अब देश भर में सुशासन के योगी मॉडल की चर्चा
कृष्णमोहन झा
विगत कुछ दिनों से महाराष्ट्र की गठबंधन सरकार की मुख्य घटक शिवसेना के नेताओं और उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के बीच उन प्रवासी मजदूरों को लेकर विवाद छिड़ा हुआ है जिनने लाक डाउन के कारण महाराष्ट्र में अपना रोजगार छिन जाने के बाद तत्काल ही अपने गृह राज्य लौटने का फैसला कर लिया था । इस विवाद की शुरुआत वास्तव में तब हुई जब महाराष्ट्र के प्रवासी मजदूर कड़ी धूप में लंबा सफर तय करके गृह राज्य उत्तर प्रदेश की सीमा पर पहुंचे और उन्हें सीमा पर ही राज्य की पुलिस ने रोक दिया।
इसके पीछे किसी कारण की पड़ताल किए बिना शिव सेना के मुखपत्र “सामना” ने उ प्र की इस कार्रवाई के लिए योगी आदित्यनाथ की तुलना हिटलर से कर दी । शिव सेना के नेताओं ने योगी आदित्यनाथ की आलोचना करने में जिस तरह सारी मर्यादाओं को ताक पर रख दिया उसका जवाब देने के लिए स्वयं योगी आदित्यनाथ का आगे आना स्वाभाविक था उन्होंने लाक डाउन की घोषणा के बाद महाराष्ट्र और विशेष रूप से मुंबई में शिव सेना के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार पर प्रवासी मजदूरों के साथ निष्ठुरता से पेश आने का आरोप लगाया । इसके बाद शिव सेना और भाजपा के बीच जुबानी जंग का सिलसिला थमने का नाम ही नहीं ले रहा है।
कोरोना संकट पर काबू पाने के लिए लागू लाक डाउन के फलस्वरूप बेरोजगार हुए प्रवासी मजदूरों के प्रति शिव सेना की यह तथा कथित हमदर्दी सबको आश्चर्य चकित कर रही है क्योंकि अगर महाराष्ट्र की शिव सेना नीत गठबंधन सरकार ने लाक डाउन की घोषणा के बाद राज्य में प्रवासी मजदूरों के रहने खाने की जिम्मेदारी का निर्वाह ईमानदारी से किया होता तो प्रवासी मजदूरों की एक बड़ी संख्या संभवत:तत्काल गृह राज्य लौटने का फैसला कुछ समय के लिए स्थगित भी कर सकती थी । यदि महाराष्ट्र सरकार ने प्रवासी मजदूरों के प्रति ऐसी सहृदयता प्रदर्शित की होती तो तो उसकी सहृदयता की देश भर में भूरि भूरि प्रशंसा हो रही होती और उन दूसरे राज्यों की सरकारों के लिए भी वह रोल माडल बन जाती जहां दूसरे राज्यों से आए प्रवासी मजदूर लाक डाउन के पहले तक अपनी रोजी रोटी कमा रहे थे ।
दरअसल लाक डाउन के कारण जब प्रवासी मजदूरों के सामने कोई और विकल्प ही नहीं बचा था तो वे कड़ी धूप में मामलों लंबे सफर पर पैदल निकल पड़े । उस समय भी शिव सेना ने यह सोचने की आवश्यकता महसूस नहीं की कि अगर लाखों प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र छोड़ कर चले गए तो राज्य के उद्योग धंधों का काम कैसे चलेगा । यह सही है कि महाराष्ट्र ने उन्हें रोजगार प्रदान किया था परंतु क्या इस हकीकत से इंकार किया जा सकता है कि ये प्रवासी मजदूर जिस तरह का श्रम किया करते थे उसके लिए महाराष्ट्र में स्थानीय स्तर पर पर कर्मचारी मिलना मुश्किल माना जाता है।
अब जबकि अधिकांश प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र से पलायन कर चुके हैं तब शिव सेना को उनके प्रति कोरी सहानुभूति जताकर मुख्यमन्त्री योगी आदित्यनाथ पर अमर्यादित भाषा में निशाना साधने का कोई नैतिक अधिकार नहीं है ।शिव सेना आखिर इस हकीकत को भी कैसे नजरअंदाज कर सकती है कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कोरोना संकट का दृढतापूर्वक सामना करने की जो विशिष्ट रणनीति अपनाई है उसने उन्हें सारी राज्य सरकारों के लिए रोल माडल बना दिया है । उन्होंने कोरोना काल में अपनी विशिष्ट रणनीति और अदभुत साहस के बल पर अनेक जटिल मामलों को सुलझाने में जो सफलता हासिल की है उसकी सर्वत्र सराहना की जा रही है । शिव सेना को तो योगी आदित्यनाथ की उस रणनीति एवं साहस और कार्यशैली से सबक लेकर अपनी कार्य शैली का हिस्सा बनाना चाहिए था परंतु उसने तो अपनी असफलताओं को छिपाने के लिए योगी आदित्य नाथ कीआलोचना प्रारंभ कर दी । शिव सेना ने यह कभी नहीं सोचा था कि योगी पर निशाना साध कर वह खुद अपनी मुश्किलें बढा रही है ।
उधर शिव सेना को योगी आदित्य नाथ के विरुद्ध अपने मुख पत्र’सामना’ में अभियान शुरू करना महंगा पड़ गया । राज्य की महाअगाडी गठबंधन सरकार की एक घटक कांग्रेस पार्टी के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी ने यह बयान देकर नई अटकलों को जन्म दे दिया कि उनकी पार्टी का राज्य सरकार के अहम फैसलों में कोई हाथ नहीं होता । इसके बाद तुरंत गठबंधन सरकार के एक अन्य घटक राकांपा के सुप्रीमो शरद पवार मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे से मिलने मातोश्री पहुंच गए । यही नहीं जब उन्होंने राजभवन जाकर राज्यपाल कोश्यारी से भी भेंट की तो अटकलें और तेज हो गई । फिर शिव सेना के प्रवक्ता संजय राउत को यह बयान देना पड़ा कि राज्य की गठबंधन सरकार को कोई खतरा नहीं है । कुल मिलाकर इस पूरे घटनाक्रम का यह निष्कर्ष निकाला गया कि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्य नाथ के विरुद्ध शिव सेना के नेताओं की अमर्यादित टिप्पणी से योगी की लोकप्रिय छवि तो पूरी तरह अप्रभावित रही परंतु शिव सेना जरूर मुश्किल में फंस गई ।
शिव सेना को अब यह कहावत जरूर याद आ गई होगी कि जो लोग शीशे के मकान में रहते हैं उन्हें दूसरों के मकानों पर पत्थर नहीं फेंकना चाहिए । शिव सेना को इस हकीकत को नजर अंदाज नहीं करना चाहिए कि उसे राज्य की गठबंधन सरकार का मुख्यमंत्री पद केवल तिकड़म से प्राप्त हुआ है जबकि उत्तर प्रदेश विधानसभा के गत चुनावों में योगी आदित्यनाथ की अपार लोकप्रियता का भारतीय जनता पार्टी की ऐतिहसिक विजय में महत्वपूर्ण योगदान था ।उधर महाराष्ट्र में शिव सेना अगर गत विधान सभा चुनावों के बाद भाजपा के साथ अपना चुनावी गठबंधन नहीं तोडती तो उसे मुख्य मंत्री की कुर्सी मिलना असंभव था । बेहतर यही होगा कि शिवसेना मुसीबत में फंसे प्रवासी मजदूरों को मोहरा बनाकर राजनीति करने के बजाय अपने गिरेबां में झांककर देखे कि अतीत में भी क्या महाराष्ट्र में प्रवासी मजदूर भेदभाव का शिकार नहीं हुए हैं ।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के बारे में अक्सर यह कहा जाता है कि वे बहुत अधिक सख्ती से पेश आते हैं शायद इसीलिए शिव सेना ने उनकी तुलना हिटलर से कर डाली परंतु उनकी यह सख्ती केवल उन्हीं लोगों तक सीमित है जो केवल सख्ती की भाषा समझते हैं । गौरतलब है कि विगत माह जब राज्य के मुरादाबाद जिले के एक इलाके में कुछ संदिग्ध कोरोना पीडितों को घर में छिपाकर रखे जाने की सूचना मिलने पर उन्हें अस्पताल ले जाने के लिए पहुंचे चिकित्सकों एवं स्वास्थ्य कर्मियों पर कुछ घरों की छत से पथराव किया गया तब मुख्यमंत्री योगी ने आरोपियो के विरुद्ध जो सख्ती दिखाई दी थी उसकी सारे देश में भूरि भूरि प्रशंसा की गई थी।
मुख्यमंत्री योगी के आदेश पर उत्तर प्रदेश पुलिस ने तत्परता पूर्वक कार्रवाई करते हुए 100 से अधिक आरोपियों को गिरफ्तार उनके विरुद्ध रासुका के तहत प्रकरण दर्ज किया । गौरतलब है कि सुप्रसिद्ध फिल्म स्टार सलमान खान ने भी दूरदर्शन पर आकर इस घटना की निन्दा की थी एवं उन्हें उनकी ऐसीनिंदनीय हरकतों के लिए कठोर शब्दों में चेतावनी दी थी । पूर्व में उत्तर प्रदेश के अस्पतालों में भर्ती कुछ कोरोना संक्रमितों ने जबअस्पताल के स्वास्थ्य कर्मियों के साथ अभद्र व्यवहार किया था तब भी योगी ने उनके प्रति कठोर कार्यवाही का आदेश दिया था । जिन लोगों को योगी आदित्यनाथ को करीब से जानने का सौभाग्य मिला है उनका मानना है कि योगी ऊपर से भले ही कठोर दिखाई देते हों परंतु उनके अंदर एक संवेदनशील राजनेता की सारी खूबियां मौजूद हैं ।
विभिन्न प्रदेशों के जो छात्र उच्च शिक्षा संस्थानों की प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए राजस्थान के कोटा शहर में संचालित कोचिंग संस्थानों में अध्ययन रत थे वे जब लाक डाउन के कारण अपने गृह राज्य वापस लौटने के लिए व्याकुल हुए तो सबसे पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ही उत्तरप्रदेश के छात्रों को वापस लाने की पहल की । उन्होंने इसके लिए दिल्ली से अनुमति प्राप्त करने के लिए अपने प्रभाव का उपयोग किया और कोटा से राज्य के छात्रों को वापस लाने के लिए तत्काल लगभग तीन सौ बसें रवाना कर दीं ।
ये छात्र जब अपने गृह राज्य वापस पहुंचे तो उनके अभिभावकों के पास मुख्यमंत्री योगी के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने के लिए शब्दों की कमी पड़. रही थी । गौरतलब है कि योगी की इस मानवीय पहल के बाद में दूसरे राज्यों के मुख्यमंत्रियों ने भी अनुकरण किया । काश! शिव सेना ने योगी आदित्यनाथ की तुलना हिटलर से करने के पहले उनके संवेदनशील व्यक्तित्व के इस पहलू पर भी गौर कर लिया होता ।
उत्तर प्रदेश के जो प्रवासी मजदूर महाराष्ट्र से बेबसी की हालत में अपने गृह राज्य वापस लौटें हैं उनको लेकल योगी की महाराष्ट्र सरकार से नाराजगी पूरी तरह जायज़ है । उ प्र के ये मजदूर अगर महाराष्ट्र में कई वर्षों से श्रम करके रोजी रोटी कमा रहे थे तो महाराष्ट्र की आर्थिक विकास में उनके योगदान को कैसे नकारा जा सकता है इसलिये लाकडाउन की घोषणा के बाद इन प्रवासी मजदूरों की सामाजिक एवं आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करने की पहली जिम्मेदारी महाराष्ट्र सरकार की थी । यदि योगी आदित्यनाथ ने उद्धव सरकार को उसके फर्ज की याद दिलाने में कोई संकोच नहीं किया तो महाराष्ट्र सरकार को इस पर तिल मिलाने के बजाय मुख्यमंत्री योगी से खेद व्यक्त करना चाहिए था ।
योगी आदित्यनाथ को प्रवासी मजदूरों की व्यथा ने इतना द्रवित कर दिया है कि वे अब उन राज्य सरकारों की दया पर इन प्रवासी मजदूरों को नहीं छोड़ना चाहते जहां ये मजदूर अपना पसीना बहाकर अपना और अपने परिवार का पेट पाल रहे थे ।
योगी ने ऐसी राज्य सरकारों को यह स्पष्ट संदेश दे दिया है कि वे भविष्य में उत्तर प्रदेश के श्रमिकों को राज्य सरकार की अनुमति से ले जा सकेंगी । मुख्यमंत्री योगी ने प्रवासी मजदूरों की आर्थिक सुरक्षा हेतु एक प्रवासी आयोग गठित करने की भी घोषणा की है जिसका मुख्य उद्देश्य प्रवासी मजदूरों के हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करना होगा । यह एक स्वागतेय पहल है जो राज्य के प्रवासी मजदूरों को जीवन यापन की बेहतर सुविधाओं की उपलब्धता के प्रति आश्वस्त करेगी. । योगी सरकार दूसरे राज्यों से लौटें प्रवासी मजदूरों का एक डेटा तैयार कर रही है जिसके माध्यम से यह जानकारी जुटाई जाएगी कि किस मजदूर को किस कार्य में निपुणता हासिल है ।फिर सरकार मजदूरों को उनकी इस निपुणता के आधार पर अलग अलग क्षेत्रों में रोजगार उपलब्ध कराएगी । योगी आदित्यनाथ की न केवल कार्य शैली बाकी मुख्यमंत्रियों से अलग है बल्कि वे अद्भुत इच्छा शक्ति के भी धनी हैं । कोरोना संकट के इस कठिन काल में योगी आदित्यनाथ नि संदेह अपनी कुशल रणनीति अद्भुत इच्छा शक्ति और विलक्षण कार्य शैली के बल पर एक ऐसे रोल माडल बन चुके हैं जिसकी आज सारे देश में चर्चा हो रही है ।
स्वदेशी के प्रति उनके विशेष आग्रह और समर्पण ने उन्हें संघ के भी निकट ला दिया है ।प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने विगत दिनों राष्ट्र के नाम अपने संदेश में जिस आत्मनिर्भर अभियान पर जोर दिया था उसे आत्मसात करने में भी सारे मुख्यमंत्रियों में योगी आदित्य नाथ अग्रणी रहे हैं । उनकी दिली इच्छा तो उत्तर प्रदेश को एक ऐसे आत्म निर्भर राज्य के रूप में विकसित करने की है जिसके एक भी श्रमिक को रोजी रोटी की तलाश में राज्य की सीमा के बाहर न जाना पड़े । यह अभी भले ही उनका एक कठिन लक्ष्य मालूम पडता हो परंतु उत्तर प्रदेश में योगी आदित्य नाथ के सशक्त हाथों में मुख्यमंत्री पद की बागडोर रहते हुए कुछ भी असंभव नहीं है।
(लेखक वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक हैं। इस लेख से चिरौरी न्यूज का पूर्णतः सहमत होना अनिवार्य नहीं है।)