दाने दाने को मोहताज़ हैं अर्जुन और द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त फुटबॉलर नईम

राजेंद्र सजवान
भारतीय फुटबाल, फुटबाल प्रेमियों और देश के श्रेष्ठ खिलाड़ियों और गुरुओं को सम्मान बाँटने वाली सरकारों के लिए एक दुखद और शायद शर्मसार कर देने वाली खबर यह है कि सैयद नईमुद्दीन की माली हालत ठीक नहीं है और नौबत यहाँ तक आ गई है कि उनके चाहने वाले व्यक्तिगत स्तर पर मदद करने की बात कर रहे हैं। सोशल मीडिया पर बाक़ायदा नईम के लिए आर्थिक मदद देने की गुहार लगाई जा रही है।

आम भारतीय खेल प्रेमी और ख़ासकर फुटबाल से जुड़े खिलाड़ियों और अधिकारियों को बता दें कि हैदराबाद में जन्में नईमुद्दीन इकलौते ऐसे फुटबालर हैं जिसे अर्जुन और द्रोणाचार्य दोनों सम्मान मिले हैं। 1970 के एशियाई खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय फुटबाल टीम की कप्तानी करने वाले नईम ने देश के नामी क्लबों, ईस्ट बंगाल, मोहन बागान, महेंद्रा एंड महेंद्रा और मोहमडन स्पोर्टिंग का प्रतिनिधित्व किया और राष्ट्रीय टीम को सेवाएँ दीं। तत्पश्चात इन सभी कलबों के अलावा राष्ट्रीय टीम के कोच बने। बांग्लादेश में कोचिंग देने का सम्मान भी उनके साथ जुड़ा है।

1962 में हैदराबाद सिटी पुलिस से अपना खेल करीयर शुरू करने वाले नईमुद्दीन लगातार साठ साल तक फुटबाल से जुड़े रहे और भारतीय टीम के खिलाड़ी, कप्तान, कोच के अलावा नामी टीमों के प्रबंधन का भी हिस्सा रहे लेकिन अचानक यह क्या हो गया कि सोशल मीडिया पर उनके लिए चंदा जुटाने और आर्थिक मदद देने की गुज़ारिश की जा रही है। हैरानी वाली बात यह है कि एक खिलाड़ी और कोच के रूप में अच्छा ख़ासा वेतन और अनुबंध राशि पाने वाले नईम के साथ आख़िर ऐसा क्या हो गया कि उन्हें दाने दाने के लिए मोहताज होना पड़ा है।

राष्ट्रीय खेल अवार्ड पाने वाले फुटबालर की बदहाली की खबर से खेल हलकों में अलग अलग प्रतिक्रिया व्यक्त की जा रही है। कोई सरकार को कोस रहा है तो कुछ लोग पश्चिम बंगाल सरकार को बुरा भला कह रहे हैं। ईस्ट बंगाल और मोहन बागान जैसे नामी क्लबों को भी कोसा जा रहा है। इतना ही नहीं देश के खेल मंत्रालय के प्रति भी नाराज़गी व्यक्त की जा रही है और आरोप लगाया जा रहा है कि खेल मंत्रालय अपने खिलाड़ियों और कोचों की खोज खबर नहीं लेता।

लेकिन सूत्रों और नईम के कुछ करीबियों की माने तो उनके पतन का कारण लाटरी खेलना रहा है। कोलकाता के एक प्रतिष्ठित पत्र ने तो यहाँ तक कहा है कि लाटरी खेलने की आदत नईम को ले डूबी। नतीजन उनका बैंक ख़ाता खाली हो चुका है। उनके बेटे फज़ुलूद्दीन और सफ़्फुद्दीन अमेरिका में कार्यरत हैं और उन्हें मदद करते हैं लेकिन बार बार बेटों से माँगना नईम को ठीक नहीं लगता। ऐसे में सरकार और फुटबाल को कोसना कदापि ठीक नहीं है। सही मायने में नईम ने अपनी क़ाबलियत और उँची पहुँच से जो कुछ पाया शायद ही किसी फुटबाल खिलाड़ी या कोच को मिला हो।

कुछ समकालीन खिलाड़ी और साथी नईम से सहानुभूति रखते हैं लेकिन उन लोगों की निंदा करते हैं जोकि बेवजह सरकारों और फुटबाल फ़ेडेरेशन को ज़िम्मेदार बता रहे हैं। उनके अनुसार प्रसिद्धि और उँचाई हर एक को हज़म नहीं होती। शायद यही नईम के साथ हुआ है। यदि लाटरी खेलने और जैक़पोट मारने की उम्मीद पर जीना नईम की कमज़ोरी रही है तो इसमें किसी का क्या दोष! जो लोग उनके लिए चंदा जुटाने की बात कर रहे हैं उनकी भावनाओं को समझा जा सकता है। लेकिन एक नामी हस्ती के प्रति ऐसा ठीक नहीं होगा। बेहतर यह होगा कि फुटबाल फ़ेडेरेशन और उनके पुराने क्लब आगे आएँ और मदद का हाथ बढ़ाएँ और नईम को एक और मौका दें।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं. इनके लिखे लेख आप www.sajwansports.com पर भी पढ़ सकते हैं.)

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