भारतीय हॉकी: खोखले दावे नहीं, पदक चाहिए

राजेंद्र सजवान
कोविद 19 के चलते खेल गतिविधियाँ ठप्प पड़ी थीं लेकिन जैसे ही टोक्यो ओलंपिक के आयोजकों ने साल भर बाद खेलों के आयोजन को लेकर संभावना व्यक्त की है, भारतीय खेलों में भी सुगबुगाहट शुरू हो गई है। ख़ासकर, ओलंपिक में शानदार रिकार्ड रखने वाली हॉकी तेज़ी से हरकत में आ गई है। सच तो यह है कि फिलहाल अख़बार बाजी और बयान बाजी का दौर शुरू हुआ है और उम्मीद की जानी चाहिए कि बहुत शीघ्र ही हालत सुधरेंगे और भारतीय पुरुष और महिला टीमें पदक के लिए अपने अस्त्र शस्त्र भाँजने में जुट जाएँगी।

सही समय पर क्वालीफ़ाई:
जहाँ एक ओर अधिकांश खेलों में ओलंपिक क्वालीफायर खेले जाने शेष हैं तो इस लिहाज़ से भारतीय पुरुष और महिला हॉकी टीमों ने सही  समय पर टोक्यो का टिकट कटा लिया था और तत्पश्चात तैयारियाँ शुरू हो चुकी थीं। बुरा हो इस कोरोना का जिसने ओलंपिक से कुछ महीने पहले बना बनाया खेल बिगाड़ दिया और अब तमाम देशों को नये सिरे से तैयारी में जुटना पड़ेगा।

बेल्जियम बेहतर स्थिति में:
एफआईएच वर्ल्ड रैंकिंग पर नज़र डालें तो कई साल बाद भारतीय हॉकी सुखद स्थिति में दिखाई पड़ती है। भारत चौथे स्थान पर है, जबकि बेल्जियम, आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड क्रमशः पहले तीन स्थानों पर काबीज हैं। सीधा सा मतलब है कि भारतीय खिलाड़ियों ने पिछले कुछ सालों में बेहतर प्रदर्शन किया है। लेकिन बेल्जियम की उँची छलाँग हैरान करने वाली है। उसने आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और जर्मनी जैसे देशों को पीछे छोड़ कर मिशाल कायम की है। हॉकी विशेषज्ञ तो यहाँ तक कह रहे हैं कि यदि बेल्जियम का प्रदर्शन ठीक ठाक रहा तो वह नया चैम्पियन बन कर उभर सकता है।

भारत का दावा मजबूत क्यों है:
हालाँकि हर ओलंपिक से पहले भारतीय हॉकी फ़ेडेरेशन और हॉकी इंडिया ओलंपिक पदक जीतने का दावा करते आ रहे हैं लेकिन 1980 के मास्को ओलंपिक के बाद भारतीय टीम पदक विजेता प्रदर्शन नहीं कर पाई। यह भी सच है कि हमारे हॉकी के कर्णधारों ने सुधार के उपाय करने की बजाय हवाई दावे ज्यादा किए। आगामी ओलंपिक में भारत को फिर से पदक का दावेदार बताया जा रहा है। हॉकी इंडिया और उससे जुड़े कुछ अधिकारी और कोच जोड़ घटा के बाद इस नतीजे पर पहुँचे हैं कि भारतीय खिलाड़ी पहले की तुलना में शारीरिक और मानसिक तौर पर ज़्यादा फिट हैं और किसी भी यूरोपीय टीम पर भारी पड  सकते हैं। बेल्जियम, आस्ट्रेलिया और नीदरलैंड को भारतीय खिलाड़ियों ने हाल के वर्षों में कड़ी टक्कर दी और हराया भी है।

अब नहीं तो कब:
पिछले कुछ सालों से भारतीय हॉकी ड्राइविंग सीट पर नज़र आती है। खासकर, डॉक्टर नरेंद्र बत्रा के एफ आई एच अध्यक्ष बनने के बाद से भारत का कद ऊंचा हुआ है। हालांकि खिलाड़ियों के प्रदर्शन पर पदक निर्भर करता है लेकिन यदि इस बार  पदक नहीं मिला तो भविष्य में शायद ही मौका मिले।

बीजिंग और लंदन में शर्मसार हुए:
भारतीय हॉकी के लिए सबसे बुरा ओलंपिक बीजिंग 2008 साबित हुआ, जिसके लिए भारतीय हॉकी टीम क्वालीफ़ाई नहीं कर पाई। यह पहला मौका था जब भारत के बिना ओलंपिक में हॉकी के मुक़ाबले खेले गये।  लेकिन  हमारे हॉकी आकाओं ने कोई सबक नहीं सीखा और चार साल बाद जो कुछ हुआ वह और भी ज़्यादा शर्मनाक था। लंदन ओलंपिक 2012 में भारत खेला और अपनी साख को पूरी तरह बट्टा लगा बैठा। जर्मनी चैम्पियन बना और भारत को मिला 12वाँ और अंतिम स्थान। शायद ऐसे प्रदर्शन की कल्पना किसी भी भारतीय ने नहीं की होगी। हालाँकि गाजे बाजे और सेंड आफ समारोह में बड़बोलापन  दिखा कर गए और मुहँ छुपा कर वापस लौटे।

रियो में भी पोल खुली:
रियो ओलंपिक में फुटबाल राष्ट्र अर्जेंटीना नया चैम्पियन बनकर सामने आया और बेल्जियम ने उपविजेता बन कर अपनी ताक़त दिखाई। गोलकीपर श्रीजेश की कप्तानी वाली भारतीय टीम ढोल नगाड़े बजाते हुए रियो गई और मातमी धुन के साथ लौटी। कुछ दोस्ताना और तैयारी मैचों में बड़ी टीमों को हराने के बाद हमारे अधिकारी और टीम प्रबंधन इस कदर पागला गए कि अपनी टीम की ताक़त का  सही अंदाज़ा नहीं लगा पाए और फिर से बड़बोलों की बोलती बंद हो गई। हालाँकि भारतीय  टीम ने चैम्पियन अर्जेंटीना को कड़ी टक्कर में हरा कर ग्रुप मुकाबला जीता  लेकिन क्वार्टर फाइनल में बेल्जियम से हार कर उम्मीदों पर पानी फिर गया और आठवें स्थान से संतोष करना पड़ा।

पदक का दावा जोखिम भरा:
भारतीय हॉकी के पूर्व महान खिलाड़ी और कोच मानते हैं कि पिछले कुछ सालों में अपने खिलाड़ियों को बेहतर सुविधाएँ और पैसा मिल रहा है। उनके अनुसार विदेशी कोचों के आने से फिटनेस में भी सुधार हुआ है। लेकिन हॉकी इंडिया और चंद खिलाड़ियों के अलावा हर कोई पदक जीतने का दावा करने से बच रहा है। ज़्यादातर पहली चार टीमों, बेल्जियम, आस्ट्रेलिया, नीदरलैंड और भारत के अंतिम चार में पहुँचने की बात तो करते हैं पर  पदक जीतने का दावा कोई भी नहीं करना चाहता। उन्हें बेल्जियम, ऑस्ट्रेलिया और नीदरलैंड  के अलावा जर्मनी, इंग्लैंड, स्पेन अर्जेंटीना, न्यूज़ीलैंड और मेजबान जापान में भी दम दिखाई पड़ता है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

 

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