जगहंसाई: मिल्खा ने नकारा था अर्जुन अवार्ड; साक्षी ने प्रधानमंत्री को लिखा पत्र 

राजेन्द्र सजवान

सन 2001 में जब उड़न सिख मिल्खा सिंह को अर्जुन अवार्ड देने की पेशकश की गई तो उन्होंने यह कहते हुए इनकार कर दिया कि उनका श्रेष्ठ पीछे छूट गया है और अब अर्जुन अवार्ड के उनके लिए कोई मायने नहीं रह गए हैं। उधर खेल रत्न साक्षी मलिक और मीरा बाई चानू को बड़ा सम्मान मिलने के बाद अर्जुन अवार्ड पाने की चाह थी , जिस पर पानी फिर गया है। लेकिन साक्षी ने हिम्मत नहीं हारी है। उसने अब प्रधानमंत्री और खेल मंत्री को पत्र लिख कर अर्जुन अवार्ड मांगा है।

दरअसल, साई द्वारा की गई छंटनी और राष्ट्रीय खेल अवार्ड कमेटी द्वारा दोनों खिलाड़ियों के नामों की सिफारिश के बाद जब मामला खेल मंत्रालय तक पहुंचा तो खेल मंत्री किरण रिजुजू ने दोनों खिलाड़ियों के नाम हटा कर शेष 27 खिलाड़ियों को अर्जुन अवार्ड दिए जाने को हरी झंडी दिखा दी। हालांकि साक्षी और मीरा द्वारा अर्जुन अवार्ड के लिए आवेदन किये जाने को लेकर खुशफुसाहट शुरू हो चुकी थी। इस तरह का कोई मामला पहले कभी सामने नहीं आया था।

जहां तक मिल्खा सिंह की बात है तो उन्होंने खेल मंत्रालय को नसीहत देते हुए कहा था कि जिस शख्स को पद्म श्री मिल चुकी है उसके लिए अर्जुन अवार्ड क्या मायने रखता है। वैसे भी वह अनेक अवसरों पर खेल अवार्डों की भत्सर्ना कर चुके थे। उनके समय में खेल अवार्डों की शुरुआत नहीं हुई थी। लेकिन साक्षी मलिक अर्जुन अवार्ड नहीं मिलने के कारण बहुत दुखी है। ऐसा क्यों है , यह तो वही जानें पर श्रेष्ठ खिलाड़ी का सबसे बड़ा सम्मान पाने के बाद उन्हें संतुष्ट हो जाना चाहिए, ऐसा खेल जानकारों का मानना है।

लेकिन कुसूरवार साक्षी और मीरा नहीं हैं। जिन लोगों को आवेदनों की छंटनी का काम सौंपा गया था और जिस कमेटी ने अर्जुन अवार्ड तय किये, उसने समय रहने जरूरी कदम क्यों नहीं उठाया? नतीजा यह रहा कि जगहंसाई के बाद खेल मंत्री को दोनों महिला दावेदारों के नामों पर कलम चलानी पड़ी।

खैर, मीरा बाई ने तो खेल मंत्री के फैसले के बाद चुप्पी साध ली लेकिन साक्षी ने अर्जुन अवार्ड नहीं मिलने को दिल से लगा लिया है, जोकि ठीक नहीं हैं। उन्हें याद रखना चाहिए कि टोक्यो ओलंपिक के लिए ज्यादा समय नहीं बचा है और उनके सामने सोनम मलिक नाम की बड़ी चुनौती खड़ी है, जोकि साक्षी को दो बार हरा चुकी है। अन्य कई लड़कियां भी उसके राह का रोड़ा बन सकती हैं। लेकिन खेल अवार्डों को मज़ाक बनाने वालों को माफ नहीं किया जा सकता। बेहतर होता पहले ही यह मसला खेल मंत्री के संज्ञान में होता और खेल अवार्ड कमेटी के सामने जाने से पहले ही दोनों दावेदारों के नाम हटा दिए जाते।

(राजेंद्र सजवान वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं. आप इनके लिखे लेख www.sajwansports.com पर भी पढ़ सकते हैं.)

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