पढे लिखे बुड़बक निकले तारिक अनवर!

सुभाष चन्द्र

धत्त बुड़बक।
यह शब्द आपने और हमने कई बार सुना है भारतीय राजनेता लालू प्रसाद यादव के मुंह से। इससे पहले केवल बिहार के गांवों में यह शब्द कहा-सुना जाता रहा है। आज एक बार फिर बिहार के शहरों, गांवों में यह शब्द खूब कहा और सुना जा रहा है। प्रसंग है तारिक अनवर जी का। वही तारिक अनवर जी, जो कभी कांग्रेस के प्रमुख नेता रहे। सीमांचल में अपनी तूती का हवाला देते देते शरद पवार के राकांपा में भी चले गए। जब वहां दाल नहीं गला, तो कांग्रेस में आने में देरी नहीं की। पढे लिखे भी माने जाते हैं। फिर भी बिहार विधान परिषद के चुनाव में बुड़बक बन गए। अब क्या कहेंगे आप और हम !

असल में, तारिक अनवर टीवी पर कितना भी ज्ञान ठेल दें। जब अपने पर आई, तो इतना भी नहीं पता था कि बिहार विधान परिषद के चुनाव के लिए इस राज्य का मतदाता होना जरूरी है। बस फिर क्या था, पूरी मेहनत बेकार गई। न तो कांग्रेस महासचिव मुकुल वासनिक की कृपा काम आई और न ही कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की हामी ही। बिहार प्रदेश कांग्रेस नेताओं का एक गुट तो इस घटना से फूले नहीं समा रहा है। बस, यही कह रहे हैं, बुड़बक ही निकलें तारिक साहिब।

बता दें कि बिहार विधान परिषद चुनाव से पहले कांग्रेस में खूब माथा पच्ची हुई। कई घंटों तक अजीबो-गरीब घटनाक्रम चला। लंबे इंतजार के बाद पार्टी ने पूर्व केंद्रीय मंत्री तारिक अनवर को प्रत्याशी घोषित किया। मगर उनकी जरा सी चूक ने प्रदेश के कार्यकारी अध्यक्ष डॉ. समीर सिंह की किस्मत का ताला खोल दिया। पार्टी विधानमंडल दल के नेता सदानंद सिंह के आवास पर जुटे कांग्रेसी दिग्गजों को जैसे ही पता चला कि तारिक अनवर दिल्ली के वोटर है, वे फिर से प्रत्याशी बनने की जुगत में जुट गए। करीब ढाई-तीन घंटे चली राजनैतिक मशक्कत के बाद आखिरकार बाजी समीर कुमार सिंह के हाथ लगी।
जब कांग्रेस ने तारिक अनवर को प्रत्याशी घोषित किया, तो वो दिल्ली में थे। सुबह पहली फ्लाइट से पटना आने के बाद वे सदानंद सिंह के आवास पर पहुंचे। बिहार के प्रभारी सचिव अजय कपूर, प्रदेश अध्यक्ष डॉ. मदन मोहन झा सहित अन्य पार्टी नेता भी वहां पहुंच गए। नामांकन पत्र को भरते वक्त जब वोटर लिस्ट की सत्यापित कॉपी मांगी, तो उन्हें दिल्ली की वोटर लिस्ट की कॉपी दी गई।
बस यहीं से नाटकीय घटनाक्रम शुरू हुआ। तारिक अनवर और उनके समर्थक यह पता करने में जुट गए कि दिल्ली की वोटर लिस्ट से नामांकन मान्य होगा या नहीं। निर्वाचन कार्यालय से जानकारी लेने के बाद श्री अनवर ने कोई दूसरा प्रत्याशी उतारने की रजामंदी दे दी।  वहीं, तमाम दावेदार फिर दिल्ली फोन घनघनाने लगे। अजय कपूर ने बदले घटनाक्रम से आलाकमान को अवगत करा दिया। बिहार प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल से भी कई दौर फोन पर वार्ता हुई। एकबारगी लगा कि बाजी प्रदेश अध्यक्ष या विधान मंडल दल के नेता के हाथ लग सकती है। मगर ऐसा नहीं हुआ। समीर सिंह के रूप में क्षत्रिय समाज पर दांव लगाकर पार्टी ने अगड़ों को साधने को कदम बढ़ा दिया। इसमें बिहार प्रभारी की भूमिका महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
जरा आप भी सोचिए। जिस कांगे्रस में वकीलों की लंबी फौज है। कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, सलमान खुर्शीद जैसे तारणहार वकील हों, उसके नेता को इत्ती भी जानकारी नहीं। बता दें कि तारिक अनवर जब से सांसद बने थे, उन्होंने अपना मतदाता सूची में नाम बिहार से हटा लिया और दिल्ली के वोटर हो गए। लगा कि दिल्ली तो पूरी उम्र साथ निभाएगी। लेकिन, नियति को कौन जानता है ? है न। जिस बिहार के मतदाता सूची से अपना नाम कभी हटाया था, उसी सूची ने आज उन्हें कहीं का नहीं छोडा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *