कई मायने हैं बिहार चुनाव परिणाम के

सुभाष चन्द्र
बिहार विधानसभा चुनाव परिणाम में एनडीए को मिली जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वहां की जनता का आभार व्यक्त किया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने बिहार विधानसभा के चुनाव में राजग की जीत पर कहा राज्य की बहनों-बेटियों ने इस बार रिकॉर्ड संख्या में वोटिंग कर दिखा दिया है कि आत्मनिर्भर बिहार में उनकी भूमिका कितनी बड़ी है। एक के बाद एक किए गए ट्वीट में प्रधानमंत्री मोदी ने लिखा कि बिहार ने दुनिया को लोकतंत्र का पहला पाठ पढ़ाया है। बिहार ने दुनिया को फिर बताया है कि लोकतंत्र को मजबूत कैसे किया जाता है। रिकॉर्ड संख्या में बिहार के गरीब, वंचित और महिलाओं ने वोट भी किया और आज विकास के लिए अपना निर्णायक फैसला भी सुनाया है। उन्होंने कहा कि बिहार के प्रत्येक वोटर ने साफ-साफ बता दिया कि वह आकांक्षी है और उसकी प्राथमिकता सिर्फ और सिर्फ विकास है। बिहार में 15 साल बाद भी एनडीए  के सुशासन को फिर आशीर्वाद मिलना यह दिखाता है कि बिहार के सपने क्या हैं, बिहार की अपेक्षाएं क्या हैं।
याद रखिए, बिहार ने हमेशा ही राजनीति को एक नई दिशा दी है। आप बिहार के मतदाताओं को प्रणाम कीजिए , सलाम कीजिए , सैल्यूट कीजिए , शुक्रिया अदा कीजिए कि बिहार को सेक्यूलर , जंगलराज के हाथों में जाने से पूरी तरह रोक लिया है। जाति और धर्म के फच्चर से भले पूरी तरह नहीं निकल पाए पर 10 लाख फर्जी नौकरी के झांसे में नहीं आए बिहार के लोग। इस से न सिर्फ बिहार का भला हुआ है , बल्कि देश का भी भला हुआ है। सारे बिकाऊ एग्जिट पोल के अनुमान कुचलते हुए बिहार के मतदाता ने जो क्लियरकट जनादेश दिया है , सेक्यूलर और जंगलराज के पैरोकारों को इसे सहर्ष स्वीकार कर लेना चाहिए। क्यों कि फासिज्म का रास्ता गुड नहीं होता। जनादेश और लोकतंत्र का सम्मान करना अब से सही , सीख लीजिए। देश का ही नहीं , आप जंगलराज वालों का भी भला होगा। कठमुल्ले सेक्यूलरिज्म का तो खैर अब पुतला ही शेष है। हां , लेकिन ई वी एम को दोष देने की बीमारी का कोई इलाज नहीं है।

याद कीजिए ओपिनियन पोल में एन डी ए को जब न्यूज चैनलों ने जिताया था तब हिप्पोक्रेट सेक्यूलर के पेट में बहुत तेज़ मरोड़ उठा था। क्या-क्या नहीं बका था। लेकिन जब सभी एग्जिट पोल में  एक सुर से महागठबंधन की सरकार बनने की बात हुई तो सभी हिप्पोक्रेट सेक्यूलर के चेहरे गुलाब की तरह खिल गए। आज सुबह तक खिले रहे। दस-ग्यारह बजे तक यही आलम था। पर अब उन खिले फूलों पर गोया कांटे उग आए हैं। पता तो यह किया ही जाना चाहिए कि यह फ्राड एग्जिट पोल किस ने प्रायोजित किए थे। क्यों कि एग्जिट पोल का समूचा आकलन ज़मीन से पूरी तरह गायब दिख रहा है।

दिलचस्प यह कि एग्जिट पोल के बाद जिस तरह उस लंपट तेजस्वी की आरती उतारने में यह सेक्यूलर हिप्पोक्रेट लग गए कि कोर्निश बजाने और चमचई में चंदरबरदाई फेल हो गए। बड़े-बड़े पढ़े-लिखे , अपने को विद्वान और प्रोफेशनल बताने वाले पत्रकार , बुद्धिजीवी , लेखक , कवि भी नौवीं फेल और लंपट तेजस्वी यादव की मिजाजपुर्सी में दंडवत लेट गए थे। क्या तो बिहार को एक डायनमिक नेता मिल गया है जिस ने मोदी और नीतीश को धूल चटा दिया है। आदि-इत्यादि। तुर्रा यह कि तेजस्वी भी अपनी पीठ ठोंकते हुए बताने लगे कि दस लाख नौकरी की बात इकोनॉमिक्स के विद्वानों से पूछ कर कही थी। जाने कौन इकोनॉमिक्स के चूतियम सल्फेट विद्वान् थे। बहरहाल अब आज तक चैनल पर एक सैफोलॉजिस्ट प्रदीप गुप्ता एग्जिट पोल के लिए माफी मांग रहा है।
जो भी हो सेक्यूलरिज्म की हिप्पोक्रेसी और सनक में भी किसिम-किसिम के आनंद हैं। यह भी एक अलग मजा है कि मोदी से नफरत की नागफनी इतनी गहरी है कि ट्रंप की हार में भी लोग आनंद खोज लेते हैं। क्यों कि मोदी से दोस्ती थी। अरे दोस्ती तो ओबामा से भी थी। ओबामा से भेंट में ही सूट-बूट की सरकार की बात निकली थी। अच्छा क्या बाइडेन से दोस्ती नहीं होगी क्या। अच्छा दुनिया में दो-चार राष्ट्राध्यक्षों को छोड़ कर किस से दोस्ती नहीं है मोदी का। किस-किस का बुरा सोचेंगे भला।

प्रधानमंत्री ने लिखा, “बिहार के युवा साथियों ने स्पष्ट कर दिया है कि यह नया दशक बिहार का होगा और आत्मनिर्भर बिहार उसका रोडमैप है। बिहार के युवाओं ने अपने सामर्थ्य और राजग के संकल्प पर भरोसा किया है। इस युवा ऊर्जा से अब राजग को पहले की अपेक्षा और अधिक परिश्रम करने का प्रोत्साहन मिला है।” उन्होंने एक अन्य ट्वीट में लिखा,” बिहार की बहनों-बेटियों ने इस बार रिकॉर्ड संख्या में वोटिंग कर दिखा दिया है कि आत्मनिर्भर बिहार में उनकी भूमिका कितनी बड़ी है। हमें संतोष है कि बीते वर्षों में बिहार की मातृशक्ति को नया आत्मविश्वास देने का राजग को अवसर मिला। यह आत्मविश्वास बिहार को आगे बढ़ाने में हमें शक्ति देगा। बिहार के गांव-गरीब, किसान-श्रमिक, व्यापारी-दुकानदार, हर वर्ग ने राजग के ‘सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’ के मूल मंत्र पर भरोसा जताया है। मैं बिहार के हर नागरिक को फिर आश्वस्त करता हूं कि हर व्यक्ति, हर क्षेत्र के संतुलित विकास के लिए हम पूरे समर्पण से निरंतर काम करते रहेंगे।”

बिहार चुनाव के परिणाम में भी प्रधानमंत्री मोदी और योगी की जोड़ी का कमाल देखने को मिला। उत्तर प्रदेश में उपचुनाव की व्यस्तता के बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 17 जिलों में 19 सभाएं की। प्रधानमंत्री की जन सभाओं वाले इलाकों में एनडीए ने जबरदस्त जीत दर्ज की। योगी के प्रचार वाली 19 विधान सभा सीटों में से ज्यादातर पर एनडीए के उम्मीदवार चुनाव जीते।

प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार चुनाव के चार दिनों में कुल 12 रैलियां कीं। 23 अक्टूबर को सासाराम, गया, भागलपुर; 28 अक्टूबर को दरभंगा, मुजफ्फरपुर और पटना; 1 नवंबर को पूर्वी चंपारण, छपरा और समस्तीपुर; 3 नवंबर को आखिरी चरण में प्रधानमंत्री ने पश्चिम चंपारण, सहरसा और फारबिसगंज में चुनावी जन सभाओं को संबोधित किया।

मोदी के चुनाव प्रचार के प्रभाव क्षेत्र में शामिल बिहार की 101 सीटों में ज्यादातर पर एनडीए के उम्मीदवार जीत चुके हैं। योगी की आंधी में राजद और कांग्रेस के कई पुराने गढ़ भी जमींदोज हो गए। बिहार के 17 जिलों की 75 से अधिक विधान सभा क्षेत्रों के चुनाव परिणाम पर योगी इफेक्ट साफ दिखा। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए प्रत्याशियों के पक्ष में कुल 19 रैलियां की थी। उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के व्यस्त कार्यक्रम और बिहार में एनडीए उम्मीदवारों की जबरदस्त मांग के बीच योगी ने ताबड़तोड़ अंदाज में जन सभाएं की। जंगल राज और भ्रष्टाचार को लेकर विपक्ष पर सीधा हमला बोलने के साथ योगी ने अपनी जन सभाओं में अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास और कश्मीर में धारा 370 हटाने को बड़ा मुद्दा बनाया। योगी ने 20 और 21 अक्टूबर को कैमूर के रामगढ़, अरवल, रोहतास की काराकाट, जमुई, भोजपुर की तरारी और पटना के पालीगंज में जनसभा कर विपक्ष को बैक फुट पर धकेल दिया। 28 और 29 अक्टूबर को योगी ने सीवान के गोरियाकोठी, पूवी चंपारण के गोविंदगंज, पश्चिमी चंपारण के चनपटिया, सीवान के दरौंदा, वैशाली के लालगंज, मधुबनी के झंझारपुर की जनसभाओं में भारी भीड़ जुटा कर एनडीए के प्रत्याशियों की जीत लगभग तय कर दी थी। 2 नवंबर को योगी ने पश्चिमी चंपारण के वाल्मीकि नगर, रक्सौल, सीतामढ़ी में रैली की तो 4 नवंबर को कटिहार, मधुबनी की बिस्फी, दरभंगा की केवटी और सहरसा की सिमरी बख्तियारपुर विधान सभा की जनसभा से आखिरी पंच लगा दिया।
बिहार विधानसभा में एनडीए की जीत किसकी जीत है? इस पर बहस हो रही है। हालांकि कायदे से इस पर बहस नहीं होनी चाहिए। क्योंकि एनडीए ने नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ा था और उन्हीं को फिर से मुख्यमंत्री बनाने के लिए वोट मांगा था। इसलिए जीत को नीतीश कुमार की ही मानी जानी चाहिए। लेकिन ज्यादा सीटें जीतने के दम पर भाजपा की ओर से भी ऐसा दावा किया जा रहा है कि यह भाजपा की और नरेंद्र मोदी की जीत है तो कुछ मीडिया समूह और राजनीतिक विश्लेषक यह साबित करने में लगे हैं कि नीतीश कुमार तो बोझ बन गए थे, वह तो भला हो नरेंद्र मोदी का, जो उन्होंने प्रचार किया और बिहार में एनडीए को बचा लिया। ऐसे राजनीतिक विश्लेषक यह भी समझा रहे हैं कि अगर भाजपा अकेले लड़ी होती तो वह इससे ज्यादा सीटों पर जीतती।

राजनीतिक विश्लेषकों के दिमाग में चाहे भाजपा को लेकर जितना भी आत्मविश्वास हो पर भाजपा किसी भ्रम में नहीं थी। उसको खुद ही यह भरोसा नहीं था कि वह अकेले लड़ कर अच्छा प्रदर्शन कर पाएगी। उसने एक बार दूध से मुंह जलाया था इसलिए छांछ भी फूंक फूंक कर पी रही थी। वह किसी बहकावे में नहीं आई और न किसी भ्रम में रही। पहले दिन से उसने कहा कि वह नीतीश कुमार के चेहरे पर चुनाव लड़ेगी और एनडीए के नेता नीतीश ही रहेंगे। भाजपा को पता है कि नीतीश के साथ रहने का उसे हमेशा फायदा मिलता है। भले नीतीश को भाजपा का फायदा मिले या न मिले पर भाजपा को जरूर फायदा मिलता है। नीतीश के साथ लड़ते ही भाजपा का स्ट्राइक रेट बेहतर हो जाता है। यह बात राजद के लिए भी सही है। पिछली बार राजद ने नीतीश कुमार का चेहरा आगे करके लड़ा था और उसका प्रदर्शन बहुत अच्छा हो गया था। दोनों पार्टियां एक-एक सौ सीटों पर लड़ी थीं और राजद ने 80 व जदयू ने 71 सीटें जीतीं।
इसका मतलब है कि भले नीतीश कुमार को अपने फायदा हो या नहीं हो पर वे जिसके साथ लड़ेंगे उसको फायदा होगा। उनके साथ लड़ कर राजद को फायदा हुआ तो भाजपा को भी हुआ है। भाजपा के अकेले लड़ कर ज्यादा सीट जीतने का अनुमान लगाने वाले ज्यादातर राजनीतिक विश्लेषक बिहार की जमीनी राजनीतिक सचाई से वाकिफ नहीं हैं। यहां तक कि वे पांच साल पहले के चुनाव नतीजों की भी अनदेखी कर दे रहे हैं। पांच साल पहले भाजपा के लिए स्थितियां आज से बेहतर थीं। नोटबंदी नहीं हुई थी, आर्थिकी अच्छी रफ्तार से बढ़ रही थी, कोरोना की महामारी भी नहीं थी और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता बुलंदी पर थी। तब भाजपा अलग लड़ी थी और उसे सिर्फ 54 सीटें आई थीं। सोचें, जो भाजपा 2010 में जदयू के साथ एक सौ सीट पर लड़ कर 91 जीत गई थी वह जदयू से अलग होकर 160 के करीब सीटों पर लड़ी थी सिर्फ 54 जीत पाई।
हां, बिहार के मौजूदा चुनाव से फिर साबित है कि जब तक पूरा विपक्ष एकजुट नहीं होगा तब तक लोगों की बदहाली, दुर्दशा और बदलाव की चाह वोट में कनवर्ट नहीं होगी। आगे उत्तरप्रदेश, गुजरात, बंगाल, असम आदि कई जगह विधानसभाओं के चुनाव है।

(लेखक वरिश पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं)

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