दिल्ली सरकार ने नहीं दिया है 12 वित्त पोषित कॉलेजों को ग्रांट, शिक्षकों ने लगाया मनमानी करने का आरोप
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: दिल्ली सरकार द्वारा 100% वित्त पोषित दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेज के शिक्षक और शिक्षकेत्तर कर्मचारियों को चार महीने से वेतन नहीं मिला है। वेतन नहीं मिलने के कारण कर्मचारियों के परिवारों को मुसीबत झेलनी पर रही है। एक तरफ दिल्ली सरकार, उपमुख्यमंत्री और शिक्षामंत्री मनीष सिसोदिया के कार्यों की सराहना की जाती है कि दिल्ली में उन्होंने शिक्षा व्यवस्था को चुस्त दुरुस्त कर दिया है, वहीँ दूसरी तरफ 12 कॉलेजों के कर्मचारियों को चार महीने से वेतन नहीं मिल रहा है।
आज दिल्ली सरकार द्वार 100% वित्त पोषित दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेज के कई शिक्षकों ने एक वर्चुअल प्रेस कांफ्रेंस कर दिल्ली सरकार से मांग की है कि जल्द से जल्द कॉलेजों को ग्रांट दिया जाय जिससे कर्मचारियों को वेतन दिया जा सके। वेतन के आभाव में कर्मचारियों की स्थिति दयनीय होती जा रही है।
महाराजा अग्रसेन कॉलेज के डॉ. सुबोध कुमार ने प्रेस कांफ्रेंस में बताया कि, दिल्ली सरकार द्वारा 100% वित्त पोषित दिल्ली विश्वविद्यालय के 12 कॉलेजों को दिल्ली सरकार से अनुदान मिलता है, लेकिन यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि इन कॉलेजों को दिसम्बर 2020 के बाद कोई अनुदान नहीं मिला है और इस वजह से शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को दिसंबर 2020 के बाद वेतन नहीं मिला है। इस लिए दिल्ली सरकार द्वारा वित्तपोषित उक्त 12 कॉलेजों (100%) में हम अविलंब धनराशि जारी करने की मांग करते हैं और नियमित रूप से वेतन जारी करने की बात को भी सुनिश्चित करना चाहते हैं। अनियमित वेतन और मेडिकल बिल जैसे बिलों के भुगतान न होने से इन कॉलेजों के शिक्षक और कर्मचारी अनिश्चिय की स्थिति में जी रहे हैं।“
उन्होंने कहा कि, “दिल्ली सरकार के द्वारा 12 कॉलेजों में वेतन रोकने का यह मामला वैधानिक और नैतिक मानदंडों का उल्लंघन है। इन सम्मानित संस्थानों की शैक्षणिक पारिस्थितिकी पर इस तरह की अनियमितता बहुत भारी और विपरीत असर डालती है। हजारों संकाय सदस्यों और कर्मचारियों के वेतन पर रोक लगाई गई है, जिसकी वजह से चिकित्सा बिल, छात्रवृत्ति, टेलीफोन और बिजली बिल जमा नही हो सके हैं और कष्ट निरंतर बढ़ रहा है।“
चिरौरी न्यूज़ से बातचीत में डॉक्टर सुबोध कुमार ने कहा कि, दिल्ली सरकार द्वारा फंडिंग को एक या अन्य किसी मामले से जोड़कर टालने से (जैसे गवर्निंग बॉडी फॉर्मेशन, छात्रों की फीस, प्रोबिटी आदि) इन कॉलेजों के कामकाज पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।“
उन्होंने कहा कि, “सर्वविदित है कि यह विश्वविद्यालय वैज्ञानिक स्वभाव को बढ़ावा देने का कार्य करता रहा है, यह ‘घोस्ट’ ‘ की जगह नहीं है। छात्रों के फिस को सरकारी वित्तीय अनुदान से किसी भी प्रकार से जोड़ना निजीकरण को बढावा देना है और यह भारत में सामाजिक न्याय आधारित उच्च शिक्षा के विचार के खिलाफ है।” दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेज ऑफ आर्ट्स को दिल्ली सरकार द्वारा अपने अधीन करने का भी हम कड़ा विरोध करते हैं और एक शताब्दी से अधिक पुरानी हमारी इस यूनिवर्सिटी को खत्म करने के किसी भी प्रयास का हम इसी तरह पुरजोर विरोध करते रहेंगे।”
प्रेस कांफ्रेंस में डॉ. सुबोध कुमार के अलावा डॉ. सुजीत कुमार, डॉ.राजेश उपाध्याय, डॉ.नवीन कुमार ने भी अपने विचार रखे और दिल्ली सरकार से मांग की कि जितनी जल्दी हो सके कॉलेजों को ग्रांट दिया जाय।