बिहार की एक झलक अपराध की तरफ

शिवानी रज़वारिया

“क्यूं करें विचार, ठीके तो है नीतीश कुमार”, ये बातें मैं नहीं कह रही हूं, ये बातें जदयू के समर्थक कह रहे हैं। अब बिहार में सब कुछ ठीक है। क्या सच में बिहार में बहार है या ये भी बस बह्साने वाली सरकार है। नेशनल क्राइम ब्यूरो के उन आंकड़ों के जानने के बाद भले ही लोग कहें की बिहार में बहार है, नीतीश कुमार है, पर सच्चाई किसी से छुपी नहीं है।

हां हम ये कह सकते है कि घटनाएं लॉकडॉउन में कम हुई हैं, पर जैसे जैसे लॉकडाउन अनलॉक में बदला कानून व्यवस्था की सच्चाई सबके सामने आने लगी। सौभाग्य है बिहार का, कि वहां चुनाव है पर शायद जनता और राजनीतिक दल बिहार की कानून व्यवस्था पर बिहार सरकार को घेरने का साहस भी नहीं दिखाती और दिखाए भी कैसे मुख्य विपक्षी पार्टी के नेता तेजस्वी यादव ने खुद ही बिहार की जनता से माफी मांग ली।

असल सच्चाई तो ये है कि जब बात बिहार की कानून पर आती है तो सरकार से लेकर तमाम सुरक्षा एजेंसियां खुल कर कहती है कि यहां सब सुरक्षित है, इसके पीछे कोई नीतीश कुमार के कड़े शासन को मानता है तो कोई इसे सफेद झूठ कहता है।

चलिए अब एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार बिहार की कानून व्यवस्था को देखते हैं। आंकड़ों की माने तो बिहार में कानून व्यवस्था हर साल से ज्यादा इस साल सही रही है क्योंकि अपराध के मामले में बिहार छठवें से पांचवे स्थान पर रहा है। एनसीआरबी द्वारा जारी आंकड़े में  हत्या के मामले में बिहार की अपराध दर 2.5 रही जो कि 2017 में 2.7 थी। वहीं इसका राष्ट्रीय औसत 2.2 है। हत्या के मामले में बिहार देशभर में 11 वें नंबर पर है। इसी तरह डकैती में 0.2 की अपराध दर के साथ बिहार तीन राज्यों के साथ 16 वें स्थान पर है। लूट में बिहार की अपराध दर 1.5 रही और वह दो राज्यों के साथ 17 वें पायदान पर है।  चोरी व सामान्य अपहरण में 15 वां, महिला अपराध में 29 वां और बलात्कार में बिहार का 36 वां स्थान है, लेकिन बिहार सरकार की उपलब्धि ये भी है कि यहां 2019 में किसी भी किसान ने आत्महत्या नहीं की, इस रिपोर्ट के बाद हम ये कह सकते हैं कि बिहार सरकार उतनी सफल तो नहीं हुई है पर राष्ट्रीय जनता दल के शासन काल से ठीक ही रही।

अब एक सवाल ये भी उठता है कि क्यों बिहार में बढ़ते अपराध पर विपक्ष सत्ता पर उस तरह हमलावर नहीं दिखता,जैसा दिखना चाहिए।

 

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