भारत भी करे सामरिक शक्ति की मार्केटिंग

निशिकांत ठाकुर

समझ नहीं आता कि क्या हमारा देश वाकई इतना कमजोर हो गया है या हमारी विदेश नीति इतनी बेचाल हो गई है कि हमारे पड़ोसी देश जब देखो तब हुड़की देकर हमें डराते रहते हैं! अब तक सीमा पर हमारे सैनिक पाकिस्तान जैसे नासूर बने देश से दो-दो हाथ करने के लिए हर समय तैयार रहते थे। फिर सीमा पर उठापटक के दौरान चीन को भी भारत पर हाथ फेरने का मौका मिला और चीन अपना पूरा फौजी अमला लेकर लद्दाख पर चढ़ाई करने की फिराक में जुट गया। अब जब उसके मंसूबे पूरे नहीं हुए तो अपना मकसद साधने के लिए नेपाल जैसे छोटे देश को भड़काकर भारत के भूभाग पर अपना कब्ज़ा दिखाने के लिए नेपाली संसद में बिल पास करवा लिया। सोचने की बात यह है कि जिस नेपाल को हमने कभी पराया देश नहीं समझा, जिस नेपाल से हमारा युगों पुराना रोटी-बेटी का संबंध है, वह भी हम पर आंखें तरेरने लगा है।
युगों पुराना संबंध इसलिए, क्योंकि मिथिलांचल का आधा भाग भारत का ही हिस्स था और उसकी राजधानी जनकपुर थी। 1816 में जो अवैध संधि हुई थी उसमें मिथिलांचल का राजधानी सहित आधा भाग नेपाल में चला गया। अब सरकार तो निश्चित रूप से अचानक आई इस बिन बुलाई समस्या से निपटने के लिए पूरी तरह तैयार होगी ही, लेकिन इन पड़ोसी देशों की आखिर इतनी हिम्मत कैसे हुई कि वह भारत जैसे देश को अपनी धौंसपट्टी में लेने का प्रयास करने लगे! निश्चित रूप से यह धौंस ही है कि यदि भारत दबाव में आ गया तो उसका वह किसी-न-किसी रूप से फायदा उठाएगा। इसे नेपाल का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि वह भारत के साथ अपने इतने पुराने संबंधों के ऐसे चीथड़े कर दे कि उसमें पैबंद के लिए भी जगह न बचे। पता नहीं वह किसके बहकावे में आकर ऐसी हरकतें कर रहा है।
दरअसल, नेपाल वर्ष 1816 की सुगौली संधि का हवाला देकर मामले को उलझाना चाहता है, जबकि उसे भी मालूम है कि वह संधि ही गैर कानूनी है। वैसे भी सुगौली संधि की अवधि 200 वर्षों की ही थी, जो अब खत्म हो गई है। आदिकाल से भारत का अंग रहा मिथिला राज्य का आधा भाग काटकर नेपाल में मिला दिया है, जिसे वापस करने के लिए भारत को आवाज उठानी चाहिए, क्योंकि दुर्भाग्यवश वहां के भारतीय मैथिल नागरिकों को वह सम्मान अब वहां नहीं मिलता, जिसके वे हकदार हैं। उन्हें ‘भदेसी’ कहा जाता है और नेपाली नागरिक होने का जो सामान्य अधिकार हासिल होता है, उससे भी उन्हें वंचित कर दिया जाता है। नेपाल अब भारत के साथ सौतेला व्यवहार करने लगा है तभी तो अपने संबंधियों से मिलने नेपाल जाने वाले भारतीयों को भारत की सीमा में घुसकर नेपाली सैनिक गोली मार देते हैं और भारतीयों के नेपाल में रह रहे सगे-संबंधियों को बंधक बना लेते हैं। ऐसे में चिंतनीय सवाल यह है कि आखिर भारत और नेपाल के आपसी प्रगाढ़ संबंध आज इतने खराब क्यों और कैसे हो गए!
नेपाल अब भारतीय मूल के निवासियों के साथ वह व्यवहार कर रहा है, जैसे पाकिस्तान में आजादी के दौरान अथवा आजादी के बाद गए भारतीय मुसलमानों के साथ हो रहा है। बंटवारे के बाद भारत से पाकिस्तान गए मुसलमानों को वहां मुजाहिर कहा जाता है और दोयम दर्जे का नागरिक माना जाता है। हम जानते हैं कि पाकिस्तान का निर्माण ही भारत विरोध के परिप्रेक्ष्य में हुआ था और भारत से अलग होने से पहले से ही पाकिस्तान खून-खराबा करके दहशत का माहौल बनाता रहा था। आजादी के बाद भी वह भारत को मजबूर कर कई बार प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से युद्ध लड़ चुका है और हर बार मुंह की खाकर जान-माल का भारी नुक़सान झेल चुका है। अपनी इसी आतंकी दादागीरी के कारण वह अपने देश का आधा हिस्सा तक गंवा चुका है, जो आज बांग्ला देश कहलाता है।
आजकल पाकिस्तान, चीन और नेपाल एक नई तिकड़ी बनाकर जिस प्रकार भारत पर दबाव बनाने का प्रयास कर रहा है, उससे तो यही लगता है चीनी कम्युनिस्ट के घोर प्रभाव में नेपाल और यहां तक कि पाकिस्तान भी आ चुका है। हालांकि, कहा जा रहा है कि सीमा पर स्थिति नियंत्रण में है, लेकिन चीन कभी विश्वास के योग्य रहा नहीं। 1962 में जब हिंदी-चीनी भाई भाई के नारे लग रहे थ, तब भी वह अपनी पूरी ताकत से युद्ध करने पर उतारू था और उसे अंजाम भी दिया। वैसे उस युद्ध में भारतीय सेना में भारी कमी की वजह से भारत को बहुत बड़ा नुकसान भी उठाना पड़ा था; दरअसल, लेकिन आजाद भारत का वह पहला युद्ध था और वह सैकड़ों वर्षों की गुलामी से नया-नया आजाद ही हुआ था। ऐसे में उसके पास न तो युद्ध करने के लिए सामरिक हथियार थे और न ही उतना सशक्त सैन्य बल और कौशल। भारत की इसी कमजोरी का फायदा उठाकर चीन ने पहले दोस्ती गांठी, और उसके बाद गले लगकर छुरा भी घोंप दिया। लेकिन, आज का भारत 1962 का भारत नहीं है। आज भारत के पास वह सारे अत्याधुनिक सामरिक हथियार हैं, जिसके कारण कोई भी देश हम पर आक्रमण करने से पहले सौ बार अपने गिरेबां में जरूर झांकेगा। यह अलग बात है कि भारत अपनी सामरिक मार्केटिंग उस तरह नहीं कर पाता या करने में यकीन नहीं करता, जितना कि एक छोटा-मोटा देश भी आजकल करता है। यह हमारी कमजोरी है या हमारा आत्मबल… कि हम अपनी शक्ति को संजोकर रखते हैं और मौका आने पर ही उसका उपयोग करते हैं। उसकी बेजा नुमाइश नहीं करते। पाकिस्तान का उदाहरएा सामने हैं। उसने हमारे 44 सैनिक मारे, तो बदले में हमने उसके घर में घुसकर आतंकी ट्रेनिंग कैंप को समूल नष्ट कर दिया। पाकिस्तान को इस हाल में पहुंचा दिया कि वह अपना दुखड़ा किसी के सामने रो भी नहीं पाया। इससे भारत की ताकत का अनुमान पूरी दुनिया को भी लग गया है। वैसे किसी भी देश का खुफिया तंत्र इस मामले में काफी जागरूक रहता है। सभी देशों को एक-दूसरे देशों की ताकत की पूरी जानकारी रहती है। इसलिए भारत को भी आज के हिसाब से मार्केटिंग के इस वाक्य को याद रखने की जरूरत है कि पहले लोग कहते थे ‘नेकी कर कुएं में डाल’, अब इस बात को भुलाकर मार्केटिंग गुरु कहते हैं, ‘कुछ भी कर मार्केटिंग में डाल।’ इसलिए अब भारत को अपने पड़ोसी सभी देशों को अपनी हैसियत में रखने के लिए अलग से कोशिश करनी चाहिए।


(लेखक वरिष्ठ पत्रकार व राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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