मनोज कुमार से भारत कुमार बनने का सफ़र…
शिवानी रज़वारिया
गुजरे जमाने के मशहूर अभिनेता मनोज कुमार का नाम आते ही देशप्रेम से ओतप्रोत फिल्मों के की चर्चा होने लगती है. चाहे क्रांति हो या फिर उपकार या फिर पूरब और पश्चिम, मनोज कुमार ने अपने फ़िल्मी करियर में वैसे तो बहुत सी फ़िल्में की हैं, लेकिन जितनी लोकप्रियता उनको देशभक्ति से जुडी हुई फिल्मों से मिली उतनी शायद दूसरी फिल्मों से नहीं.
उपकार, शहीद, पूरब और पश्चिम और क्रांति जैसी फिल्मों ने मनोज कुमार की छवि को एक देशभक्त का रूप दिया। इन फिल्मों में देशभक्ति की भावना को इतनी प्रबलता से दर्शाया गया है कि यह कई पीढ़ियों के लिए आदर्श बन गए। मनोज कुमार शहीद-ए-आजम भगत सिंह से बहुत प्रभावित हैं जिसकी झलक उनकी देशभक्ति फिल्मों में दिखाई देती हैं।
मनोज कुमार का पूरा नाम हरीकृष्ण गिरी गोस्वामी है। उनका जन्म 24 जुलाई 1935 को एबटाबाद प्रांत (अब पाकिस्तान) में हुआ था। उनके परिवार में पत्नी शशि गोस्वामी, दो बेटे विशाल और कुनाल हैं।
हालांकि मनोज कुमार ने अपने कैरियर में रोमांस, हॉरर ड्रामा,कॉमेडी के रोल भी निभाए हैं।यह बात और है कि उनकी देश प्रेम को बढ़ावा देती फिल्मों को दर्शकों का खूब प्यार मिला है और इसी के चलते उनके चाहने वाले उन्हें मनोज कुमार की बजाय भारत कुमार कहकर पुकारते हैं। जब मनोज कुमार महज 10 साल के थे, तब बंटवारे की वजह से उनका पूरा परिवार राजस्थान के हनुमानगढ़ जिले में आकर बस गया। बचपन के दिनों में मनोज कुमार ने दिलीप कुमार की फिल्म शबनम देखी थी। फिल्म में दिलीप के किरदार का नशा ऐसा चढ़ा कि उन्होंने भी फिल्म अभिनेता बनने का फैसला कर लिया। इतना ही नहीं फ़िल्म में दिलीप कुमार से प्रभावित होकर उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार कर लिया। दिलीप कुमार की फिल्म ‘शबनम’ में उनके किरदार के नाम पर ही अपना नाम हरिकृष्ण गिरी गोस्वामी से बदल कर मनोज कुमार रख लिया। दिल्ली के मशहूर हिंदू कॉलेज से स्नातक की पढ़ाई करने के बाद वह अभिनेता बनने का सपना लेकर मुंबई आ गए।
आप अगर गौर करें तो कुमार अकसर बंद गले के कपड़े पहनना पसंद करते हैं। फिर चाहे वह कुर्ता हो या शर्ट। उनकी फिल्मों में वह अक्सर ऐसे ही कपड़े पहने हुए दिखते हैं। इसके अलावा आप मनोज कुमार के एक हाथ को अकसर उनके अपने मुंह पर रखा पाएंगे। मनोज कुमार को फ़िल्मों में रोमांस के बजाय देशभक्ति फ़िल्में करना ज्यादा भाया। मनोज कुमार ने कैरियर की शुरुआत 1957 में रिलीज फिल्म “फैशन” से की।
सन् 1960 में प्रमुख भूमिका में वह उनकी पहली फ़िल्म ‘कांच की गुडि़या’ में नजर आए। इसके बाद उनकी दो और फ़िल्में पिया मिलन की आस और रेशमी रुमाल आई लेकिन उनकी पहली हिट फ़िल्म सन 1962 में ‘हरियाली और रास्ता’ थी। मनोज कुमार ने वो कौन थी, हिमालय की गोद में, गुमनाम, दो बदन, पत्थर के सनम, यादगार, शोर, संन्यासी, दस नम्बरी और क्लर्क जैसी अच्छी फ़िल्मों में काम किया। उनकी आखिरी फ़िल्म मैदान-ए-जंग (1995) थी। बतौर निर्देशक उन्होंने अपनी अंतिम फ़िल्म ‘जय हिंद’ 1999 में बनाई थी।
1976 में प्रदर्शित फिल्म “दस नंबरी” की सफलता के बाद मनोज कुमार ने लगभग 5 वर्षों तक फिल्म इंडस्ट्री से किनारा कर लिया। 1981 में उन्होंने फिल्म क्रांति के जरिए दूसरी पारी शुरू की। मनोज कुमार ने अपने दौर के सभी नायकों और नायिकाओं के साथ काम किया। राजेंद्र कुमार और राजेश खन्ना के दौर में भी वह कामयाब रहे। हिंदी फिल्म जगत ने उनको एक ऐसे बहुआयामी कलाकार के तौर पर जाना जाता है जिन्होंने फिल्म निर्माण के साथ-साथ निर्देशन, लेखन, संपादन और बेजोड़ अभिनय से भी दर्शकों के दिल में अपनी खास पहचान बनाई है।
चांद सी महबूबा।।,पत्थर के सनम।।।,कोई जब तुम्हारा।।।, मेरे देश की धरती।।, भारत का रहने वाला हूं।।, तौबा यह मतवाली चाल।।, दीवानों से यह मत पूछो।।, उनकी फिल्मों के गानों ने आज भी लोगों के जहन में अपनी सदाबहार छवि बनाई हुई है।
मनोज कुमार ने वर्ष 1967 में “उपकार” फिल्म को निर्देशित किया, जिसमें उन्होंने एक सैनिक और एक किसान की भूमिका निभाई थी। यह फिल्म कुमार साहब ने तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के एक लोकप्रिय नारा “जय जवान जय किसान” के आधार पर बनाई थी। ऐसी एक फ़िल्म के लिए प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री ने उनके सामने ख़ुद इच्छा जताई थी जिसके लिए सन 1968 में फ़िल्म “उपकार”को सर्वश्रेष्ठ फिल्म, सर्वश्रेष्ठ डायरेक्टर, सर्वश्रेष्ठ कहानी, सर्वश्रेष्ठ संवाद फिल्म फेयर अवार्ड से नवाजा गया था। 1968 में फिल्म उपकार को बेस्ट फीचर फिल्म राष्ट्रीय अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। सन1975 में “रोटी कपड़ा और मकान” के लिए मनोज कुमार को सर्वश्रेष्ठ निर्देशक का अवार्ड दिया गया। 1999 में लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड, 1992 में सर्वोच्च सम्मान पदम श्री तथा 2008 में राष्ट्रीय सम्मान राष्ट्रीय किशोर कुमार अवॉर्ड और 2012 में अमेरिका के न्यूजर्सी शहर में भारत गौरव अवार्ड से सम्मानित किया गया। सन् 2016 में मनोज कुमार को दादा साहब फाल्के अवार्ड से सम्मानित किया गया।
वर्ष 1995 की फिल्म “मैदान-ए-जंग” में आखिरी बार अभिनय करने के बाद मनोज कुमार ने अभिनय से किनारा कर लिया। यह उनकी अंतिम फ़िल्म थी जिसमे उन्होंने अभिनय किया। बॉलीवुड सिनेमा में मनोज कुमार एक ऐसी शख्सियत का नाम है।जिसने बॉलीवुड फिल्मों को एक नई दिशा दी। जिनकी फिल्मों ने देश प्रेम के साथ इंसानियत और उससे जुड़ी तमाम भावनाओं को लोगों के सामने पर्दे पर उतारा। मनोज कुमार अपने ज़माने के पाक साफ़ अभिनेता माने जाते है जिनका नाम विवादों के गलियारों में कभी गूंजता नहीं सुनाई दिया ना ही किसी अभिनेत्री के साथ उनके प्रेम संबंध का ज़िक्र सामने आया। उन्होंने शशि गोस्वामी के साथ शादी की और उनकी गृहस्थ जीवन की कोई चर्चा खबरों के बाज़ार में नहीं बिकी। वे एक शांत स्वभाव के अभिनेता रहे।
मनोज कुमार अक्सर विवादों से दूर ही रहें है लेकिन उनका शाहरूख खान के साथ हुआ विवाद काफी चर्चा में रहा, जिसके बाद किंग खान को उनसे माफी भी मांगनी पड़ी थी। दरअसल वर्ष 2007 में आयी फिल्म ‘ ओम शांति ओम’ के कुछ दृश्यों पर मनोज कुमार को एतराज था। उनका कहना था कि इन दृश्यों में उनकी मानहानि हुई है। पर फिर भी फिल्म को जापान में उन दृश्यों को हटाए बिना ही रिलीज कर दिया गया। इस पर मनोज कुमार ने कोर्ट में दावा कर दिया जिसके बाद फिल्म के निर्देशक और अभिनेता शाहरुख खान को उनसे माफी मांगने पड़ी। शाहरुख, खान फराह खान के माफी मांगने के बाद मनोज कुमार ने केस वापस ले लिया था।
हर किसी के जीवन में एक वक़्त ऐसा जरूर आता है जब उसे किसी के सहारे की जरूरत होती है और वही वक्त अपने परायों की पहचान देता हैं। ऐसा ही समय कुमार साहब की जिंदगी में भी आया। जब उनको मदद की जरूरत थी। लेकिन किसी अभिनेत्री ने आगे बढ़ कर हाथ नहीं बढ़ाया ऐसे में अभिनेत्री नंदा ने अपना हाथ बढ़ाया और मनोज को सहारा दिया। यह किस्सा फिल्म ‘शोर’ के समय का है दरअसल इस फिल्म लिए लीड एक्ट्रेस के तौर पर जया भादुड़ी को फाइनल कर लिया गया था। फिल्म में हीरोइन को पहले ही शॉट में मरना था। इस छोटे से रोल के लिए कोई तैयार नहीं था, तब नंदा ने इस रोल के लिए हां कहा। उन्होंने मनोज कुमार के सामने एक शर्त भी रखी थी कि वह इस फिल्म के लिए एक भी पैसा नहीं लेंगी। एक इंटरव्यू में मनोज कुमार इस बात का ज़िक्र करते हुए कहा था कि आप किसी का एहसान नहीं चुका सकते। लेकिन फिर भी मैंने कोशिश की कि नंदा जी का एहसान उतार सकूं। लेकिन मैं ऐसा कर नहीं पाया।
कुमार का हिंदी सिनेमा में योगदान हमेशा याद किया जाता है और जाता रहेगा। उन्होंने जो हिन्दी सिनेमा को दिया है वो सिनेमा के कई दशक में भी कोई अभिनेता नहीं दे पाया।