कद बढ़ाएं, लेकिन झगड़ा ना बढ़ने दें!
राजेंद्र सजवान
अंतरराष्ट्रीय हॉकी महासंघ(एफआईएच) और अंतरराष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने भारतीय ओलंपिक संघ और विश्व हॉकी संघ के अध्यक्ष डाक्टर नरेंद्र ध्रुव बत्रा को हरी झंडी देते हुए भारतीय ओलंपिक समिति के उपाध्यक्ष सुधांशु मित्तल की शिकायत को खारिज़ कर दिया है। एफआईएच और आईओसी ने आईओए को भेजे जवाब में स्पष्ट किया है कि डाक्टर बत्रा दोनों इकाइयों के सर्वमान्य और वैध अध्यक्ष हैं और उनके चयन पर किसी प्रकार का सवाल खड़ा नहीं किया जा सकता। हालाँकि सुधांशु मित्तल ने कोर्ट का दरवाजा भी खटखटाया है लेकिन कोर्ट क्या फ़ैसला सुनाएगा उसके बारे में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है ।
हालाँकि आईओए में लंबे समय से बहुत कुछ पक रहा था और अध्यक्ष डाक्टर बत्रा और महासचिव राजीव मेहता के बीच की टकराहट दो गुटों में बदल चुकी थी। लेकिन शायद ही किसी ने सोचा था कि महामारी के चलते आईओए की बीमारी दुनियाभर में आम हो जाएगी। यह भी शायद ही किसी ने सोचा होगा कि मित्तल साहब मामले को अंतरराष्ट्रीय मंच तक ले जाएँगे। वह भी ऐसे समय में जबकि पूरी दुनिया कोरोना जैसी जानलेवा बीमारी से जूझ रही है। शायद उन्हें यह भी पता रहा होगा कि डाक्टर बत्रा का अपना परिवार और स्टाफ कोरोना संक्रमित है। इस बारे में बत्रा बाक़ायदा सभी सदस्य इकाइयों, सदस्यों और मीडिया को भी बता चुके थे और उन्होने यह भी कहा था कि कोरोना से निपटने के बाद नाराज़ पदाधिकारियों की शिकायतों का जवाब दे देंगे ।
सवाल यह पैदा होता है कि आख़िर श्री मित्तल ने इतनी जल्दबाज़ी क्यो दिखाई और अपने अध्यक्ष को चारों तरफ से घेरने का प्रयास क्यों किया? उनके विरोधियों की मानें तो अध्यक्ष और महासचिव के बीच के झगड़े को निपटाया जा सकता था और दोनों गुटों के कुछ लोग बाक़ायदा बत्रा और मेहता से संपर्क भी साध चुके थे। सूत्रों के अनुसार मूँछ और कालर की लड़ाई को मिल बैठकर निपटाया जा सकता था और इस दिशा में प्रयास भी शुरू हो चुके थे। मेहता के समर्थकों ने अपना नाम ना छापने की शर्त पर कहा कि बत्रा जी मनमानी करते हैं और किसी भी सदस्य की कोई सही सलाह भी नहीं मानते। यह भी आरोप लगाया कि हॉकी इंडिया को अपने इशारे पर चला रहे हैं और वहाँ भी कोई उनसे कुछ नहीं पूछ सकता ।
दूसरी तरफ अध्यक्ष गुट कह रहा है कि कुछ खेल संघ नियमों का विधिवत पालन नहीं कर रहे। उनके बहीखातों में गड़बड़ पाई गई है। कुछ एक तो यहाँ तक कह रहे हैं कि आईओए में दलगत राजनीति पनप रही है, जिसके लिए कोई जगह नहीं है। चूँकि अध्यक्ष को आईओए में किसी भी प्रकार की राजनीति पसंद नहीं है इसलिए सुधांशु मित्तल से दूरी बनाने की कोशिश की गई। यह भी आरोप लगाया गया कि मित्तल की नज़र आईओए के शीर्ष पद पर है इसलिए अभी से अपने लिए ज़मीन तैयार कर रहे हैं और इस काम में राजीव मेहता का साथ उन्हें मिला हुआ है। हालाँकि मित्तल कह चुके हैं कि वह आगामी चुनाव में अध्यक्ष पद के उम्मीदवार नहीं हैं ।
खैर, सच्चाई कुछ भी हो लेकिन सुधांशु मित्तल की शिकायत और उनके आरोपों को फिलहाल दोनों बड़ी इकाइयों द्वारा नकार दिया गया है। ज़ाहिर है डाक्टर बत्रा का कद और बड़ा हुआ है। यह भी सही है कि आईओए में कटुता और गुटबाजी भी बढ़ सकती है। फिर भी निहित स्वार्थों की खातिर लड़ने वालों को यह नहीं भूलना चाहिए कि देश बड़े संकट के दौर से गुजर रहा है। अपने झगड़े ओलंपिक भवन में निपटा सकें तो बेहतर रहेगा। वरना इतिहास किसी को माफ़ नहीं करेगा। यह ना भूलें कि ओलंपिक सर पर है और भारतीय खिलाड़ी ऐसे मौके पर आईओए से अधिकाधिक सपोर्ट की उम्मीद कर रहे हैं।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को www.sajwansports.com पर पढ़ सकते हैं।)