नींव के पत्थर को मत खींच

निशिकांत ठाकुर

जब हजारों काले पत्थर खुद को जमीन में गाड़ने के लिए समर्पित होते हैं, तभी उनके ऊपर ऐसा संगमरमर का स्वप्न भवन (ताज महल) खड़ा हो पाता है। ऐसा भवन अपने सौंदर्य में जगमगाया करता है। यह इमारत जब तक खड़ी है, तबतक हमारे जैसे अनेक यात्री यहां आते रहेंगे, इस भवन के सौंदर्य से चकित होते रहेंगे, संतुष्ट होते रहेंगे। लेकिन, इस शिल्प सौध को खड़ा रखने के लिए जो हजारों काले पत्थर नींव में गाड़े गए हैं, उनकी ओर किसी का ध्यान नहीं जाएगा।

औरंगजेब जब हिंदुस्तान का बादशाह बना तो उन्होंने अपने 50वें जन्मदिन पर देश के जिन विशिष्ट व्यक्तियों को आगरा बुलाया, उनमें शिवाजी महाराज भी थे। रामसिंह के साथ जब शिवाजी महाराज ताजमहल देखने पहुंचे, उसी समय उन्होंने रामसिंह से यह कहा था। बिल्कुल यही हाल आज देश के सत्तारूढ़ नेताओं का हो गया है जिन्होंने गाली दे— देकर लगभग मृतप्राय कांग्रेस को फिर से जीवित कर दिया। अब उन्हें कौन समझाए कि बार—बार पंडित जवाहरलाल नेहरू और राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को कोसने से उनकी साख बढ़ती नहीं है, बल्कि उन देशभक्तों द्वारा ही बनाए गए मजबूत नींव पर ही उन्हीं की इतनी कमी निकालकर उन्हें बदनाम करने के तरह—तरह के आरोप लगा रहे हैं। हम आप तो आजाद भारत में जन्म लेने वाले आमजन हैं, लेकिन जिन्होंने हमें इतना मुखर होने का अधिकार दिया, अपने प्राणों की आहुति दी, उन्हीं पर कीचड़ उछालकर कितने दिनों तक उनके ही विरुद्ध जनता को भड़कते रहेंगे! इसलिए अब आपके ही समर्थक अब सरेआम कहने लगे हैं कि जनता अब यह सुन—सुन कर आजिज आ गई है कि नेहरू और कांग्रेस ने हिंदुस्तान को बर्बाद कर दिया। अभी हाल ही में एक सत्तारूढ़ दल के दिग्भ्रमित नेता का यह बयान आया कि नेहरू भी पढ़े—लिखे नहीं थे।

उन्होंने कहा कि नेहरू कैम्ब्रिज पढ़ने गए, लेकिन फेल हो गए। उन्हें इस बात की जानकारी तब हुई, जब वह वहां लेक्चर देने गए तो इनके सूत्रों ने बताया। समझ में नहीं आया कि वह लेक्चर लेने गए थे या जासूसी करने! सुनकर ही कोफ्त होती है कि ऐसे नेता अपने कुतर्कों से देश की भोली—भाली जनता को अपनी ओर आकर्षित करके, तालियां बजवाकर आनंदित होते हैं, कुटिल मुस्कान बिखेरते हैं, फिर अख़बार की सुर्खियों में अपने को देखकर सुख का अनुभव करते हैं। क्या सत्तारूढ़ दल में ऐसे लोग भी हैं जो नींव के पत्थर को ही इमारत के नीचे से खींचना चाहते हैं, जबकि उन्हें इसका पता है कि ऐसा करने से पूरी इमारत के जमींदोज होने का खतरा पैदा हो जाएगा।

अभी एक पुस्तक विश्वास पाटिल द्वारा लिखित ‘महानायक’ पढ़ने का अवसर मिला जिसमें कहा गया है, ‘भावुक होकर नेहरूजी ने कहा कि “आजाद हिंद के बचाव के लिए मैं बैरिस्टर का चोला पहनकर स्वयं कोर्ट में खड़ा होऊंगा। इसी पुस्तक में आगे कहा गया है कि “इस बात को मानना ही होगा, अन्यथा बीस वर्ष के दीर्घ अंतराल के बाद मेरे अंत:करण में बैरिस्टर का लिबास पहनने की इच्छा क्यों जाग उठती”। इसी पुस्तक के अगले अध्याय में कहा गया है कि “आजाद हिंद के बचाव पक्ष में देश के पंद्रह जाने-माने कानूनविदों की पंक्ति में बैरिस्टर पंडित नेहरू भी खड़े थे। बीस वर्ष पूर्व लपेटकर रख दिए गए बैरिस्टरी परिधान को जरीदार वस्त्र जैसी शान से उन्होंने (पंडित नेहरू) आज पुनः धारण किया था। उनको इस वेश में देखकर राजाजी और आचार्य कृपलानी मन—ही—मन हंस रहे थे। बैरिस्टर सप्रू, कैलाशनाथ काटजू जैसे एक से बढ़कर एक कानूनविद सैनिक न्यायालय में उपस्थित थे, परंतु भूलाभाई के शरीर के एक एक अणु के सूक्ष्मतम कण को भी इस बात की जानकारी थी कि कानून के इस रण-क्षेत्र में अपने पक्ष का प्रमुख योद्धा किन्हें होना है”।

अब यहां किसकी बात को झुठलाया जाए? जो सत्तारूढ़ दल के नेता आज कह रहे हैं वह सच है या जो लिखित और प्रमाणित पत्रजातों के आधार पर लिखित में कहा गया है उसे सच माना जाए? क्योंकि इस बात की गवाही देने वाले शारीरिक रूप से तो अब कोई जीवित हैं नहीं। जाहिर है, हम पुस्तक की विश्वसनीयता पर शक नहीं कर सकते, क्योंकि पुस्तक लिखने वालों का हाथ सच्चाई और कानून के दायरे से बंधा होता है, परंतु गाल बजाने वाले तथाकथित नेता अपने कहे गए शब्दों से तत्काल मुंह फेर लेते हैं। ऐसा करना आज उन जैसे नेताओं के लिए सामान्य बात हो गई है।

यह सच है कि आज महात्मा गांधी द्वारा अहिंसक आजादी के आंदोलन के लिए बनाई गई कांग्रेस की बुरी स्थिति हो गई या यूं भी कहा जा सकता है कि दुर्गति कर दी गई। एक जैसा हाल कभी किसी का नहीं होता। कांग्रेस का जिन्हें स्तंभ आज जिन लोगों को माना जाता रहा है, उन्हें क्या सुख मिला होगा इस दल को तहस नहस करने में! जाहिर है सत्ता के लिए सब बेहाल रहते हैं, इसलिए अपनी कमियों को ढंकने के लिए एक—दूसरे को टोपी पहनाकर अपने ऊपर लगे दाग को धोने के लिए आतुर हैं। यदि उनमें से किसी को पार्टी चलाने का दम है और सत्ता में वापस आने का विश्वास है तो वह किसी एक पर आरोप क्यों लगाते हैं। ऐसे लोग आगे बढ़कर यह कहने की हिम्मत क्यों नहीं जुटा पाते हैं कि वह साफ—साफ कह सकें— मैं पार्टी को चलाऊंगा, सत्ता में फिर से वापस आऊंगा, इसलिए राहुल गांधी और सोनिया गांधी उन्हें आगे आने दें। लेकिन, वह ऐसा नहीं कर पाते, क्योंकि सच में वह स्वयं बैसाखी के सहारे आगे बढ़ते आए हैं। जब इतने बड़े—बड़े नेताओं की इतनी हिम्मत नहीं होती कि वह खुलकर सामने आएं, तब ऐसी स्थिति में पार्टी की जो दुर्गति होनी चाहिए, हो ही रही है । जब विपक्ष कमजोर होगा, निश्चित रूप से सत्तारूढ़ दल निरंकुश हो जाएगा। यदि कांग्रेस का पराभव इतना कम हो गया है तो ऐसे में उसे याद करना चाहिए कि धनुर्धारी अर्जुन ने जब बृहनला बनकर पैरों में नूपुर बांधे होंगे, तब उस वीर को कैसी व्यथा हुई होगी।

महाकाय शक्तिशाली भीमसेन ने जब हाथ में सिलबट्टा पकड़ा होगा, तब मन में कितनी वेदना हुई होगी। धर्मावतार धर्मराज युधिष्ठिर कीचक का नीचे गिरा हुआ जूता अपने हाथों उसके आगे रखा होगा तब उनके धर्म की क्या दशा हुई होगी। इसलिए विपत्ति को सहनशील धैर्य से सहन करते हैं और इसीलिए उन्हीं का भविष्य उज्ज्वल हुआ करता है। अब यदि कांग्रेस यहां तक सफर करके अपनी यात्रा को स्थायी विराम देना चाहे तो किसी को क्या आपत्ति हो सकती है। लेकिन, उन महापुरुषों का क्या होगा, जिन्होंने इस संगठन का निर्माण दूरगामी राष्ट्रहित के लिए किया था। पार्टी को खंड—खंड में विभाजित करने में जो नेतागण लगे हैं निश्चित रूप से वह भी देश का हित किसी अन्य तरीके से करने की जरूर सोचते होंगे। लेकिन, एकबार और गंभीरता से उन्हें इस बात पर विचार तो कर ही लेना चाहिए कि सच में वह राष्ट्रहित के लिए ऐसा कर रहे हैं? क्या विनाश के कगार पर पार्टी को पहुंचा देना चाहते हैं अथवा नींव के पत्थर की तरह सदैव जमीन के अंदर गड़े रहकर देश की मजबूती को बनाए रखना चाहते हैं। अब ऐसा लगता है कि क्षणिक दिखावे के लिए संगमरमर की तरह चमकने का स्वप्न देखकर अपने को स्थायी रूप से विलीन कर लेना चाहते हैं। फैसला उस दल को ही लेना है। आगे देखिए नाई के बाल सामने ही गिरेंगे, हम आप तो दर्शक ही हैं। वैसे अभी कुछ परिवर्तन किया गया है ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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