गुटबाजी और घमासान आईओए का चरित्र रहा है!

राजेंद्र सजवान

गनीमत है कि कोविड 19 के चलते ओलंपिक खेल टल गये वरना आईओए में जैसा घमासान मचा है उसे देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि खिलाड़ियों को अधिकारियों की करतूतों का ख़ामियाजा भरना पड़ सकता था। आईओए अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र ध्रुव बत्रा और महासचिव राजीव मेहता के बीच आरोप प्रत्यारोपों का सिलसिला लगातार बढ़ता जा रहा है|

दोनों तरफ से एक दूसरे के खिलाफ सार्वजनिक छींटाकशी के साथ साथ ऐसे  इल्ज़ाम भी लगाए जा रहे हैं जिनके बारे में पहले किसी को जानकारी नहीं थी। सही मायने में मामला अध्यक्ष और उपाध्यक्ष सुधांशु मितल के बीच का है। दोनों एक दूसरे पर आरोप लगाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे। अब चूँकि मितल और राजीव मेहता एक टीम में हैं इसलिए आईओए अध्यक्ष को मिल कर घेरने की असफल कोशिश में लगे हैं।

लेकिन यह झगड़ा फ़साद पहली बार नहीं हो रहा। आईओए अपनी स्थापना के साथ ही आपसी टकराव के लिए कुख्यात रही है। फिर चाहे सुरेश कलमाड़ी को राजा रणधीर सिंह से निपटना पड़ा हो या पूर्व अध्यक्ष रामा चंद्रन और राजीव मेहता के बीच घमासान मचा हो ।

1927 में आईओए ने अपनी स्थापना से अब तक कई बड़े नामों को शीर्ष पद का सम्मान दिया है। पहले अध्यक्ष दोराबजी टाटा के बाद राजा भालिनदर सिंह, ओम प्रकाश मेहरा, विद्या चरण शुक्ल, शिवंती आदित्यं, सुरेश कलमाडी, विजय कुमार मल्होत्रा, अभय चौटाल, नारायण रामाचंद्रन और नरेंद्र बत्रा ने क्रमशः अध्यक्ष पद की शोभा बढ़ाई।

हालाँकि अधयक  और महासचिव के बीच अनेक अवसरों पर तनातनी हुई। लेकिन 1996 में जब एथलेटिक फ़ेडेरेशन के अध्यक्ष सुरेश कलमाडी ने आईओए की बागडोर संभाली तो  विवाद भी बढ़ते चले गए। और जब भारत को 2010 के कामनवेल्थ खेलों की मेजबानी मिली तो कलमाडी जैसे निरंकुश हो गए थे। महासचिव के रूप में उनके साथ राजा रणधीर सिंह थे। कुछ एक साल तक सब कुछ ठीक तक चलता रहा लेकिन कामनवेल्थ खेलों के आयोजन का नशा ऐसा चढ़ा कि कलमाडी ने अपने कई दुश्मन पैदा कर दिए। रणधीर सिंह, प्रोफ़ेसर वीके मल्होत्रा, अभय चौटाला और कई अन्य वरिष्ठ पदाधिकारी उनके विरुद्ध उठ खड़े हुए। चूँकि ललित भनोट एथलेटिक फ़ेडेरेशन के महासचिव थे इसलिए कलमाडी-भनोट  जोड़ी खेलों के बाद तक बनी रही|

कामनवेल्थ घोटाले के बाद जब कलमाडी गए तो कुछ समय के लिए प्रो. मल्होत्रा और अजय चौटाला ने शीर्ष पद संभाला और उनके बाद नारायण रामाचंद्रन अध्यक्ष बने तो राजीव मेहता सचिव पद पर विराजमान हुए। इसके साथ ही अध्यक्ष-सचिव के बीच उठापटक की नई कहानी भी शुरू हो गई। तब ऐसा मौका भी आया जब आईओए पर अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति के प्रतिबंध की तलवार लटक गई थी। फ़साद की जड़ बॉक्सिंग इंडिया बनी जिसकी आपसी फूट के चलते आईओए में गुबाज़ी का खेल शुरू हो गया। तब डाक्टर बत्रा, राजा रणधीर, अजय चौटाला, ललित भनोट और तमाम आईओए टीम दो फाड़ हो गई। कौन किसके साथ है कुछ पता नहीं चल पा रहा था।

इस उठा पटक ने अध्यक्ष रामाचंद्रन को ओलंपिक भवन छोड़ने पर विवश कर दिया और नये गठबंधन के साथ डाक्टर बत्रा और राजीव मेहता आईओए अध्यक्ष-सचिव बन कर गले मिले। आज यह जोड़ी लगभग टूट चुकी है और उसी अवसरवाद का शिकार लगती है जिसने उन्हें शीर्ष पर पहुँचाया था। यह तो होना ही था क्योंकि यही आईओए का चरित्र रहा है। कभी खेल मंत्रालय से टकराने वाले अब एक दूसरे को नीचा दिखाने में लगे हैं, जोकि देश  के खेलों के हित में नहीं है।

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