पुण्यतिथि विशेष: आज भी प्रासंगिक है बाबू जगजीवन राम का संघर्ष

शिवानी सिंह ठाकुर

“जगजीवन राम तपे कंचन की भातिं खरे व  सच्चे हैं, मेरा हृदय इनके प्रति आदरपूर्ण प्रशंसा से अपूरित है।”

महात्मा गांधी द्वारा कहे गए ये शब्द बाबूजी के आदर्श चरित्र के दर्पण है।  भारत में दलित वर्ग के नेता के रूप में बाबासाहेब आंबेडकर को तो सब जानते हैं, लेकिन उन्हीं के समकालीन दलितों के एक और बड़े नेता हुए हैं जिन्होंने भारतीय राजनीति में उप प्रधानमंत्री पद को प्रतिष्ठित किया। जी हां हम बात कर रहे हैं बाबू जगजीवन राम की जिनकी आज ही के दिन यानी 6 जुलाई को 34 वीं पुण्यतिथि है।

बाबू  जगजीवन राम, जिन्हें हम प्यार से  बाबूजी कहते हैं का जन्म आरा के  चंदवा मे हुआ।  1977 में इन्होंने उप- प्रधानमंत्री बन कर यह दिखा दिया है कि हममें चाह हो,तो हम शिक्षा को ताकत बनाकर कुछ भी हासिल कर सकते हैं।  शिक्षा एक ऐसी ताकत है जो हमें हर परिस्थिति हर मुश्किल से निकालकर सफलता के मुकाम पर पहुंच आती है।
1920 में जब यह मिडिल स्कूल में गए तब इन्होंने पहली बार भेदभाव का सामना किया। उस छोटी सी उम्र में भी  इन्होंने निडर होकर  असमानता से डटकर मुकाबला किया।  किस्सा  कुछ यूं है कि इनके स्कूल में दो घड़े होते थे। एक मुस्लिम घड़ा और एक हिंदू घड़ा, एक अछूत होकर इन्होंने हिंदू घड़े से पानी पी लिया तो लड़कों के विरोध में प्रिंसिपल ने एक तीसरा अछूत घड़ा  रखवाया। जब इस बात का भान छोटे जगजीवन राम को हुआ तो उन्होंने उस तीसरे घर को तोड़ दिया, बार-बार इस वाकये के  दोहराने से प्रिंसिपल को अपनी गलती का भान हुआ  और अछूतों के लिए अलग घड़ा हटा दिया गया।  स्कूल में इन्होंने चीजों को समझने वह सीखने की जिज्ञासा के बल पर अंग्रेजी, बंगाली, हिंदी और संस्कृत भाषाओं में हासिल की।

सन्  1925 में जब  पंडित मदन मोहन मालवीय आरा पधारे तो वो युवा जगजीवन के व्यापक ज्ञान व सभी क्षेत्रों में उत्कृष्ट प्रदर्शन को देखकर अचंभित रह गए। उन्होंने स्वयं उनसे मुलाकात कर उन्हें बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी आने का निमंत्रण दिया।
1927 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा उत्तीर्ण कर बीएचयू  ज्वाइन किया।  यहां इन्हें जातिगत भेदभाव का सामना करना पड़ा। इन्हें हॉस्टल में बैठकर दूसरे लड़कों जैसे खाना नहीं मिला, यहां तक कि बनारस के नाईयों ने भी  बाल काटने से मना कर दिया; सिर्फ  एक जाति विशेष में जन्म होने के कारण। इन  जातिगत भेदभाव से तंग आकर इन्होंने बीएचयू छोड़कर कोलकाता यूनिवर्सिटी से बीएससी किया।
जगजीवन राम के कलकत्ता आगमन ने उन्हें सामाजिक और राजनीतिक क्षेत्र में प्रकट किया। कोलकाता पहुंचने के 6 महीने के अंदर ही उन्होंने विशाल मजदूर रैली  का आयोजन किया।  यहां उन्होंने खेतिहर मजदूरों दलितों और पिछड़ी जाति के लोगों के  बेहतर के लिए काम किया। इन्होंने रविदास महासभा ,खेतिहर मजदूर महासभा और भारतीय दलित महासभा  की  स्थापना की। इन सभाओं का उद्देश्य पिछड़ी जाति के मजदूरों , अछूतों को  समाज में समानता का स्थान दिलाना था।

वर्ष 1934 में जब सम्पूर्ण बिहार भूकंप की तबाही से पीड़ित था तब बाबूजी ने बिहार की मदद व राहत कार्य के लिए अपने कदम बढ़ाए। बिहार में ही पहली बार उनकी मुलाकात उस काल के सबसे महत्त्वपूर्ण, प्रभावशाली व अहिंसावादी स्वतंत्रता सेनानी महात्मा गाँधी से हुई। महात्मा गांधी के ही नेतृत्व में बाबूजी ने आजादी की संघर्ष में हिस्सा  लिया।
1935 में जब पिछड़ी  जातियों को विधानसभा में हिस्सा मिला तो बाबूजी  28 साल की उम्र में बिहार काउंसिल के लिए नॉमिनेट हुए। इन्हीं  दिनों उन्होंने हिंदू महासभा में मंदिरों और पीने के पानी के स्रोत  को  दलितों के लिए खोलने की मांग की। इन्होंने ही हैमंड कमेटी में दलितों के मतदान के लिए प्रस्तावना रखी  जो स्वीकार की गई। 1938 में इन्होंने अंडमान के कैदियों की दशा और भारत के  द्वितीय विश्वयुद्ध में हिस्सेदारी को लेकर महात्मा गांधी के  आह्वान पर  सरकार से इस्तीफा दे दिया।

इसके बाद 1942 में “भारत छोड़ो आंदोलन” में महात्मा गांधी ने  इन्हें बिहार और उत्तर पूर्वी भारत मे  प्रचार प्रसार की जिम्मेदारी दी। जिसे उन्होंने बखूबी निभाया पर  दुर्भाग्यबस 10 दिनों के अंदर ही गिरफ्तार हो गए। फिर तो इन्होंने डटकर अंग्रेजों से मुकाबला किया देश की आजादी के लिए महात्मा गांधी के साथ  आंदोलन में हिस्सा लिया।
16 अगस्त 1946 को जब लॉर्ड वावेल ने अंतरिम सरकार के गठन के लिए 12 नेताओं को  आमंत्रित किया  तो ,बाबू जगजीवन राम उनमें से एक थे। आजादी के बाद बाबू श्री जगजीवन राम सबसे कम उम्र के मंत्री बनें।
बाबू जगजीवन राम ने अपने मंत्री काल में कई मंत्रालयों को संभाला।  जब  इन्होंने श्रम मंत्रालय (1946-1952)  का भार संभाला उन्होंने मजदूरों के लिए कई सारे पॉलिसी बनाया   जो आज के कानूनों की बुनियाद है। ये कानून मजदूर वर्ग की सबसे बड़ी उम्मीद व आज के युग में सबसे बड़े हथियार के रूप में देखे जाते हैं । ये क़ानून कुछ इस प्रकार थे – 1. इंडस्ट्रियल डिसप्यूट्स एक्ट, 1947   2.मिनिमम वेजेज़ एक्ट, 1948   3.इंडियन ट्रेड यूनियन (संशोधन) एक्ट, 1960   4. पेयमेंट ऑफ़ बोनस एक्ट, 1965   5.एम्प्लाइज स्टेट इंश्योरेंस एक्ट, 1948   6. प्रोविडेंट फण्ड एक्ट, 1952. जब इन्होंने संचार मंत्री (1952 -1956)का भार संभाला तब  इन्होंने कई निजी विमान कंपनियों का राष्ट्रीयकरण किया।  देशभर में डाकखानो के जाल बिछाने की बुनियाद रखी।
जब इन्होंने रेल और परिवहन मंत्रालय (1956-1962) संभाला तो 5 साल तक रेल का बिल्कुल भी किराया नहीं बढ़ाया, यह अपने आप में एक रिकॉर्ड है।  फिर इन्होंने (1962 – 1963) परिवहन और संचार विभाग का कार्यभार संभाला।1966 – 1967 मे   श्रम और रोजगार विभाग का मंत्रालय संभाला। बाबू जगजीवन राम ने ही अपने नेतृत्व में(1967-70) डॉक्टर नॉर्मन बोरलॉग के साथ मिलकर हरित क्रांति लाई और भारत को 2 वर्षों में ही फूड सर प्लस देश बना दिया। और देश को अकाल से जूझने में बल प्रदान किया। एक बार फिर इन्होंने  भारत-पाकिस्तान के 1971  के युद्ध के बाद जब  खाद्य और कृषि मंत्रालय (1974-77)का भार संभाला, तो इन्होंने लड़ाई से निकले हुए देश को फूड सिक्योरिटी दी। इन्होंने ही सार्वजनिक वितरण प्रणाली की नींव रखी। जब इन्होंने डिफेंस मिनिस्ट्री(1970-74, 1977-79) की कमान संभाली  तो इनका करिश्माई नेतृत्व अचंभित करने वाला था। रिटायर्ड लेफ्टिनेंट जनरल जे.एफ.आर.जेकब ने इन्हे  बेस्ट डिफेंस मिनिस्टर की संज्ञा दी। उनके नेतृत्व में इंडियन आर्मी ने  1971 की पाकिस्तान की लड़ाई लड़ी और  बांग्लादेश मुक्ति की भी लड़ाई लड़ी।
बाबू जगजीवन राम  40 सालों से भी ज्यादा लगातार भारतीय संसद के सदस्य रहे। 1936 से 1986 तक लगातार अपने संसदीय क्षेत्र का  संसद मे प्रतिनिधित्व कर इन्होंने वर्ल्ड रिकॉर्ड बनाया है।   इस बात से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लोगों के बीच  बाबूजी कितने  लोकप्रिय थे।  “बाबू बिट्स बॉबी” 1977 मे रामलीला मैदान की चुनावी रैली   को  कवर करती अखबारों की ये मजेदार सुर्खी  उनके  लोगों के बीच लोकप्रियता की एक झलक है। बाबूजी ने जिस तरह अछूतों के लिए काम किया उसे याद कर हमने उनके जन्मदिवस को ‘समता  दिवस ‘के रूप में मनाते हैं उनकी  समाधि स्थल  को ‘समता स्थल’ मानते हैं।
बाबू श्री जगजीवन राम की जीवनी हमें यह शिक्षा देती है कि हम चाहे किसी भी जाति विशेष के हो किसी भी परिस्थिति की हो शिक्षा का उपयोग कर हम अपनी सफलता को प्राप्त कर सकते हैं।

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