योग अपनाना है क्योंकि कोरोना भगाना है
राजेंद्र सजवान
जिस महामारी की कोई दवा नहीं बन पाई और निकट भविष्य में भी उम्मीद कम ही नज़र आ रही है, उसके बारे में कहा जा रहा है कि कोरोना भगाना है तो योग अपनाना है। योग गुरु, जानकार और एक्सपर्ट इस निष्कर्ष पर पहुँच चुके हैं कि कोरोना से यदि कोई बचा सकता है तो वह सिर्फ़ और सिर्फ़ योग ही है। उनके अनुसार योग करने वालों पर यह वायरस असर नहीं डाल सकता। दबी ज़ुबान में ही सही अमेरिका, ब्रिटेन, रूस, चीन और जर्मनी के वैज्ञानिक और डाक्टर योग द्वारा चिकित्सा की भारतीय पद्वति को जीवन रक्षक और कोरोना भक्षक के रूप में स्वीकार करने लगे हैं।
भारत में योग की परंपरा उतनी ही पुरानी है जितनी कि भारतीय संस्कृति। इसके साक्ष्य पूर्व वैदिक काल और हड़प्पा-मोहनजोदाड़ो की सभ्यताओं से भी पहले मिल जाते हैं। ऐसा माना जाता है कि भारत में योग संस्कृति 10 हजार साल से भी अधिक पुरानी है और भारत में बौद्ध धर्म के साथ योग चीन, जापान, तिब्बत, दक्षिण पूर्व एशिया और श्री लंका में फैला। भारत में योग की साधना हर काल में होती आई है और अब कोरोना काल में इस विधा का महत्व और अधिक बढ गया है। माना यह जा रहा है कि जब तक कोविड 19 का टीका नहें खोज लिया जाता योग पर भरोसा किया जा सकता है। यह सिर्फ़ भारतीय योग गुरुओं, जानकारों और एक्सपर्ट्स का मानना नहीं अपितु विदेशी और ख़ासकर यूरोपीय देश भी इस जीवन दायी भारतीय योग विज्ञान की तरफ देखने लगे हैं।
प्राचीन ग्रंथों के अनुसार योग जीवन को व्यवस्थित और नियमवद्ध ढंग से जीने का विज्ञान है। ये संस्कृत के शब्द ‘युज’ से बना है, जिसका अर्थ है मिलन। भगवान शिव को योग का संस्थापक (आदि योगी) कहा जाता है और पार्वती योग की उनकी पहली शिष्या थीं। भारतीय ऋषि मुनियों ने शिव पार्वती का अनुसरण कर सैकड़ों हज़ारों साल योग द्वारा मनुष्य जाति उद्दार किया और सत्य और तप के माध्यम से ब्रह्मांड के रहस्यों का पता लगाते आए हैं।
भारत के प्रयासों से पहली बार 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र संघ ने 21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने का आह्वान किया। अब हर साल योग दिवस मनाया जाता है और 2020 का 21 जून इसलिए खास बन गया है क्योंकि पूरा विश्व कोरोना महामारी की चपेट में है और हज़ारों लाखों जीवन वायरस के शिकार हो रहे हैं, जिन्हेंयदि कोई बचा सकता है तो योग है, ऐसा योग में विश्वास करने वालों का मानना है।
कोरोना का संक्रमण उन लोगों को जल्दी अपना शिकार बना रहा है, जिनकी इम्यून पावर बहुत कमजोर है और एक शोध में यह पाया गया कि प्राणायाम के जरिए इम्यून सिस्टम को मजबूत किया जा सकता है। ख़ासकर, कपालभाटी, अनुलोम विलोम और भास्त्रिका जैसे प्रचलित प्राणायाम रोजाना करीब आधे घंटे तक करें। कपाल भाति प्रणायाम को करने से रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होगी और हम किसी भी प्रकार के संक्रमण से बचे रहेंगे।अनुलोम विलोम से श्वसन क्रिया बेहतर होती है और शरीर की इम्यूनिटी मजबूत हो जाती है। भस्त्रिका प्रणायाम को करने से शरीर की कोशिकाएं स्वस्थ बनी रहती हैं और श्वसन क्रिया से जुड़ी कोई भी बीमारी नहीं होगी और आप कोरोना वायरस के संक्रमण से बचे रहेंगे।
भारतीय नज़रिए से यह अच्छी बात है कि समय रहते और कोरोना की घुसपैठ से पहले ही देश में योग के लिए माहौल बन चुका था। विदेशों में भी योग किसी ना किसी रूप में प्रचलित हो गया था। लेकिन यह भी कटु सत्य है कि भारत योग गुरु होने के बावजूद भी अपनी इस कला से आत्मसात नहीं हो पाया है। भले ही अंतरराष्ट्रीय योग दिवस पर तमाम तामझाम जोड़ा जाता है, करोड़ों खर्च किए जाते हैं, मीडिया बढ़ा चढ़ा कर भारतीयों के योग प्रेम का प्रचार करता है लेकिन असलियत कुछ और ही है। नेता, मंत्री, प्रधानमंत्री और तमाम गणमान्य लोग विविध पोज़ बना कर और भावभंगिमाएँ दिखा कर अपने योग प्रेम को दर्शाते हैं लेकिन धरातल कुछ और ही नज़र आता है। कई लोगों और विशिष्ट व्यक्तियों को तो यह भी पता नहीं कि उन्होने पिछली बार कब कोई योगासन किया था।
लेकिन आज की परिस्थितियों में योग निरोग रहने का एकमात्र माध्यम है। भले की कोविड 19 की दवा मिल जाए तब भी योग से बढ़ कर कोई रामबाण नहीं हो सकता। अब तो यह नारा भी दिया जाने लगा है”कोरोना भगना है तो योग अपनाना है” अर्थात मानव जाति यदि निरोग रहना चाहती है तो योग को हर हाल में अपनाए वरना आज कोरोना है तो कल कोई और बीमारी या महामारी घेर सकती है।
(21 जून को अंतरराष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर sajwansports .com( क्लीन बोल्ड )में योग से जुड़े कुछ साधकों के अनुभवों द्वारा यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि योग करने से कैसे बीमारियों और महामारियों से बचा जा सकता है और योग करने के क्या – क्या फायदे हैं)।