‘इंटरनेशनल ओलंपिक डे’ पर भारत को खेल महाशक्ति बनाने पर हुई चर्चा

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: फिजिकल एजुकेशन फॉऊंडेशन ऑफ इंडिया (पेफी) ने भारत सरकार के खेल एवम युवा कल्याण मंत्रालय के सहयोग से 23 जून को इंटरनेशनल ओलंपिक डे पर एक वेबिनार का आयोजन किया जिसकी थीम ‘ओलंपिक मूवमेंट इन इंडिया’ रही। कार्यक्रम की शुरूआत प्रसिद्ध शारीरिक शिक्षाविद् एलएनआईपीई ग्वालियर के पूर्व डीन डॉ. ए.के. उप्पल के संबोधन से हुई।

उन्होंने बताया कि शुरूआत में इन खेलों में सिर्फ दौड़ ही एकमात्र प्रतियोगिता होती थी। फिर बाद में पेंटाथलान, मुक्केबाजी आदि खेलों को भी शामिल किया गया। बाद में इन खेलों पर रोम के ईसाई सम्राट ने रोक लगा दी। और ओलंपिया नगर में स्थापित स्टेडियम ध्वस्त कर दिया।

आधुनिक ओलंपिक खेलों को फिर शुरू करने का श्रेय फ्रांस के समाजशास्त्री डॉ. पियरे डी कुबर्टिन को जाता है जिन्होने 4 अप्रैल 1896 को यूनान में इन खेलों का फिर से आयोजन किया। डॉ. उप्पल ने बताया कि प्रथम आधुनिक ओलंपिक में केवल 13 देशों के 285 प्रतिनिधियों ने भाग लिया था। पर साल दर साल इसके आयोजन में प्रतिभागियों की संख्या में बढ़ोत्तरी होती रही। विगत वर्ष 2016 के रियो ओलंपिक में 12 हजार प्रतिभागियों ने इन खेलों में भाग लिया था।

वेबिनार को संबोधित करते हुए भारतीय ओलंपिक संघ के महासचिव श्री राजीव मेहता ने इन खेलों की उपयोगिता पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ओलंपिक खेल पूरे विश्व को एकजुट करने और आपसी भाईचारा मजबूत करने, पूरे विश्व में प्रेम और सौहार्द फैलाने का एक जरिया है। खेलों के जरिए हम दूसरे देशों की सभ्यता संस्कृति से परिचित होते हैं। खिलाड़ियों को एक दूसरे की सभ्यता और संस्कृति की जानकारी मिलती है।
मेहता ने कहा कि यह हर्ष का विषय है कि हम आज हर राज्य और जिले में ‘इंटरनेशनल ओलंपिक डे’ का आयोजन कर रहे है।

मेहता ने कहा कि किसी भी खिलाड़ी तैयार करने में शारीरिक शिक्षक की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है। शारीरिक शिक्षक ही वो प्रथम व्यक्ति होता है जो विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभा को खोजता है। खेल प्रशिक्षक का काम बाद में प्रतिभा को तराशना होता है। राजीव मेहता ने फिजिकल एजुकेशन फॉऊंडेशन ऑफ इंडिया (पेफी) के द्वारा किए जा रहे कार्यों की सराहना की और भविष्य में संस्था को मदद देने का आश्वासन दिया।

भारतीय ओलंपिक संघ के कोषाध्यक्ष डॉ. आन्नदेश्वर पांडेय ने वेबिनार को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में ओलंपिक मूवमेंट तब तक सफल नहीं हो सकता जब तक खेल हर व्यक्ति तक नहीं पहुंचेगा। समाज में हर व्यक्ति किसी ना किसी खेल में रूची लेगा तो देश में एक खेल कल्चर विकसित होगा।

डॉ. पांडेय ने कहा देश में खेलों को बढ़ावा तब मिलेगा जब देश में शारीरिक शिक्षक और शिक्षा की बेहतरी के लिए काम होगा। डॉ. पांडेय ने कहा कि भारतीय ओलंपिक संघ आने वाले दिनों में शारीरिक शिक्षकों के लिए अभियान चलाएगी।

हॉकी कोच व द्रोणाचार्य अवार्डी ए.के. बंसल ने अपने संबोधन में कहा कि कुछ वर्षों पहले तक ओलंपिक में भाग लेना ही बड़ा महत्वपूर्ण समझा जाता था। पर अब ओलंपिक को लेकर भारत में जागरूकता बढ़ी है। अगर जीत या हार की भावना नहीं होगी तो खेल से उत्साह खत्म हो जाएगा। बंसल ने कहा कि ओलंपिक खेलना ही काफी नहीं है खिलाड़ी का जुड़ाव खेल से हमेशा हो।

क्रीड़ा भारती के राजश्री चौधरी और प्रसाद महानकर ने अपने संबोधन में पेफी के द्वारा किये जा रहे कामों की प्रशंसा की और टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने जा रहे खिलाड़ियों को शुभकामनाएं दी। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए देश के प्रसिद्द व वरिष्ठ खेल पत्रकार राजेंद्र सजवान ने ‘भारत में रफ्तार क्यों नहीं पकड़ पा रहा ओलंपिक आंदोलन’ विषय पर चर्चा करते हुए तीन खिलाड़ियों का जिक्र किया।

उन्होनें देश के दिग्गज एथलीट मिल्खा सिंह का उल्लेख किया जो रोम ओलंपिक में चौथे स्थान पर रहे। उनके द्वारा बनाया गया राष्ट्रीय रिकार्ड टूटने में 34 वर्ष लग गये। उन्होनें अमेरिकी तैराक माइकल फेल्पस का उदाहरण दिया जिन्होनें 23 स्वर्ण सहित कुल 28 पदक ओलंपिक में जीते हैं।

सजवान ने कहा कि भारत ने ओलंपिक में नौ स्वर्ण सहित कुल 26 पदक जीते है, जोकि अकेले माइकल फेल्पस की तुलना में बहुत कम है। उन्होंने कहा कि हम ओलंपिक आंदोलन में बहुत पीछे हैं। जिमनास्ट दीपा कर्माकर की चर्चा करते हुए उन्होनें बताया कि जिस देश में चौथे स्थान पर आई खिलाड़ी को बहुत नाम यश, पैसा मिल जाए तो वंहा पदक जीतने की भूख कम हो जाती है।

सजवान ने कहा की भारत में खेलों को मजबूत करने के लिए स्कूली स्तर पर खेल ढांचे को मजबूत करना होगा। राष्ट्रीय स्कूली खेल में पारदर्शिता लानी होगी। उम्र की धोखाधड़ी को रोकने के लिए काम करना होगा। उन्होंने कहा की जिस दिन हम स्कूल स्तर के खेल में क्रातिकारी सुधार ले आएंगे उस दिन से हमारे देश में ओलंपिक आंदोलन की रफ्तार बढ़ जाएगी।

कार्यक्रम के अंत में दिल्ली विश्वविद्यालय की एसोसिएट प्रोफेसर स्मिता मिश्रा नें ओलंपिक में महिलाएं विषय पर अपना व्याख्यान दिया। उन्होनें बताया की प्राचीन ओलंपिक खेलों में महिलाओं की भाग लेने पर प्रतिबंध था। महिलाओं को प्रतियोगिता देखने पर मौत की सजा दी जाती थी। आधुनिक ओलंपिक खेल की शुरुआत में भी महिलाओं को इन खेलों से दूर रखा गया। महिलाओं को प्रथम बार सन् 1900 में पेरिस ओलंपिक में भाग लेने की अनुमति मिली, जो कि आधुनिक ओलंपिक खेलों का दूसरा आयोजन था।

मिश्रा ने बताया कि गुलाम भारत की तरफ से सर्वप्रथम एक महिला खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व करने को उतरी थी। आजादी के बाद सन् 1952 में चार महिला खिलाड़ी ओलंपिक में खेलीं लेकिन इतिहास में इनका उल्लेख नहीं मिलता। तैराक आरती साहा, मैरी डिसूजा, नीलीमा घोष ने भारत का ओलंपिक में प्रतिनिधित्व किया। सर्वप्रथम इंग्लिश चैनल पार करने का रिकार्ड आरती साहा ने बनाया। इसके बाद ढाई दशक तक इन खेलों के लिए महिला खिलाड़ियों की पौध तैयार होती रही। 1980, मास्को ओलंपिक में 20 महिलाएं जिसमें 16 हाकी खिलाड़ी बाकी चार एथलीट शामिल हुईं।

1984 में पीटी उषा, शाइनी विल्सन समेत कई महिला खिलाड़ियों ने ओलंपिक में शिरकत की। सिडनी ओलंपिक (2000) में भारतीय महिला वेटलिफ्टर कर्णम मल्लेश्वरी ने ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर इतिहास रचा। सन् 2012 लंदन ओलंपिक में भारतीय महिला बैंडमिंटन खिलाड़ी साइना नेहवाल और मुक्केबाज मैरीकाम ने कांस्य पदक जीतकर भारतीय महिलाओं में ये भरोसा पैदा किया की हम भी किसी से कम नहीं है।

2016 ओलंपिक में पीवी सिंधू ने रजत पदक जीतकर और जिम्नास्ट दीपा कर्माकर ने चौथा स्थान लेकर खूब नाम कमाया। इस बार टोक्यो ओलंपिक 2021 में भी महिला खिलाड़ियों के उपर पदक लाने की जिम्मेदारी है। निशानेबाजी में सात महिला खिलाड़ी टोक्यों में उतरेंगी। बैंडमिंटन में पीवी सिंधू अपने पदक का रंग बदलने की कोशिश करेंगी तो महिला हाकी खिलाड़ी भी पदक के लिए जी जान लगा देंगी।

वेबिनार के अंत में कार्यक्रम संयोजक डॉ. चेतन कुमार ने इंटरनेशनल ओलंपिक डे पर सबको बधाई दी व टोक्यो ओलंपिक में भाग ले रहे खिलाडियों को शुभकामनाएं दी। उन्होंने कहा की पेफी खेल ओर शारीरिक शिक्षको के लिए निरंतर काम करती रहेगी।

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