शिल्प, श्रद्धा और शाश्वत आध्यात्मिकता का अद्भुत संगम है राणकपुर महातीर्थ: सांसद बृजमोहन

Ranakpur Mahatirtha is a wonderful confluence of craftsmanship, devotion and eternal spirituality: MP Brijmohanचिरौरी न्यूज

नई दिल्ली: राजस्थान प्रवास पर पहुंचे सांसद एवं वरिष्ठ भाजपा नेता श्री बृजमोहन अग्रवाल ने रविवार को भक्ति और कला के अद्भुत संगम चतुर्मुख जिनप्रासाद, श्री राणकपुर महातीर्थ में दर्शन किए।

महातीर्थ में पहुंचे सांसद बृजमोहन का प्रबंध समिति द्वारा आत्मीय और स्नेहपूर्ण स्वागत किया गया। समिति सदस्यों ने उन्हें जिनालय की प्राचीन परंपरा, निर्माणकला और आध्यात्मिक महिमा से अवगत कराया, जिसे सांसद अग्रवाल ने जीवन का अनुपम और अविस्मरणीय अनुभव बताया।

सांसद बृजमोहन ने कहा कि अरावली पर्वतमाला की गोद में स्थित राणकपुर महातीर्थ न केवल जैन समाज की आस्था का शिखर है, बल्कि भारतीय शिल्पकला की अप्रतिम प्रतिभा, सूक्ष्म नक्काशी और दिव्यता का ऐसा जीवंत प्रमाण है, जो विश्व धरोहर की किसी भी सूची में स्वाभाविक रूप से स्थान पाने योग्य है।

उन्होंने प्रभु आदिनाथ के चतुर्मुख स्वरूप के दर्शन को आत्मा को शांति, निर्मलता और प्रकाश से भर देने वाला दिव्य अनुभव बताया।
चारों दिशाओं से दर्शन कराती 72 इंच की विशाल प्रतिमाएँ, 84 देवकुलिकाओं की अलौकिक व्यवस्था, मेघनाद मंडपों के 40 फीट ऊँचे स्तंभ, मोतियों-से झरते तोरण, सूक्ष्म नक्काशी और गुम्बदों में उकेरी दिव्य देव आकृतियों ने उन्हें विशेष रूप से प्रभावित किया।

सांसद बृजमोहन ने कहा कि “1444 भव्य स्तंभों में से एक भी स्तंभ एक-दूसरे से समान नहीं है। यह केवल मंदिर नहीं, बल्कि आत्मा को अहंकार से मुक्त कर जीवन को ऊर्ध्व दिशा देने वाला आध्यात्मिक प्रकाश-स्तंभ है।

उन्होंने धरणाशाह की अद्वितीय भक्ति, शिल्पियों की अनुपम कला और लगभग पचास वर्षों (1446–1496) तक चले निर्माण के संकल्प को भारतीय इतिहास की अमूल्य धरोहर बताया। लोककथाओं में वर्णित निन्यानवे लाख की लागत को उन्होंने उस कालखंड की असाधारण भव्यता और आस्था का प्रतीक कहा।

प्रभु आदिनाथ के समक्ष प्रार्थना करते हुए सांसद बृजमोहन ने कहा “प्रभु सभी के जीवन में शांति, करुणा, सद्बुद्धि और सद्भावना का दीपक सदैव प्रज्वलित रखें।”

उन्होंने राणकपुर महातीर्थ की पावन धरा को नमन करते हुए कहा कि भारत की आध्यात्मिक चेतना को जो शक्ति ऐसे धामों से मिलती है, वही हमारी सांस्कृतिक पहचान को सदैव अमर और अविचल बनाए रखती है।

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