राजस्थानी ग्रामीण संस्कृति का खानपान, आज बना स्वयं सहायता समूह की महिलाओं की आजीविका का प्रमुख साधन

Food of Rajasthani rural culture, today the main means of livelihood of women of self help groupचिरौरी न्यूज़

गुरुग्राम:  गुरुग्राम के सेक्टर 29 स्थित लेजर वैली ग्राउंड में 23 अक्टूबर तक आयोजित किए जा रहे सरस आजीविका मेले में यूं तो खरीददारी करने के लिए काफी कुछ है लेकिन यहां आने वाले लोग स्टॉलों पर लगे लजीज व्यंजन का स्वाद चखे बिना नहीं रह पा रहे हैं। देश के विभिन राज्यों से आई महिलाओं द्वारा लगाए गए 29 स्टालों पर ऐसे-ऐसे डिश हैं, जिनका नाम सुनते ही लोगों के मुंह में पानी आ जाता है।

ऐसे में अगर आप भारतीय ग्रामीण संस्कृति के खानपान को करीब से जानने का विचार रखते है तो आप सरस मेले के फ़ूड कोर्ट में राजस्थानी स्टॉल का रुख कर सकते हैं।

फ़ूड कोर्ट के स्टॉल नंबर 29 में राजस्थान के नागौर जिला से आई खाटू श्याम स्वयं सहायता समूह की प्रमुख चंदू देवी व उनके टीम द्वारा बनाए जा रहे दाल बाटी चूरमा, कैर सांगरी की सब्जी, मूंग दाल हलवा, दाल ढोकली, बेसन गट्टे की सब्जी को पर्यटकों द्वारा खासा पसंद किया जा रहा है।

अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के साथ ही समस्त भारत में लगने वाले मेलों के माध्यम से राजस्थानी स्वाद व संस्कृति को पूरे भारत में ले जा रही चंदू देवी बताती हैं कि आज जब वे अपनी समूह के सफलता के सफर को देखती है तो लगता है ये इतना भी सरल नही था। उन्होंने बताया कि कभी विभिन्न स्त्रोतों से बमुश्किल अपने घर चलाने वाली हमारे समूह की महिलाओं ने आज अपनी अथक मेहनत व आने वाले बेहतर कल की आस में एक बेहतर मुकाम पाया है।

आज उनके समूह से जुड़ी सभी 15 महिलाएं ना केवल आत्मनिर्भर है बल्कि कुशल उद्यमी भी हैं।

फ़ूड कोर्ट के स्टॉल संख्या 24 में राजस्थान के टोंक जिला से पहली बार सरस मेले में आई स्वयं सहायता समूह ‘राधे राधे’ कि सदस्य पिंकी शर्मा बताती है कि उनके स्टाल आप गुड़, तिल,बाजरे के लड्डू, सूजी का हलवा, पापड़, लहसुन की चटनी, दाल बाटी चूरमा का स्वाद ले सकते हैं। वर्ष 2016 में 5 सदस्यों द्वारा शुरू किया गया यह ग्रुप आज बाजार की मांग के हिसाब से आर्डर लेकर लोगों तक राजस्थानी जायका पहुँचाने का प्रमुख माध्यम बन रहा है।

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