दरभंगा संस्कृत विश्वविद्यालय: अब तक एक भी एडमिशन नहीं होने से पंजीप्रबंध में डिप्लोमा कोर्स बंद होने के कगार पर
चिरौरी न्यूज़
नई दिल्ली: कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्वविद्यालय, दरभंगा में शुरू हुए पंजीप्रबंध और मिथिलाक्षर में डिप्लोमा कोर्स में अब तक एक भी एडमिशन नहीं होने से कोर्स को बंद करने की नौबत आ चुकी है। नामांकन से सम्बंधित सूचना विश्वविद्यालय के वेबसाइट पर दी गयी है, लेकिन अभी तक पंजीप्रबंध में एक भी विधार्थी ने फॉर्म नहीं भरा है। फॉर्म भरने की अंतिम तारीख 15 अप्रैल है। कुलपति डॉ श्री शशिनाथ झा के अथक प्रयासों से पंजी प्रबंध में डिप्लोमा का कोर्स फिर से शुरू किया गया था, लेकिन छात्रों के आभाव में इसे शुरू करना विश्वविद्यालय प्रशासन के लिए मुश्किल है। बता दें कि पूर्व कुलपति रामशरण शर्मा के समय में भी पंजी प्रबंध की पढाई शुरु हुई थी लेकिन कुछ कारणों से इस कोर्स को बंद कर दिया गया था।
पिछले साल 19 दिसम्बर को चिरौरी न्यूज़ से बातचीत में विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ श्री शशिनाथ झा ने बताया था कि पंजी प्रबंध में डिप्लोमा का कोर्स शुरू करने का निर्णय लिया गया है और इसके लिए आवश्यक व्यवस्था की जा रही है।
उन्होंने बताया था कि एक साल पहले ही यह कोर्स शुरू होने वाला था, लेकिन किसी कारणवश ऐसा नहीं हो पाया था। कुलपति ने कहा था कि अब अगले साल फरवरी से सत्र की शुरुआत हो सकती है। पहले बैच में तक़रीबन 30 विद्यार्थियों का नामाकन होगा और इसके लिए शैक्षणिक योग्यता 12वीं रखी गयी है। कोई भी इस कोर्स में नामांकन के लिए आवेदन कर सकता है।
क्या है पंजी प्रबंध
मिथिला के ब्राह्मण और कर्ण कायस्थ की लिखित वंशावली को पंजी कहते हैं। मिथिला के ब्राह्मण और कर्ण कायस्थों के विवाह के समय वर और वधू पक्ष से सात-सात पीढ़ी का मिलान आवश्यक होता है, जिसके द्वारा यह जांचा जाता है कि दोनों पक्षों में से किसी के बीच सात पीढ़ी तक कोई सम्बन्ध तो नहीं है। इसके बाद ही विवाह के लिए पंजीकार स्वीकृति देते हैं। मिथिला के ब्राह्मणों और कर्ण कायस्थों के लिए यह बहुत पुरानी व्यवस्था है, लेकिन 13 वीं शताब्दी में राजा हरिसिंह देव के समय इसे औपचारिक रूप से लिपिबद्ध और संग्रहित करना शुरू किया गया। प्रारंभ में यह लिपिबद्ध नहीं था जिसके कारण यह पूरी तरह व्यवस्थित नहीं था, लेकिन 13वीं शताब्दी के बाद से इसका लिपिबद्ध प्रमाण मौजूद है।