अपने गुस्से को कैसे करें कंट्रोल

शिवानी रज़वारिया

गुस्सा इंसान का सबसे बड़ा दुश्मन कहा जाता है जो एक अटल सत्य है। इंसान गुस्से में अक्सर अपने बनते कामों को बिगाड़ लेता है, उसका गुस्सा उसकी पूरी लाइफ ख़राब कर देने की ताक़त रखता है। ऐसा हम सभी के साथ होता है। गुस्सा सबको आता है क्योंकि गुस्सा मानव व्यवहार का एक हिस्सा है। बस उसको कब कैसे कंट्रोल करना है, कैसे, कहां इस्तेमाल करना चाहिए, ये सब बातें हम भूल जाते हैं।

अगर गौर से देखा जाए तो गुस्सा बहुत रोचक भी है। कभी यही गुस्सा हमें हंसी का पात्र बना देता है तो कभी यही गुस्सा हमारे सम्मान में चार चांद भी लगा देता है,कभी हम छोटा महसूस करते है तो कभी बहुत शक्तिशाली। देखा जाए तो सब कुछ परिस्थितियों पर निर्भर करता है। मनुष्य व्यवहार इन्हीं परस्थितियों के इर्द गिर्द घूमता है और इन्हीं के हिसाब से हमारा गुस्सा काम करता है। जिस तरह विभिन्न प्रकारों के लोग हमारे आस पास रहते है अलग सोच, अलग व्यवहार,धर्म, जाति,समुदाय से होते हैं पर एक बात सभी को समान बना देती हैं- मनुष्य! आख़िर होते तो सब इंसान ही हैं वैसे ही कम-ज्यादा, अच्छा-बुरा जैसा भी हो पर गुस्सा सबके अंदर होता है।

ऐसे में सबसे बड़ा सवाल जिसका जवाब अधिकांश लोग तलाशते है आख़िर कैसे इस पर कंट्रोल किया जाएं ज्यादातर वो लोग जो अपने गुस्से से हमेशा हाईलाइट रहते हैं।

चलिए कुछ बिंदुओं पर नज़र डालते हैं:

अक्सर हम बहुत जल्दी ऊब जाते हैं काम करते-करते अजीब सा महसूस करने लगते है पर समझ नहीं आता ऐसा हो क्यों रहा हैं हालांकि वैज्ञानिक अध्ययन के अनुसार इस पर बहुत सी थियोरीज है और विशेषज्ञों का भी  यही कहना है कि हमें बदलाव पसंद आते है और इंसान को अपने तौर तरीकों में बदलाव करते रहना चाहिए।

जब हमारे आस-पास बोरियत का माहौल बनने लगता है तो हमारा व्यवहार भी बदलने लगता है लोगों से दूरियां बढ़ने लगती है और धीरे- धीरे हम अकेलेपन की ओर जाने लगते है।

हम अपने सबसे अच्छे दोस्त होते है यह बात जिस दिन हम समझ लेंगे उस दिन से कभी उस स्थिति में नहीं जाएंगे जहां से आना मुश्किल हो जाता है। ख़ुद से दोस्ती करना सबसे ज्यादा ज़रूरी है।इसका मतलब यह नहीं कि दोस्त ही ना बनाए जाएं।

गुस्से की बात हो तो फ्रेस्टेशन का ज़िक्र भी ज़रूर होगा जो गुस्से का पहला कदम है।जब हम कुछ नहीं कर पाने वाले ज़ोन में ख़ुद को महसूस करते है या खासकर जब आपकी बात को कोई समझ ना रहा हो तो ऐसे में झुंझलाहट आपके दिमाग में घर कर लेती है और गुस्सा बनकर बाहर निकलती है। उस समय एक ऐसे व्यक्ति की ज़रूरत महसूस होती है जो आपको समझ सकें पर ऐसा होना मुश्किल पड़ता है ऐसे में आप के सबसे करीब आप खुद होते है और आप ही उस ख़तरे के ज़ोन से खुद को संभाल सकते है।

जीवन का एक मूल मंत्र होना ज़रूरी है जैसे मेरा मूल मंत्र है “मै खुश हूं” ये हमेशा मुझे महसूस कराता है कि चाहें कैसे भी हालात हो कोई भी परेशानी हो पर मैं खुश हूं! आपने अभी तक अपना मूल मंत्र नहीं बनाया है तो बनाएं।आप ख़ुद महसूस करेंगे कि All is well।।

 

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