अंत्योदय और स्वदेशी को आत्मसात करा गए प्रधानमंत्री मोदी

डाॅ धनंजय गिरि

देश के नाम अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 20 लाख करोड रुपये के आर्थिक पैकेज की बात की। उससे पहले उन्होंने आत्मनिर्भर बनने की बात कही। इसके लिए स्वेदशी की बात की। समाज के हर तबके की बात की। रेहडी पटरी वालों तक की बात। साईकिल पर समान बेचने वालों की भी चिंता की। खेतों में काम करने वाले मेहनतकश अन्नदाता की बात की। यानी देखा जाए तो समाज के अंतिम पंक्ति में खडे देशवासियों के हितो ंकी चिंता की। आखिर यही तो है पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी के अंत्योदय की परिकल्पना। अपने 35 मिनट के भाषण में लोगों के मन को सकारात्मक भाव से भर दिया। जैसे यह लाइन देखें, जो उन्होंने कही- अब एक नई प्राणशक्ति, नई संकल्पशक्ति के साथ हमें आगे बढ़ना है। जब आचार-विचार कर्तव्य भाव से सराबोर हो, कर्मठता की पराकाष्ठा हो, कौशल्य की पूंजी हो, तो आत्मनिर्भर भारत बनने से कौन रोक सकता है? हम भारत को आत्मनिर्भर भारत बना सकते हैं। हम भारत को आत्मनिर्भर बनाकर रहेंगे। इस संकल्प के साथ, इस विश्वास के साथ, मैं आपको बहुत-बहुत शुभकामनाएं देता हूं।
प्राणशक्ति, संकल्पशक्ति, कौशल्य, कर्मठता, पराकाष्ठा, कर्तव्य भाव आदि ऐसे शब्द हैं, जो आमतौर पर राजनीति में सुनने को नहीं मिलते हैं। राजनीति में आकर जो शब्द घिस-पिट गए हैं ये उनसे अलग हैं और आज भी इनका अर्थ और पवित्रता बची हुई है। तभी प्रधानमंत्री अपने भाषणों में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल करते हैं, जिनसे लोगों के दिमाग से ज्यादा दिल पर असर हो।
प्रधानमंत्री ने  स्थानीय दुकानदारों और स्थानीय उत्पाद को लेकर आग्रह किया। आत्मनिर्भरता, आत्मबल और आत्मविश्वास से ही संभव है। आत्मनिर्भरता, ग्लोबल सप्लाई चेन में कड़ी स्पर्धा के लिए भी देश को तैयार करती है। और आज ये समय की मांग है कि भारत हर  स्पर्धा में जीते, ग्लोबल सप्लाई चेन में बड़ी भूमिका निभाए। अब हमारा कर्तव्य है उन्हें ताकतवर बनाने का, उनके आर्थिक हितों के लिए कुछ बड़े कदम उठाने का। इसे ध्यान में रखते हुए गरीब हो, श्रमिक हो, प्रवासी मजदूर हों, पशुपालक हों, हमारे मछुवारे साथी हों, संगठित क्षेत्र से हों या असंगठित क्षेत्र से, हर तबके के लिए आर्थिक पैकेज में कुछ महत्वपूर्ण फैसलों का ऐलान किया जाएगा। आर्थिक रूप से बदहाल श्रमिक वर्ग के खातों में सीधे नकदी ट्रांसफर करे। इससे वे स्थानीय रोजगार, जैसे कि छोटी डेयरी खोलना, देसी खान-पान को बढ़ावा देना, स्थानीय काष्ट एवं हस्तशिल्प का व्यापार, बकरी-मुर्गी पालन आदि शुरू कर सकेंगे और अपना परिवार पालते हुए लघु बचतें भी कर सकेंगे। लॉकडाउन के चलते गांव लौट रहे लाखों मजदूरों को यह पैकेज अगर तत्काल राहत दे सके, तो इसकी सार्थकता कई गुना बढ़ जाएगी।
प्रधानमंत्री ने साफ शब्दों में बता दिय कि हम भारतीय किसी भी सूरत में थकना और हारना नहीं जानते हैं। प्रतिकूलता में कैसे अनुकूलता लाई जाए, यही हमारी विशेषता है। तभी तो अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि हम पिछली शताब्दी से ही सुनते आए हैं कि 21वीं सदी हिंदुस्तान की है। हमें कोरोना से पहले की दुनिया को, वैश्विक व्यवस्थाओं को विस्तार से देखने-समझने का मौका मिला है। कोरोना संकट के बाद भी दुनिया में जो स्थितियां बन रही हैं, उसे भी हम निरंतर देख रहे हैं। जब हम इन दोनों कालखंडो को भारत के नजरिए से देखते हैं तो लगता है कि 21वीं सदी भारत की हो, ये हमारा सपना नहीं, ये हम सभी की जिम्मेदारी है। लेकिन इसका मार्ग क्या हो? विश्व की आज की स्थिति हमें सिखाती है कि इसका मार्ग एक ही है- “आत्मनिर्भर भारत”। हमारे यहां शास्त्रों में कहा गया है- एष: पंथा: यानि यही रास्ता है- आत्मनिर्भर भारत।
दरअसल, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आधे घंटे के संबोधन को सुना और समझा जाए, तो उन्होंने ग्राम स्वराज की ओर इशारा किया। असल में, महात्मा गांधी का मानना था कि अगर गांव नष्ट हो जाए, तो हिन्दुस्तान भी नष्ट हो जायेगा। दुनिया में उसका अपना मिशन ही खत्म हो जायेगा। अपना जीवन-लक्ष्य ही नहीं बचेगा। हमारे गांवों की सेवा करने से ही सच्चे स्वराज्य की स्थापना होगी। बाकी सभी कोशिशें निरर्थक सिद्ध होगी। गांव उतने ही पुराने हैं, जितना पुराना यह भारत है। शहर जैसे आज हैं, वे विदेशी आधिपत्य का फल है। जब यह विदेशी आधिपत्य मिट जायेगा, जब शहरों को गांवों के मातहत रहना पड़ेगा।
प्रधानमंत्री के संबोधन के बात जब क्रमागत तरीके से केंद्रीय वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण एक एक करके पैकेज की घोषणा कर रही है और उसके बारे में विस्तार से बता रही हैं, तो कई बातें अपने आप और भी अधिक स्पष्ट हो रही है। मसलन, स्वदेशी को बल मिल रहा है। भारतीय परंपरा को पूरे विश्व के सामने लाया जा रहा है। यह अनायास नहीं है कि इस पैकेज में आयुर्वेदिक औषधीय पौधों की चिंता की गई। उसके लिए किसानों को पैकेज देने की बात की गई। मेरा मानना है कि यह स्वदेशी को बढाने के लिए हमारे प्रधानमंत्री की दूरदृष्टि है।
मोदी सरकार ने 4 हजार करोड़ रुपए देश में औषधीय खेती के लिये जारी किए हैं। देशभर के किसानों को इससे भारी फायदा होगा। दस लाख हेक्टेयर में जड़ी बूटियों की खेती से आने वाले चार वर्षों के भीतर भारत आयुर्वेदिक दवाओं के उत्पादन में पहले पायदान पर होगा। देश में औषधीय खेती के लिये जो कॉरिडोर विकसित किया जा रहा है उससे गंगा के किनारे बसे जिलों को सर्वाधिक लाभ होगा। औषधीय खेती के साथ ही सरकार ने मधुमक्खी पालको के लिये भी 500 करोड़ रुपए का फंड जारी किया है। इससे ग्रामीण इलाकों के युवाओं को लाभ मिलेगा और देश शहद निर्यात की तरफ बढ़ेगा। वैसे भी आयुर्वेद और शहद का एक बड़ा महत्व है। मोदी सरकार की इस नीति से समझा जा सकता है कि दशकों से इस क्षेत्र पर सरकार ज्यादा ध्यान दे रही है। यही स्वदेशी और स्थानीय विकास का महामंत्र हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इस सप्ताह की शुरुआत में कोरोना वायरस से शिथिल पड़ी अर्थव्यवस्था में जान फुंकने के लिये कुल 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज की घोषणा की थी। यह राशि देश की जीडीपी का 10 प्रतिशत के करीब बैठती है। इसमें उस सहायता पैकेज की 1.70 लाख करोड़ रुपये की राशि भी शामिल है जिसकी घोषणा 25 मार्च को देशव्यापाी लॉकडाउन लागू करने के कुछ ही दिन में कर दी गई थी। इसके बाद रिजर्व बैंक ने भी विभिन्न मौद्रिक उपायों के जरिये करीब 5.6 लाख करोड़ रुपये के मौद्रिक प्रोत्साहन उपायों की घोषणा की। इसके बाद पिछले दो दिन में 9.10 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहना पैकेज की घोषणा की गई जिसमें किसानों को सस्ता कर्ज, एनबीएफसी को नकदी और बिजली वितरण कंपनियों को संकट से उबारने के लिये सहायता की घोषणा की गई। मोदी सरकार का विश्वास है कि किसानों के कल्याण में भारत का कल्याण निहित है। किसानों को दी गई यह अभूतपूर्व सहायता मोदी जी की किसानों को सशक्त बनाकर देश को आत्मनिर्भर बनाने की दूरदर्शिता को दर्शाता है।विषम परिस्थितियों में भी किसानों के प्रति प्रधानमंत्री मोदी की यह संवेदनशीलता सम्पूर्ण विश्व के लिए अनुकरणीय है।

(लेखक विचारक हैं।ये लेखक के निजी विचार हैं। चिरौरी न्यूज परिवार का इससे पूर्ण सहमत होना जरूरी नहीं है। )

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