वायु प्रदूषण: कारण, दुष्प्रभाव, बचाव और होमियोपैथिक चिकित्सा

Delhi's air is very bad on Diwali morning, Environment Minister will hold review meetingडॉ एम डी सिंह

सरकार  द्वारा  अनलॉक  की प्रक्रिया पूरी  करने के बाद अब  फैक्टरियां, दफ्तर, सड़क, रेल, हवाई यातायात, आदि सामान्य रूप से चलने से वातावरण में वायु प्रदूषण में इज़ाफ़ा रिकॉर्ड किया जा रहा है । इसी समय हर साल किसान पराली खेतों में जलाते हैं जिससे महानगरों में प्रदूषण कई गुना बढ़ जाता हैं।

राजधानी दिल्ली सहित देश के अधिकतर  शहरों  के आसमान  में धुएं, धूल, एसिड से भरी जहरीली हवा की परत बार बार खतरनाक  स्तर  को पार कर रही है  तथा अनेक शहरों की हवा साँस लेने लायक नहीं रह गई है। वायु  में प्रदूषण  आगामी दिनों में  बद  से बदतर  हो सकता है। हालाँकि   वायु प्रदूषण  से सेहत को होने वाले नुकसान  के बारे में ज्यादातर लोग जागरूक  हैं लेकिन इसके बचाव के लिए कोई प्रभावी उपाय करने में ज्यादातर परहेज करते हैं जबकि प्रदूषण हमारे शरीर में अनेक बीमारियों को दाबत देता है।

वायु प्रदूषण के कारण –

1- धूल —

क- गर्मी के दिनों में तेज हवा और बवंडर के साथ उठने वाली धूल और रेत ।

ख- कच्ची सड़कों पर वाहनों के पहिए, पशुओं के पैरों से उड़ने वाली धूल।

ग- खनन उद्योग से निकलने वाले हेवी मेटल के कंण। जैसे कोयला, अभ्रक, पत्थर, बालू ,लौह आदि की खदानों से निकलने वाली धूल।

घ-सीमेंटमिल, धान मिल, फ्लोर मिल, आदि से निकलने वाली धूल और राख।

ङ– पराली जलने, वनों में लगी आग, बारूदी विस्फोटों से लगी आग के साथ उड़ने वाली राख एवं कार्बन इत्यादि।

2-धुआँ –

क-मोटर वाहनों , जेनरेटर्स , डीजल पंप , दो पहिया मोटर वाहन ,कोयले की भट्ठियों से निकलने वाला धुआँ।

ख- ईट भट्टे की चिमनियों ,कारखानों के बॉयलर की चिमनियों, रेल के डीजल इंजन से निकलने वाला धुआँ ।

ग- बारूदी विस्फोटों से उसने वाला धुआँ, कूड़ा करकट जलाने से उठने वाला धुआँ, वनों में लगी आग से उठने वाला धुआँ और कृषकों द्वारा पराली जलाने के कारण उठने वाला धुआँ इत्यादि ।

घ-प्लास्टिक फैक्ट्री ,केमिकल फैक्ट्री, खनिज तेल डिपो, एवं बड़ी इमारतों में लगी आग एक दिन में ही वायु को इतना प्रदूषित कर देती हैं जितना 10 दिन जली पराली भी नहीं कर पाती।

3-जहरीली गैस-

कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, तरह-तरह की इंसेक्टिसाइड्स एवं पेस्टिसाइड्स के छिड़काव से निकलने वाली गैसों द्वारा वायु का प्रदूषण, सिगरेट एवं हुक्का पार्लर चेंज करने वाली निकोटीन। कारखानों से लीक होने वाली विभिन्न प्रकार की गैसें जैसे क्लोरीन, बेंजीन इत्यादि।

4-बदबू-

बरसात के बाद जलजमाव के कारण होने वाली शरण से उठने वाली बदबू, जगह जगह मृत पशुओं के शरीर में हो रही शरण की वजह से उत्पन्न बदबू ,बाढ़ के कारण सीवर लाइन से बाहर आ गए कचड़े से बदबू। मानवीय तथा औद्योगिक उत्सर्जन से उत्पन्न होने वाली बदबू से भी वायु प्रदूषित होती है।

वायु प्रदूषण से उत्पन्न होने वाले रोग:

वायु जीवन के लिए सबसे महत्वपूर्ण अवयवों में से एक है। इसके बिना न मनुष्य जीवित रह सकते हैं न पशु- पक्षी, न पेड़ पौधे। इन सब का एक साथ पूर्ण रूप से स्वस्थ रहना जैवजगत एवं प्रकृति दोनों के लिए अनिवार्य है। आज अकेले वायु के प्रदूषित हो जाने के कारण इन सब का जीवन संकटग्रस्त हो गया है।

उत्पन्न होने वाली बीमारियां-

1- एलर्जी- धूल, धुआं, जहरीली गैसों एवं गंध से किसी को, किसी भी उम्र में असहिष्णुता संभव है। जो निम्नवत हैं-

A- स्वसन तंत्र की एलर्जी-

एलर्जिकल कफ एंड कोराइज़ा, एलर्जिकल राइनाइटिस, बार बार छींक आना नाक से पतला अथवा गाढ़ा पानी निकलना, ब्रोंकाइटिस,ऐस्थमा, इंफाइसेमा, एवं न्यूमोनिया इत्यादि।

B-त्वचा संबंधी एलर्जी-

एलर्जीकल डर्मेटाइटिस, अर्टिकेरिया, एग्जिमा, त्वचा का सूखा, रूखा एवं धब्बेदार हो जाना, पानी भरे फफोले निकल आना, त्वचा और म्यूकस मेंब्रेन में दरारें पड़ जाना, एवं शोथ इत्यादि।

2–पाचन संबंधी गड़बड़ियां-

बुखार के साथ उल्टी ,मिचली, पेट दर्द, दस्त लग जाना, भूख की कमी इत्यादि।

3– न्यूरोलॉजिकल गड़बड़ियां-

जहरीली गैसों के कारण विभिन्न प्रकार की तंत्रिका तंत्र संबंधी गड़बड़ियां उत्पन्न हो जाती हैं जिनमें चक्कर आना, बेहोशी किसी एक अंग अथवा पूरे शरीर की लकवा ग्रस्तता, घ्राण एवं श्रवण शक्ति का समाप्त हो जाना, एवं सुस्ती बेचैनी इत्यादि।

4- नेत्र संबंधी रोग-

आंखों में जलन एवं गड़न ,कंजेक्टिवाइटिस, दूर अथवा नजदीक दृष्टि दोष ,आंख से पानी निकलना, पलकों का सूज जाना , मोतियाबिंद एवं ग्लाकोमा इत्यादि।

बचाव:

1- मुंह पर मास्क और आंखों पर चश्मा लगा कर ही बाहर निकलें।

2- यदि कोई व्यक्ति धूल धुआं और गंध से हाइपर सेसटिंव हो तो वायु में प्रदूषण की मात्रा ज्यादा होने पर घर से बाहर ना निकले।

3- जिन्हें पहले से ही श्वसन तंत्र की कोई बीमारी हो तो वह प्रदूषित एरिया में जाने से परहेज करें।

4- कूड़े करकट का निस्तारण सुरक्षित ढंग से किया जाय। रिहायशी इलाकों के पास उन्हें कभी ना जलाया जाय।

5- औद्योगिक क्षेत्रों के आसपास रिहायशी मकानों को बनने से सख्ती के साथ रोका जाय। एवं उद्योगों को प्रदूषण नियमों का ठीक से कार्य में करवाया जाय।

6- किसानों को पराली जलाने से जबरदस्ती रोकने की जगह उससे होने वाले कृषि उपज संबंधी नुकसान को समझाया जाए और उनका सहयोग किया जाए तो वे आसानी से मान जाएंगे । जो पराली आज समस्या बनी हुई है वही गांवों में जाड़े से बचने के लिए तापने और बिछावन के साथ-साथ पशुओं का आहार रही है ।पूरे 3 महीने उस से बनी आग को ताप कर भी किसान बहुत बीमार नहीं होते।

7- जब तक पराली का सही उपयोग नहीं ढूंढ लिया जाता, उसको हफ्ते में एक दिन एक साथ जलवाया जाए जो शहर में छुट्टी का दिन हो। और उस दिन शहर में सिर्फ इलेक्ट्रिक गाड़ियों को चलने दिया जाय और लोगों को घर में छुट्टियां मनाने के लिए कहा जाय।

8- घरों में व्यायाम, प्राणायाम और योगासन द्वारा अपनी इम्यूनिटी को बढ़ाकर प्रदूषण से काफी हद तक लड़ा जा सकता है।

9- आंखों को कई बार ठंडे पानी से छीटा मार कर धोया जाय।

10- जितना संभव हो आसपास पेड़ पौधे लगाएं। घर के भीतर और घर के बाहर भी। और उन्हें पानी के फुहारों से समय- समय पर धोया जाय। ताकी उन पर धूल ,धुआं , राख और कार्बन इत्यादि ना जमने पावें जिससे पेड़ों की पत्तियां प्रकाश संश्लेषण कर सकें और अधिक से अधिक ऑक्सीजन का उत्सर्जन करें।

11- त्वचा को एलर्जी से बचाने के लिए भी प्रदूषित वायु से बचने का प्रबंध करना होगा। त्वचा सूखी न रहे इसके लिए अच्छे तेल का प्रयोग करते हुए स्नान किया जाय। और जाड़े के दिनों में शरीर को अच्छी तरह ढंक के रखा जाय। जिन्हें स्किन एलर्जी है वह कोहरे में बाहर टहलने से अपने को रोकें। क्योंकि प्रदूषित वायु की धूल राख एवं हेवी मेटल्स के कंण भाग कुहरे पर चिपक कर नीचे चले आते हैं और अनेक प्रकार के स्वसन एवं त्वचा एलर्जी उत्पन्न करते हैं।

12- दुर्गंध अनेक प्रकार से पाचन संबंधी बिमारियां पैदा करती है। जिसमे भूख की कमी, मिचली, उल्टी और अतिसार प्रमुख हैं। अपने रहने के आसपास सफाई का ध्यान रखा जाय। जल जमाव न होने दिया जाय सीवर को साफ़ रखा जाय ताकि सड़ांध की गंध लेकर हवा घर तक ना पहुंचने पाए।

होमियोपैथिक औषधियां-

वायु प्रदूषण और एलर्जी से बचाने के लिए-

ऐमब्रोसिया ए 10 M,पोथास फोटिडा30,सालिडैगो वर्गा 200,सल्फर 1M, बैसिलिनम 1M, स्कूकम चक 30,सैंगुनेरिया कैन200,अमोनियम कार्ब 200,कैली बाईक्रोम, आर्सेनिक एल्बा,यूकेलिप्टस जी Q,नक्स वोमिका200, इपीकाक30, कार्बोवेज200, ब्यूफो राना 200, रोबीनिया30, ऐसपीडोस्पर्मा Q,ऐंटीपाइरिन 200,रेडियम ब्रोम 200 ,यूफ्रेशिया Q एवं 30 तथा मेन्था पिपराटा इत्यादि होम्योपैथिक औषधियां पूर्णतया कारगर सिद्ध होती हैं।

(लेखक गाजीपुर उत्तर प्रदेश में होमियोपैथिक चिकित्सक हैं. होमियोपैथिक दवाई बिना चिकित्सक की राय से न इस्तेमाल करें।)

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