क्रिकेट की वापसी तय, बाकी खेल कोरोना की गिरफ़्त में

Saurabh Ganguly said on India's defeat in the World Test Championship: Youth should now be brought into the teamराजेंद्र सजवान

भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के अध्यक्ष सौरभ गांगुली ने देश विदेश के क्रिकेट खिलाड़ियों को तैयार रहने का संकेत दे दिया है। वह यहाँ तक कह रहे हैं कि आईपीएल को यदि खाली स्टेडियम में आयोजित करना पड़े तो ऐसा भी कर गुजरेंगे।

सीधा सा मतलब है कि बोर्ड शीघ्र अतिशीघ्र खेल की वापसी चाहता है फिर चाहे स्टेडियम खाली हो या छुट पुट दर्शकों को ही प्रवेश मिल पाए। इतना ही नहीं इस आयोजन को यदि विदेश ले जाना पड़े तो उस बारे में भी विचार किया जा रहा है। अर्थात क्रिकेट और आईपीएल से जुड़े तमाम लोग, कंपनियाँ, फ्रैंचाईजी, खिलाड़ी, अधिकारी और आयोजक चाहते हैं कि खेल को हर कीमत पर शुरू किया जाए और हर विकल्प खुला रखा जाए। लेकिन भारत में और भी तो बहुत से खेल खेले जाते हैं। अन्य खेलों की लीग भी आयोजित की जाती हैं लेकिन सभी मौन क्यों हैं? कोविद 19 के डर को दरकिनार कर नई शुरुआत के लिए कोई भी कमर क्यों नहीं कसना चाहता?

इसमें दो राय नहीं कि कोरोना के आतंक के चलते खेल मैदानों की तरफ लौटना आसान नहीं है। बड़ा कलेजा चाहिए, जोकि क्रिकेट के पास है लेकिन बाकी खेलों के पास क्यों नहीं है? बेशक, बॉडी कॉन्टेक्ट वाले खेलों के लिए अभ्यास और प्रतिस्पर्धा में लौटना क्रिकेट की तरह आसान नहीं है। ख़ासकर, कुश्ती, मुक्केबाज़ी, हॉकी, फुटबाल और अन्य टीम खेलों में नियमों में मूल चूल बदलाव के बाद ही वापसी हो सकती है। हैरानी वाली बात यह है कि कोरोना की सबसे ज़्यादा मार झेलने वाले इटली, स्पेन, जर्मनी, चीन, अमेरिका के अलावा कई अन्य देशों में फुटबाल के साथ साथ बहुत से खेल वापस लौटने के लिए कुछ कदम दूर हैं लेकिन भारत में कहीं कोई सुगबुगाहट तक सुनाई नहीं दे रही।

यह ना भूलें कि यदि स्थगित टोक्यो ओलंपिक साल भर बाद आयोजित किया गया तो शायद भारतीय तैयारियाँ पीछे छूट सकती हैं। कई देशों के खिलाड़ी अपने स्तर पर अभ्यासरत हैं और उनके खेल संघों ने कोरोना की काट भी खोज ली है। दुर्भाग्यवश अपने देश में ना तो कोरोना महामारी की रोकथाम का कोई ठोस फार्मूला मिल पाया है और नाही खिलाड़ी यह तय कर पा रहे हैं कि कैसे खुद को सुरक्षित रख कर ओलंपिक की तैयारी करें।

हाँ, भारतीय ओलंपिक संघ में घमासान ज़रूर मचा है जिसकी गूँज पूरी दुनिया में सुनाई दे रही है। आईओए के दो धड़े एक दूसरे को कोसने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। आईओए अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र बत्रा और सचिव राजीव मेहता के आरोप प्रत्यारोप उग्र रूप ले चुके हैं और मामला आईओसी की अदालत तक जा पहुँचा है। अफ़सोस की बात यह है कि एक तो महामारी उपर से ओलंपिक तैयारी। ऐसे  में खिलाड़ियों को नुकसान होना तय  है, जिनको वापसी का रास्ता भी नज़र नहीं आ रहा।

कोरोना पूर्व की स्थिति को देखें तो ओलंपिक पदकों का भारतीय दावा सिर्फ़ हवा में झूल रहा था। कुश्ती, मुक्केबाज़ी, बैडमिंटन, निशानेबाज़ी और हॉकी में पदकों की बात ज़रूर की जा रही थी लेकिन ऐसे  हवाई फायर हमारा खेल मंत्रालय, भारतीय खेल प्राधिकरण, आईओए और खेल संघ वर्षों से करते आ रहे हैं। सच्चाई यह है कि भारतीय ओलंपिक खेलों के पास क्रिकेट जैसी सोच का अभाव है और मज़बूत मार्गदर्शन की कमी के चलते हम फिसड्डी खेल राष्ट्र बन कर रह गए हैं। क्रिकेट लीग औट घरू आयोजन शुरू होने जा रहे हैं लेकिन बाकी खेलों की लीग और अन्य आयोजनों के बारे में कोई चर्चा नहीं। साफ है कि हमारा खेल मंत्रालय और खेलों को संचालित करने वाले खेल संघ गंभीर नहीं हैं।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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