चीन, पाकिस्तान की कतार में नेपाल भी

निशिकांत ठाकुर

चीन और पाकिस्तान दोनों ही न तो अपनी आदतें सुधार पा रहे हैं और न ही लोभ छोड़ पा रहे हैं । विशेष रूप से चीन तो अपनी विस्तारवादी नीति के मोह से मुक्त हो ही नही पा रहा है। भले ही अपनी इस मध्यकालीन मानसिकता वाली नीति के चलते वह भारत सहित दुनिया भर में बदनाम हो रहा है और हर जगह आशंका और अविश्वास की दृष्टि से ही देखा जा रहा है। मध्यकाल के असभ्य लडाका कबीलों की ही तरह आज के आधुनिक युग में भी वह अपने अडोस पड़ोस के सभी देशों को दहशत में लेकर उन पर अपना कब्जा जमाने की खामखयाली में जिए जा रहा है। पाकिस्तान के लिए तो हम सब जानते हैं कि भारत से वह अलग ही इसलिए हुआ था क्योंकि वह भारत के विरोध में था और कई कारणों से वह अलग होना चाहता था। भारत विरोध उसके अस्तित्व के मूल में ही है और इसीलिए भारत का बटवारा हुआ। एक अलग देश के रूप में भारत विरोध के लिए ही पाकिस्तान का जन्म हुआ। भारत पर किसी न किसी रूप में प्रहार करते रहना तो उसकी जन्मजात आदत है। इसलिए साल दो साल पर वह कोई ना कोई ऐसा कृत्य करता है जिससे भारत की शांति भंग होती है। हमारे सीमा पर तैनात जवानों पर चोरी छिपे आक्रमण करके उनके खून से सीमा को रंगता रहता है । कई बार बातचीत के माध्यम से और कई बार उसके द्वारा छेड़े गए युद्ध में हरा कर उसे समझा दिया गया, उस देश के दो टुकड़े कर दिए गए , पर फिर भी उसकी समझ में नहीं आ रहा है और बार बार वह उत्पात मचाता रहता है ।

पिछले दिनों उसे सबक सिखाने के उद्देश्य से ही भारतीय जवानों ने उसकी सीमा के अंदर घुसकर उसके आतंकी ठिकानों को ध्वस्त करने का काम किया। लेकिन, वह इतना ढीठ हो गया है कि उसके बाद भी उसकी समझ में कुछ नहीं आता। वह पूरी दुनिया में बुरी तरह बेइज्जत होने के बावजूद यह मानने को तैयार नहीं है कि भारत अब वह देश नहीं रहा जो हर हाल में अहिंसा को ही सर्वोपरि मानेगा। भारत अब दुनिया के हालात देखते हुए शठे शाठ्यम समाचरेत भी सीख चुका है। वह सामरिक रूप से अपने को बहुत समृद्ध कर चुका है। दरअसल, पाकिस्तान के ऊपर दिखावे के लिए चीन का वरदहस्त है। हालांकि सच यह है कि चीन उसका इस्तेमाल कर रहा है। इसमें पाकिस्तान की हालत पालतू गुंडे जैसी होकर रह गई है और इसलिए जैसा उसका आका उसे करने के लिए कहता है वह उसी प्रकार भारत की शांति को भंग करता रहता है।

चीन कभी अरुणाचल प्रदेश तो कभी लद्दाख और अब तो हिमाचल प्रदेश के रास्ते भारत में घुसने की कोशिश कर रहा है। अभी पिछले दिनों लेह लद्दाख की गलबान घाटी के माध्यम से घुसने की कोशिश कर रहा था तो भारतीय जवानों ने अपनी शहादत देकर उसे पीछे हटने के लिए मजबूर कर दिया। अपनी साजिश में उसे मुंह की खानी पड़ी और वहां की कम्युनिस्ट पार्टी को अपने कई सैनिकों की जान से हाथ धोना पड़ा। फिर काफी जद्दोजहद के बाद वह पीछे हटने को राजी हुआ। अब ऐसा लगता है कि चीन का पीछे हटना एक नाटक था क्योंकि अभी भी वह शांत नहीं है और किसी न किसी तरीके से भारत को अशांत करने में लिए लगा हुआ है। वर्ष 1962 में भी उसने ऐसा ही किया था और पीछे हटकर फिर दुबारा भारत पर हमला किया जिसमें भारत को पराजय का मुंह देखना पड़ा। उस पराजय के कई कारण थे जिसमे सबसे बड़ा कारण यह था कि भारत आजादी के बाद अपनी सामरिक शक्ति को संभाल नहीं पाया था। भारत सोच भी नहीं सकता था कि तथाकथित चीन जो भारत को अपना दोस्त कहता है वह पीछे से चाकू मारेगा। नारा ही यह था कि हिंदी चीनी भाई भाई। इन सारी बातों को झुठलाते हुए उसने हमला किया और भारत को बहुत बड़ा आघात पहुंचाया। इस युद्ध को हारने को लेकर तरह तरह के आरोप प्रात्यरोप तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू पर लगाए गए। फिर चीन से संबंध सुधरे और हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री सहित उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष का आना जाना शुरू हुआ। जोरों से चीन का माल भारत में बिकने लगा और सस्ता माल बेचने के कारण उसका व्यापार फलने फूलने लगा, लेकिन उसकी नीयत में खोट था और वह समय की प्रतीक्षा कर रहा था कि कब वह अपनी विस्तारवादी नीति से भारत पर आक्रमण करे।

अब रही भारत के सबसे करीबी देश नेपाल की बात। सदियों से ही भारत का संबंध उसके साथ करीबी रोटी बेटी का रहा है। इसीलिए हमारे प्रधानमंत्री ने नेपाल में आए भूकम्प के बाद आर्थिक सहायता करने में किसी भी प्रकार कमी नहीं की। पर, दुर्भाग्यपूर्ण बात यह है कि वह देश भी अब भारत को आंख दिखाने से बाज नहीं आ रहा है। वह भी अब छोटी छोटी बातों पर बंदूक तान कर हमे डरता है। यह सब ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि उसके पीछे भी चीन का सशक्त हाथ होने से इंकार नहीं किया जा सकता। चीन चाहता है कि वह भारत को इन देशों के साथ उलझा कर रखे ताकि किसी ना किसी तरह से भारतीय सीमा में घुसकर उसके भूभाग पर कब्जा कर सके। लेकिन, उसे भारत की ताकत का अनुमान नहीं है संभवतः उसकी खुपिया एजेंसी ने चीन को ऐसी रिपोर्ट नहीं की है कि भारत से टकराने का हश्र क्या झेलना पड़ सकता है। शायद चीन को नहीं मालूम कि भारतीय सेना का अपने दुश्मनों के प्रति क्या ख्याल रहता है । यदि पाकिस्तान को यह याद नहीं है तो 1971 का युद्ध उसे याद दिलाना काफी होगा कि लगभग एक लाख सैनिकों के होने बावजूद उसे भारतीय सेना के समक्ष घुठनो के बल बैठकर आत्मसमर्पण करना पड़ा था। हां, यदि वह इस हार को भूल गया है तो फिर उसे याद दिलाने के लिए भारत को एक बार निश्चित रूप से उसकी औकात समझाने की जरूरत है। फिर नेपाल तो खुद व खुद समर्पित होगा। अब रही चीन की बात उसे भी यह बताने की जरूरत है कि अब भारत वह भारत नहीं रहा जिसे धोखे में रखकर 1962 में जो अहित किया और उसकी जमीन को कब्जा किया और सैनिकों को हताहत कर दिया। इसलिए उसके सूचना तंत्र को तथा शासक यह जानकारी देने की जरूरत है क्योंकि जो शांत होता है , उस पर जब चोट किया जाता है तो फिर उसका क्रोध विध्वंशक रूप ले लेता है और वह दुश्मन का कितना नुकसान करता है उसका हिसाब रखना मुश्किल होता है। पता नहीं चीन , पाकिस्तान और नेपाल इस बात को क्यों नहीं समझ पा रहा। फ्रांस से पांच लड़ाकू विमान राफेल की पहली किश्त आने के बाद भारत पर बुरी नजर रखने वाले देशों की आंख अब खुल गई होगी ।

महात्मा गांधी ने 1921 में 22 अगस्त के दिन स्वदेशी का नारा बुलंद करते हुए विदेशी वस्त्रों की होली जलाई थी । विदेशी वस्त्रों के स्थान पर स्वदेशी खादी के वस्त्रों के निर्माण के लिए स्वयं महात्मा गांधी ने चरखा चलना शुरू किया था । ऐसा उस समय हुआ था जब देश को अंग्रेजों के ही सामानों पर निर्भर रहना पड़ता था । आज तो हमारे पास सब कुछ है – बस कमी है तो आत्मबल की । हम चीन से इतने प्रभावित और आदि हो चुके हैं वहीं चाईनीज खान पान तथा हर प्रकार की सामग्री का उपयोग करने की इतनी बुरी आदत लग चुकी है कि हम उसके बहिष्कार की बात सोच भी नहीं सकते। वैसे सरकार ने उसके व्यवसाय को भारत में बंद करने का अभियान शुरू कर दिया है। अब हमे अपनी आदतों से बाज आना होगा , उसके खान पान तथा चीन निर्मित सामग्री का बहिष्कार करना ही होगा। वैसे वहिष्कार की प्रक्रिया चीन के कुछ एप को बंद करके भारत सरकार ने शुरु कर दी है और केवल इतने से ही चिनफिंग सरकार की बौखलाहट बढ़ गईं है। अब हमे और आपको इसके लिए सख्त होना पड़ेगा।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं। इसके सारे फोटोग्राफ गूगल से साभार लिए गए हैं )।

 

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