अर्जुन, द्रोणाचार्य मिला नहीं; अभिशाप बना ध्यानचन्द अवॉर्ड!

राजेंद्र सजवान

रियो ओलंपिक में अप्रत्याशित नतीजे के साथ कांस्य पदक जीत कर जब साक्षी मलिक तिरंगा लिए कोच कुलदीप सिंह मलिक के कंधे पर सवार हुई तो भारतीय खेल प्रेमियों के उत्साह का ठिकाना नहीं रहा। रियो में भारत की लाज सिर्फ़ दो महिल खिलाड़ियों ने बचाई थी। पीवी सिंधु ने रजत पदक जीता और साक्षी काँसे के साथ लौटी। तब देश भर के मीडिया ने एक स्वर में कहा था की दोनों खिलाड़ी खेल रत्न और उनके कोच द्रोणाचार्य के हकदार बन गए हैं। खिलाडियों को खेल रत्न मिला और  गोपी चन्द  द्रोणाचार्य बन गये लेकिन कुलदीप मलिक आज तक श्रेष्ठ गुरु को दिए जाने वाले सम्मान से वंचित हैं|

दरअसल, कुछ इंसान दुर्भाग्य साथ लेकर चलते हैं, उनमें कुलदीप भी एक हैं। वह एक ओलंपियन पहलवान से नामी कोच बने हैं। स्योल ओलंपिक में भाग लेने वाले कुलदीप ने एशियन चैंपियनशिप में कांस्य और रजत पदक जीते और कामनवेल्थ  चैम्पियन बने। दुर्भाग्यवश, समय रहते उन्हें अर्जुन अवॉर्ड नहीं मिल पाया। अंततः 2010 में उनके हिस्से ध्यानचन्द अवॉर्ड आया जिसकी सज़ा आज तक भुगत रहे हैं|

तब ध्यानचन्द लाइफ टाइम अवॉर्ड उन खिलाड़ियों को दिया जाता था जिन्हें किसी कारणवश अर्जुन अवॉर्ड नहीं मिल पाया। बेशक ऐसा नियम इसलिए बनाया गया क्योंकि सालों साल राष्ट्रीय खेल अवार्डों की बंदर बाँट होती रही है। नतीजन कई खिलाड़ी कोर्ट पहुँचे और अपना हक पाने में सफल रहे। लेकिन कुलदीप किसके सामने अपना रोना रोए? उसका अर्जुन अवॉर्ड ध्यानचन्द अवॉर्ड की भेंट चढ़ गया और अब द्रोणाचार्य अवॉर्ड इसलिए नहीं मिल सकता क्योंकि उसे ध्यानचन्द अवॉर्ड दिया जा चुका है| अपनी किस्म का यह अनोखा मामला है और इससे पता चलता है कि अपने देश में खेल सम्मानों को लेकर कैसा भद्दा मज़ाक किया जाता है|

इसमे दो राय नहीं कि पिछले दस सालों में भारतीय महिला पहलवानों ने अंतरराष्ट्रीय मुकाबलों में जो कुछ अर्जित किया है उसमें कुलदीप मलिक का योगदान बढ़ चढ़ कर रहा है। 2011 से वह राष्ट्रीय महिला कुश्ती टीम से जुड़े हैं। एक साल बाद वह किसी कारणवश टीम से हट गए थे लेकिन 2013 में वापसी के बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। ओलंपिक पदक विजेता साक्षी मलिक, विनेश फोगाट, सरिता, दीपिका, पूजा ढांडा, किरण और कई अन्य अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता पहलवानों को राष्ट्रीय शिविर में कुलदीप ही सिखाते पढ़ाते हैं|

एक तरफ तो सरकार राष्ट्रीय टीम के साथ जुड़े कोचों को लगातार द्रोणाचार्य अवॉर्ड देती आ रही है तो दूसरी तरफ कुलदीप जैसे समर्पित कोच की इसलिए उपेक्षा हो रही है क्योंकि उसकी कोई उँची पहुँच नहीं है। वह पूरी तरह निर्दोष है और अगर कोई दोषी है तो अवॉर्ड बाँटने वाले, जिन्हें ध्यानचन्द और द्रोणाचार्य अवॉर्ड के कद और महत्व की जानकारी नहीं है।

फिलहाल कुलदीप ने हर साल की तरह एक बार फिर से द्रोणाचार्य अवॉर्ड के लिए आवेदन किया है। मलिक के अनुसार खेल मंत्री चाहें तो उसके नाम की सिफारिश कर सकते हैं। अब खेल मंत्री किरण रिजिजू पर उम्मीद टिकी है|

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *