सदी के महानायक अमिताभ बच्चन: ओल्ड जनरेशन से जेन-ज़ी तक के दिलों पर राज करने वाला अभिनेता

चिरौरी न्यूज
नई दिल्ली: जब बात भारतीय सिनेमा के सबसे प्रभावशाली कलाकारों की होती है, तो एक नाम हर पीढ़ी की ज़ुबान पर आता है वह है अमिताभ बच्चन। उन्होंने 70 के दशक में एंग्री यंग मैन बनकर जिस सफर की शुरुआत की, वह आज तक थमा नहीं है। बूढ़े हों या बच्चे, मेट्रो सिटीज़ हों या गांव, अमिताभ हर दिल पर राज करते हैं।
ओल्ड जनरेशन उन्हें दीवार, शोले और सिलसिला में देखकर बड़ा हुआ, मिड जनरेशन ने उन्हें बागबान, ब्लैक और कभी खुशी कभी ग़म में सराहा, तो आज की जेन-ज़ी उन्हें पीकू, पिंक, ब्रह्मास्त्र और कौन बनेगा करोड़पति के ज़रिए पहचानती है।
वे सिर्फ अभिनेता नहीं हैं, एक संवेदना, एक संघर्ष और एक संस्कृति हैं, जो हर दौर के साथ खुद को नया बनाते चले जा रहे हैं। इस जन्मदिवस पर आइए जानते हैं कैसे अमिताभ बच्चन ने हर पीढ़ी के दिल में अपनी जगह बनाई और क्यों वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं जितने पांच दशक पहले थे।
संघर्ष से सुपरस्टार बनने तक
अमिताभ बच्चन का जन्म 11 अक्टूबर 1942 को उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (तत्कालीन इलाहाबाद) में प्रसिद्ध कवि हरिवंश राय बच्चन के घर हुआ था। शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने कोलकाता में नौकरी की, लेकिन उनका मन अभिनय में रमता था। कई बार रिजेक्ट होने के बाद उन्होंने 1969 में फ़िल्म सात हिंदुस्तानी से अपना डेब्यू किया। यह फ़िल्म बॉक्स ऑफिस पर सफल नहीं रही, लेकिन अमिताभ के अभिनय ने आलोचकों का ध्यान खींचा।
उनकी पहली बड़ी सफलता 1973 में आई ज़ंजीर के साथ, जिसमें उन्होंने ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि को जन्म दिया। 1970 के दशक में जब बॉलीवुड में रोमांटिक हीरोज़ का दौर था, तब अमिताभ बच्चन ने ज़ंजीर (1973) के ‘विजय’ के रूप में एक ऐसा किरदार निभाया जो व्यवस्था से लड़ता है, अन्याय के खिलाफ खड़ा होता है और समाज के गुस्से को आवाज़ देता है। इस ‘एंग्री यंग मैन’ की छवि ने उन्हें तुरंत आम जनता का हीरो बना दिया।
दीवार, शोले, त्रिशूल, और डॉन जैसी फिल्मों ने उन्हें न सिर्फ सुपरस्टार बनाया, बल्कि हर घर का हिस्सा बना दिया। उस दौर के युवाओं के लिए वे क्रांति और आत्मसम्मान के प्रतीक थे।
अभिनय की विविधता
अमिताभ बच्चन के अभिनय की सबसे बड़ी खूबी है उनकी विविधता। वह जितने सहजता से गंभीर भूमिकाएं निभाते हैं, उतनी ही सादगी से हास्य, रोमांस या खलनायकी भी कर जाते हैं।
दीवार, शोले, कालिया, डॉन और त्रिशूल जैसी फ़िल्मों में उनका रौबदार और विद्रोही किरदार उन्हें युवाओं का हीरो बना गया। वहीं सिलसिला, मिली, चुपके चुपके, और कभी कभी जैसी फ़िल्मों में उन्होंने संवेदनशील और रोमांटिक भूमिकाएं निभाकर अपनी अभिनय सीमा को और विस्तार दिया। अग्निपथ में ‘विजय दीनानाथ चौहान’ जैसा गहरा किरदार हो या ब्लैक में एक अंधे-बहरे शिक्षक की भूमिका, अमिताभ ने हर रोल को जीवंत किया है।
उनकी हालिया फ़िल्मों में पीकू, पिंक, ठग्स ऑफ हिंदोस्तान और गुडबाय जैसी फ़िल्में यह दर्शाती हैं कि उम्र के साथ उनका अभिनय और भी परिपक्व हुआ है। शमिताभ और चेहरे जैसी फ़िल्मों में उन्होंने आत्मविश्लेषणात्मक और प्रयोगधर्मी भूमिकाएं निभाईं, जो एक कलाकार के रूप में उनकी निरंतरता को दर्शाती हैं।
संवाद अदायगी और आवाज़ का जादू
अमिताभ बच्चन की आवाज़ उनकी पहचान बन चुकी है। यह गंभीर, गूंजदार और प्रभावशाली है। चाहे दीवार का “मैं आज भी फेंके हुए पैसे नहीं उठाता” हो या फिर फिल्म सरकार का “मैं जो कहता हूँ, वो करता हूँ”, उनके संवाद आज भी दर्शकों की ज़ुबान पर हैं।
उन्हें कई डबिंग प्रोजेक्ट्स, डॉक्यूमेंट्रीज़ और कविताओं की रिकॉर्डिंग में भी लिया गया है। यहां तक कि उनकी आवाज़ को नेशनल हेरिटेज के रूप में संरक्षित करने की मांग भी उठी है।
2000 के बाद: नई भूमिका, नई पहचान
सदी के मोड़ पर अमिताभ बच्चन ने एक बार फिर खुद को नए रूप में प्रस्तुत किया। कौन बनेगा करोड़पति से उन्होंने छोटे पर्दे पर कदम रखा और देश के हर कोने में पहुंच गए। उनका गर्मजोशी से भरा अंदाज़, गहरी आवाज़ और आदरपूर्ण व्यवहार उन्हें परिवार का हिस्सा बना गया। इसी दौर में उन्होंने बागबान, ब्लैक, वक्त, सत्याग्रह जैसी फिल्मों में वरिष्ठ किरदार निभाए और सिद्ध किया कि उम्र के साथ अभिनय और गहराता है।
आज की पीढ़ी के लिए भी उतने ही प्रासंगिक
आज जब जेन-ज़ी तेजी से ओटीटी और डिजिटल दुनिया की तरफ बढ़ रही है, तब भी अमिताभ बच्चन का आकर्षण कम नहीं हुआ है। पीकू में एक वृद्ध पिता की जिद, पिंक में लड़कियों के हक़ के लिए लड़ा वकील, गुलाबो सिताबो में बनारसी मकान मालिक, हर किरदार में वे पीढ़ियों को जोड़ने वाले पुल की तरह नजर आए।
आज की युवा पीढ़ी उन्हें इंस्टाग्राम और ट्विटर पर फॉलो करती है, उनके विचारों को पढ़ती है और उनसे प्रेरणा लेती है। वे सिर्फ सिनेमा के नहीं, बल्कि डिजिटल युग के भी सितारे बन चुके हैं।
छोटे पर्दे पर भी बड़ा नाम
1990 के दशक में जब अमिताभ का फिल्मी करियर थोड़ी मंदी में गया, तब उन्होंने खुद को फिर से परिभाषित किया। 2000 में टीवी शो कौन बनेगा करोड़पति से उनकी धमाकेदार वापसी हुई। इस शो ने उन्हें हर घर का चहेता बना दिया। उन्होंने साबित किया कि एक कलाकार का मंच भले बदले, उसका कद नहीं घटता।
पुरस्कार और सम्मान
अमिताभ बच्चन को पद्म श्री, पद्म भूषण, और पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया है। उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार भी मिल चुका है। वह सर्वाधिक बार राष्ट्रीय फ़िल्म पुरस्कार जीतने वाले अभिनेताओं में से एक हैं।
अमिताभ बच्चन सिर्फ एक अभिनेता नहीं हैं, बल्कि एक संस्था हैं। वे प्रेरणा हैं, जुझारूपन का प्रतीक हैं, और सिनेमा की जीवंत परिभाषा हैं। 80 की उम्र पार करने के बाद भी उनका जोश, उनकी ऊर्जा, और उनके अभिनय का स्तर नए कलाकारों के लिए मिसाल है।
उनके जन्मदिवस पर हम उन्हें नमन करते हैं और उनके उत्तम स्वास्थ्य और सृजनात्मक जीवन की कामना करते हैं।
