मैं दुनिया को यह दिखाने जा रहा हूं कि बॉक्सिंग एक कला हैः विकास कृष्ण यादव

चिरौरी न्यूज़

जयपुर: विकास कृष्ण यादव, अपने जीवन के तीसरे ओलंपिक में भाग लेने के लिए पूरी तरह तैयार है जो कि कुछ ही महीनों में टोक्यो में आयोजित होने वाले हैं। वे ऐसा करने वाले दूसरे भारतीय पुरूष मुक्केबाज होंगे, उनसे पहले यह उपलब्धि विजेंदर सिंह के पास है, जिन्होंने 2008 ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था।

अपने कोच रोनाल्ड सिम्स के साथ अमेरिका में पिछले कुछ महीनों से प्रशिक्षण ले रहे अनुभवी भारतीय पगिलिस्ट अब अपने देश में वापस आ गए हैं और अपनी यात्रा पर चर्चा करने के लिए स्पोर्ट्स टाइगर के  शो बिल्डिंग ब्रिज से जुड़े। आगामी समय में उनका लक्ष्य खेल पर ध्यान केंद्रित करना और बॉक्सिंग में अपना योगदान देना है।

ओलंपिक खेलों में भाग लेने वाले, 28 वर्षीय खिलाड़ी का मानना है कि यह उनके लिए भाग्यशाली होगा कि वे तीसरी बार ओलंपिक में भाग ले रहे हैं और अब वे ओलंपिक क्वालीफिकेशन कैंपेन में सफलता प्राप्त करने के बाद देश के लिए स्वर्ण पदक प्राप्त करना चाहते है।

उन्होंने कहा, “मेरा उद्देश्य इस बार देश के लिए स्वर्ण पदक जीतना है। मैंने दो बार देश का प्रतिनिधित्व किया है लेकिन अब स्वर्ण पदक को हथियाने का समय आ गया है।” उन्होंने यह भी कहा, मैं दुनिया को दिखाने जा रहा हूं कि मुक्केबाजी एक कला है।“

यादव से जब शो में भारतीय दल पर उनके विचारों के बारे में भी पूछा गया तब उन्होंने कहा, ‘हमें काफी मजबूत टीम मिली है, हमारी टीम में अमित पंघाल और मनीष कौशिक जैसे खिलाड़ी हैं जो विश्व चैंपियनशिप पदक जीत चुके हैं। ये खिलाड़ी दुनिया के किसी भी खिलाड़ी को हराने में सक्षम हैं। इनके अलावा हमारे पास सतीश कुमार हैं जो बहुत अधिक अनुभवी हैं और हमारे पास आशीष चौधरी हैं और हमारे पास काफी अच्छे लोगों की टीम है, हमारी टीम काफी मजबूत है। हमारे दल में युवाओं और अनुभवी खिलाड़ियों दोनों का संयोजन है। हम ओलंपिक में अच्छा प्रदर्शन करेंगे।”

2010 के एशियाई खेलों एवं 2018 के राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक विजेता, भारतीय मुक्केबाज ने प्रोफेशनल मुक्केबाजी का भी अनुभव लिया है जिसके बारे में उन्हें उनके दोस्त नीरज गोयत ने बताया था। उन्होंने इसके अच्छे व बुरे दोनों पहलुओं पर बातचीत करते हुए कहा कि- ‘अन्य खेलों की तुलना में मुक्केबाजी के खेल में बहुत अधिक पैसा और सम्मान कमा सकते हैं। आप बहुत पैसा कमा सकते हैं, आप अपने देश का प्रतिनिधित्व प्रो-लेवल पर कर सकते हैं और आप लोगों को यह एहसास करा सकते हैं कि आपका देश प्रो-बॉक्सिंग में कुछ है।”

नुकसान के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा कि, “मुक्केबाजी का नुकसान यह है कि आप हर दिन चेहरे पर मुक्के खाते हैं। इसका प्रभाव यह होता है कि 35-40 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद आप चीजों को भूलने लगते हैं। तब आपकी आवाज कम हो जाती है। हमारे बड़े मुक्केबाजों जैसे मुहम्मद अली, माइक टायसन, जोएल फ्रेज़ियर को देखें, वे लोग सब कुछ भूल गए। आप उन्हें अपना नाम बताएं और बस, बात खत्म। चेहरे पर मुक्के खाना मजाक नहीं है।”

उन्होंने पेशेवर और सामान्य मुक्केबाजी के बीच अपने स्वयं के संतुलन के बारे में बात करते हुए उन्होंने बताया कि प्रतिस्पर्धा ने उन्हें मजबूत बना दिया है। उन्होंने कहा, “पहली बार में पेशेवर और सामान्य मुक्केबाजी के बीच प्रबंधन करना मेरे लिए काफी कठिन काम था। सामान्य तौर पर हमारे पास तीन राउंड होते हैं, जबकि पेशेवर में हम 6 राउंड से शुरू करते हैं। लेकिन अब मैं ट्रैक पर वापस आ रहा हूं। मैं दोनों के लिए समायोजित हूं। मैं ओलंपिक क्वालीफायर में गया, और मैनें आसानी से क्वालीफाई कर लिया। आप जानते हैं कि पेशेवर होना आपको मजबूत बनाता है और यही सबसे अच्छी बात है।”

एक ऐसा देश, जो तीन बार के ओलंपियन से अधिक क्रिकेट से प्यार करता है, उन्हें लगता है कि मुक्केबाजी को अभी देश में उचित श्रेय और प्यार नहीं मिला है और उन्हें विश्वास है कि पेशेवर मुक्केबाजी भारत में मुक्केबाजी को लोकप्रिय बनाने के लिए अच्छा कर सकती है।

उन्होंने कहा, ‘मैं महसूस कर सकता हूं कि पेशेवर मुक्केबाजी मुक्केबाजी को दूसरे स्तर पर ले जा सकती है क्योंकि अमेरिका में सभी को मुक्केबाजी के बारे में पता है। अमेरिका में ऐसे चैनल हैं जो बॉक्सिंग दिखाते हैं जबकि भारत में शायद ही कोई चैनल ऐसा है। यहां तक कि अखबारों में भी क्रिकेट के बारे में छपा होता है। हमें लोगों की मानसिकता को बदलना होगा कि क्रिकेट ही केवल एक खेल नहीं है। मैं किसी खेल की आलोचना नहीं कर रहा हूं लेकिन यह खेल केवल कितने देशों में खेला जाता है और इसमें कितना जोखिम है? इसलिए, आपको तुलना करनी होगी। लेकिन लोग आसान काम चाहते हैं, वे कठिन काम नहीं चाहते हैं।’

अर्जुन अवॉर्ड से सम्मानित मुक्केबाज, बॉक्सिंग को तवज्जो नहीं मिलने के अपने विचारों के बारे में बहुत मुखर थे, उन्होंने खेल के प्रति सरकार के प्रयासों की सराहना की। उन्होंने कहा, “जमीनी स्तर पर सरकार कुछ ठीक निर्णय ले रही है। सरकार ने ऐसे स्पोर्ट सेंटर खोले हैं, जो हमारे जैसे खिलाड़ियों और उन खिलाड़ियों की मदद कर रहे हैं जो कुलीन स्तर पर अच्छे हैं। सरकार उनकी अकादमियों को खोलने में मदद कर रही है और उन्हें जमीन और जरूरी संसाधन उपलब्ध करवा रही है। भारत में सुधार हो रहा है लेकिन जैसा कि आप जानते हैं कि रोम एक दिन में नहीं बनाया गया था, इसलिए इसमें समय लगेगा।”

इसके अलावा 2020 के लॉकडाउन ने खिलाड़ियों की मानसिकता को किस प्रकार प्रभावित किया? इस पर यादव को लगता है खेल मनोवैज्ञानिकों का इसमें बहुत अहम योगदान होगा। जो खिलाड़ियों की तनाव से निकलने में मदद करेंगे और उनके करियर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगे। ‘बिल्डिंग ब्रिज‘ शो पर अंत में, उन्होंने आने वाली पीढ़ी के लिए एक महत्वपूर्ण सलाह दी कि , “किसी भी प्रकार की दवाई या सप्लीमेंट का सेवन नहीं करें। मैं इसे देश के सभी युवा मुक्केबाजों और सभी युवा खिलाड़ियों को बताना चाहता हूं कि ऐसी कोई भी गोली नहीं है जो आपको एक दिन में सफलता की सीढ़ी पर ले जाए। केवल मेहनत ही सफलता की कुंजी है।”

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