लोग इसे नहीं अपनाते। आड़ा-तिरछा मास्क पहनकर गाइडलाइंस की खानापूर्ति करते हैं। मास्क पहनने से गर्मी लगती है कुछ तो यह बहाना बताकर मास्क पहनते ही नहीं हैं। कुछ लोग मास्क का सही तरह से न तो निस्तारण करते हैं और न ही धोते हैं। गंदे सर्जिकल मास्क को खुले में कहीं भी फेंक देते हैं। वे भूल जाते हैं कि गंदा मास्क बैक्टीरिया व वायरस का घर होता है। जान लें कोरोना के खिलाफ जंग हमें अपने स्तर भी लड़नी है। आप जानते हैं कि इस माहौल में अपनी और अपनों की इफाजत करना नितांत जरूरी है। इसके लिए पहल तो आपको ही शुरू करनी होगी।

अनलॉक में भी रहें सतर्क
आंकड़े बताते हैं कि संक्रमण की गति अब धीमी हो गई है। आप पूरी तरह से गलत हैं। संक्रमण कम होने के बाद भी कोरोना की गाइडलाइंस का पालन करें। समय-समय पर हाथ धोते रहें, सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें, भीड़-भाड़ से बचें। वैक्सीन का मतलब यह नहीं कि आप बिंदास और आजाद हैं। कहीं भी जाए और कुछ भी करें। याद रहे कि डॉक्टर आपकी सेवा के लिए हैं पर जहां तक संभव हो हम बीमारी नहीं होने दे। यह कोशिश तो कर सकते हैं। जान लें यह नाजुक समय है। हमेशा डॉक्टर की सेवा मिले यह मुमकिन नहीं।

इस समय लोगों को खुद अपना डॉक्टर बनना पड़ेगा। आप कोरोना प्रोटोकॉल को अपनाते हैं। यह सोचकर अपनों के घर भी जाते हैं। शायद वो यह सोचकर संक्रमण से बचाव की अधिक हिदायत नहीं अपनाते कि हम तो घर ही रहते हैं हमें संक्रमण कैसे हो सकता है। लेकिन ना जानें कौन वायरस साथ लेकर घूम रहा हो और आप विश्वास के फेर में कोरोना संक्रमित हो जाएं और आपसे यह संक्रमण कितनी तेजी से दूसरों में फैलेगा। खबर है कि कुछ लोग तो इतने लापरवाह हैं कि कोरोना गाइडलाइंस मानो भूल ही गए हों। अपने खालीपन को दूर करने के लिए इस दौर में भी छिपते-छिपाते घर में गेट टू गेदर कर रहे हैं। डॉक्टर्स आपको स्वास्थ्य सेवा देने के लिए हैं। इसका मतलब यह बिल्कुल भी नहीं कि आप कुछ भी करें। गौरतलब यह है कि कोरोना काल में मरीज ज्यादा और डॉक्टर कम पड़ रहे हैं।

कुछ मरीज अपनी बीमारी व उसके लक्षण छिपाते हैं। यह आदत इस काल में सरासर गलत हैै। यदि बीमारी के लक्षण को समय पर नहीं पता चल पाया तो हालात फिर से खराब हो सकते हैं। डॉक्टर से लक्षण न छिपाए और पूरा इलाज नहीं करवाएं। एक सरकारी कोरोना प्रोटोकॉल को सफल बनाने में व्यवस्था का साथ दें। आपकी समझदारी व जागरुकता से हम मिलकर कोरोना को हरा सकते हैं। इसके लिए लाइफस्टाइल में मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग, हैंड सैनिटाइजेशन, हैंड वॉश को अपनाएं। घर या काम के सिलसिले में बाहर जाते हैं तो डोर नॉब, वैलेट, फर्नीचर, चाभियां, किचन व कैंटीन काउंटर टॉप्स, हैंडल्स को समय-समय पर डिसइनफेक्ट करते रहें। अपनों से ऑफलाइन की बजाए ऑनलाइन संपर्क बनाएं। संतुलित आहार लेते रहें। व्यायाम करें और अपनी सेहत की निगरानी करें। बीमार हैं तो दवाएं बंद नहीं करें।

भारतीय समाज प्राचीन काल से ही विधि और मर्यादा के अनुशासन में रहता है, मगर आश्चर्य है प्राणहंता चुनौतियों के सामने हम साधारण संयम भी बताने को तैयार नहीं। हमारे संविधान में प्रत्येक नागरिक को मूल अधिकारों की प्रतिभूति है। साथ ही अनुच्छेद 51 (क) में मूल कर्तव्य भी हैं कि ‘प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करें। वन, झील, नदी और वन्य जीवों की भी रक्षा करें।’ इस अनुच्छेद में अनेक कर्तव्य हैं।

सभ्य समाज के नागरिक संस्कृति, संविधान और विधि का स्वत: पालन करते हैं। दुनिया के अन्य समाजों की तरह भारतीय समाज भी आदिम मानव सभ्यता से आधुनिक सभ्यता तक आया है। अथर्ववेद में सामाजिक विकास के सूत्र बताते हैं कि पहले परिवार संस्था का विकास हुआ। परिवार नाम की संस्था में सभी सदस्यों के कर्तव्य निश्चित थे। अधिकार की कोई आवश्यकता नहीं थी। माता-पिता का कर्तव्य संतति का पालन-पोषण था। इस तरह पुत्र को उन्नति करने का अधिकार स्वतः: मिलता था। यह सामाजिक विकास का प्रथम चरण था। आगे कहते हैं कि ‘विमर्श के लिए लोगों का एकत्रीकरण होने लगा। इससे सभा का विकास हुआ। इससे नागरिक कर्तव्य निभाने और दूसरों को दायित्व बोध के लिए प्रेरित करने वाले लोग सभा के योग्य बने। वही सभ्य कहलाए।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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