‘दिल के राजा’ हैं राजा रणधीर सिंह!

राजेंद्र सजवान

पाँच बार के ओलम्पियन, ट्रैप और स्कीट शूटर और भारत के लिए एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक जीतने वाले राजा रणधीर सिंह एक बार फिर से चर्चा में हैं। कारण, उन्हें फिर से अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति(एशिया) में भारत के प्रतिनिधित्व का सम्मान दिया गया है।

ओलम्पिक काउन्सिल आफ एशिया के पूर्व अध्यक्ष शेख अहमद अल फ़हद के धोखाधड़ी के एक मामले में लिप्त होने के कारण, 74 वर्षीय रणधीर सिंह को कार्यवाहक अध्यक्ष पद का दायित्व सौंपा गया है।

हालाँकि वह ओसीए के आजीवन उपाध्यक्ष हैं लेकिन नया पद भार उनकी लोकप्रियता और खेलों के प्रति उनके समर्पण को दर्शाता है, जोकि हर भारतीय के लिए गर्व की बात है।

भारतीय खेलों के उच्च पदों पर आसीन अधिकारियों पर सरसरी नज़र डालें तो बहुत कम ऐसे रहे हैं, जिन्होने खिलाड़ियों, खेल पत्रकारों, खेल कर्मियों और खेल से जुड़ी अन्य हस्तियों के साथ ऐसे संबंध बनाए हों, जिनके चलते खेल बिरादरी ने उन्हें हमेशा याद किया हो और पद से हटने के बाद भी उनका आदर सम्मान बना रहा हो।

अक्सर देखा गया है कि उच्च पद पाते ही ज़्यादातार का मिजाज़ बिगड़ जाता है। लेकिन चंद ऐसे भी होते हैं जिनको कोई बड़ा पद, प्रतिष्ठा या सम्मान डिगा नहीं सकता| राजा रणधीर सिंह उनमें एक हैं और पटियाला के महाराजा राजा भालिन्दर सिंह के सुपुत्र हैं। उनके चाचा राजा यादविंदर सिंह टेस्ट क्रिकेटर थे और 1951 में भारत में आयोजित पहले एशियाई खेलों के आयोजन में उनकी बड़ी भूमिका रही थी।

पिता राजा भालिन्दर सिंह 1947 से 1992 तक अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति(आईओसी) के सदस्य रहे। तत्पश्चात यह दायित्व राजा रणधीर सिंह ने बखूबी निभाया।

1987 से 2014 तक भारतीय ओलम्पिक समिति के महासचिव पद को सुशोभित करने वाले रणधीर विश्व स्तर पर अनेक ओलम्पिक सुधार आंदोलनों और संगठनों से जुड़े रहे हैं जिस कारण से उन्हें अंतरराष्ट्रीय खेल संगठनों में भारत के प्रतिनिधि के रूप में बड़ा सम्मान मिला।

उनकी बड़ी ख़ासियत यह है कि किसी भी विवाद में उनका नाम शामिल नहीं रहा। एक अच्छे खिलाड़ी से प्रशासक बने रणधीर खिलाड़ियों, खेल प्रमुखों और प्रशासकों के बीच लोकप्रिय रहे हैं।

यारों के यार:
उनकी बड़ी ख़ासियत यह रही है कि शायद ही किसी ने उन्हें कभी गंभीर मुद्रा में देखा हो। हर पेचीदा काम को हंस कर अंजाम देने वाले इन महाशय के मित्रों की लिस्ट बहुत लंबी है, जिसमें बच्चे, जवान, पुरुष, महिलाएँ, खिलाड़ी, कोच, खेल अधिकारी और सिने कलाकारों की कुल संख्या बताना आसान नहीं है। एक जमाना था जब अपने फार्म हाउस पर महीने दो महीने में कोई पार्टी आयोजित कर हर क्षेत्र के लोगों को हाल समाचार पूछने बुलाते थे।

साफ सुथरी छवि:
भारत में आयोजित 2010 के कामनवेल्थ खेलों की मेजबानी पाने और सफलता पूर्वक संपन्न कराने में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण रही। जहाँ एक ओर खेलों की शुरुआत से महीनों पहले आरोप प्रत्यारोपों का दौर शुरू हो गया था, सरकार, आईओए और अन्य विभागों के प्रति रोज ही नाराज़गी बढ़ रही थी तो रणधीर सिंह पर किसी ने भी उंगली नहीं उठाई, क्योंकि घोटालों से उनका कोई लेना देना ही नहीं रहा।

उस बुरे दौर में जबकि सुरेश कलमाडी जैसे योग्य प्रशासक और उनकी टीम को चौतरफ़ा निशाने पर लिया गया, रणधीर को उनकी साफ सुथरी छवि बचा ले गई। कामनवेल्थ खेल कवर करने वाले मीडिया को उनकी भरपूर जानकारी थी, इसलिए उन पर किसी भी स्तर पर उंगली नहीं उठी।

सफलतम खेल:
यदि खिलाड़ियों की भागीदारी और आयोजन का स्तर खेलों की सफलता का मापदंड है तो नई दिल्ली के कामनवेल्थ खेल सौ फीसदी सफल थे, जिनकी देश विदेश में जम कर तारीफ की गई। विदेशी खिलाड़ियों और खेल पत्रकारों ने खेलों के आयोजन को अभूतपूर्व बताया। हालाँकि बेमौसम बारिश ने खेल बिगाड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी फिरभी खेल आयोजन की हर किसी ने प्रशंसा की।

लेकिन चंद लोगों के स्वार्थों और उनकी लूट खसोट के चलते देश का नाम खराब किया गया। कई एक को जेल हुई, मुक़दमे चले लेकिन नेक और ईमानदार चरित्र वाले खेल प्रशासक राजा रणधीर सिंह पाक साफ निकल गए।

ओलम्पिक आयोजन का दावा:
चूँकि रणधीर सिंह और नीता अंबानी के रूप में दो भारतीय प्रतिनिधि आईओसी के सदस्य हैं इसलिए अब भारत को ओलम्पिक खेलों की मेजबानी का दावा पेश करना आसान हो जाएगा।

भारत सरकार और आईओए पहले भी कह चुके हैं कि उनका इरादा ओलम्पिक आयोजन का है। अब भारतीय प्रतिनिधि भारत की बात को आईओसी के समक्ष मजबूती से रख सकते हैं। ख़ासकर, एशियाई देशों और कामनवेल्थ सदस्य देशों का बड़ा समर्थन हमेशा से रणधीर सिंह के साथ रहा है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं. इनके लेख www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं.)

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