भारत से काला अज़ार बीमारी के उन्मूलन के लिए एक आख़िरी कदम उठाने की ज़रूरत है: डॉ. हर्ष वर्धन

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: केन्द्रीय स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री डॉ. हर्ष वर्धन ने आज उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में काला अज़ार बीमारी की स्थिति की समीक्षा के लिए आयोजित कार्यक्रम की अध्यक्षता की। कार्यक्रम में बिहार के स्वास्थ्य मंत्री श्री मंगल पांडेय, पश्चिम बंगाल की स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण राज्य मंत्री सुश्री चंद्रिमा भट्टाचार्य, उत्तर प्रदेश के चिकित्सा और स्वास्थ्य, परिवार कल्याण, मातृ एवं शिशु कल्याण मंत्री श्री जय प्रताप सिंह और झारखंड के स्वास्थ्य, चिकित्सा शिक्षा और परिवार कल्याण मंत्री श्री बन्ना गुप्ता भी उपस्थित थे।

केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री ने अपने उद्बोधन की शुरुआत में ही लोगों को यह याद दिलाया कि भारत सरकार काला अज़ार बीमारी के उन्मूलन के लिए पूरी तरह से वचनबद्ध है। उन्होंने कहा कि “दुनियाभर में मलेरिया के बाद काला अज़ार लोगों को मृत्यु तक ले जाने वाला दूसरा सबसे बड़ा हत्यारा है, अगर समय रहते मरीज का इलाज न किया जाए, तो इससे 95 फीसदी मरीजों की मौत हो जाती है। इसके अलावा, जो मरीज सही इलाज मिलने से ठीक हो जाते हैं, उनमें से करीब 20 फीसदी मरीजों के शरीर में ‘पोस्ट-काला-अजर डर्मल लीशमैनियासिस (पीकेडीएल)’ नामक त्वचा संबंधी रोग विकसित हो जाता है, इलाज के बावजूद भी कई महीनों और सालों तक मरीज़ को परेशान करता है। ऐसे मरीजों की त्वचा में जो घाव होते हैं, उनमें कई जानलेवा विषाणु हो सकते हैं, जिससे मरीज संक्रमण का महत्वपूर्ण स्रोत बन जाते हैं”।

कार्यक्रम के दौरान केन्द्रीय मंत्री को इस बात से अवगत कराया गया कि वर्तमान समय में देश के चार राज्य- बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल काला अज़ार बीमारी से सबसे ज़्यादा प्रभावित हैं, वहीं दूसरी तरफ असम, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर, केरल, सिक्किम और उत्तराखण्ड राज्यों में भी इस बीमारी के छिटपुट मामले सामने आए हैं।

काला अज़ार उन्मूलन की दिशा में उठाए गए कदमों के बारे में बोलते हुए उन्होंने उल्लेख कियाः

30 नवंबर, 2020 तक झारखंड के 12 खण्डों और बिहार के 4 खण्डों में प्रति 10,000 आबादी पर काला अज़ार का एक से अधिक मामला सामने आया है।

बिहार, जो काला अज़ार से सबसे ज़्यादा प्रभावित था, वहां सिवान और सारण ज़िलों के 4 खण्डों को छोड़कर (कुल 458 खण्ड में से) बाकी सभी खण्डों में काला अज़ार उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल कर लिया गया।

झारखंड ने भी इस मामले में काफी प्रगति की है। वहां भी प्रति 10000 जनसंख्या पर एक से अधिक मामलों वाले खण्डों के साथ-साथ काला अज़ार और पीकेडीएल के मामलों में कमी दर्ज की गई है।

उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल ने काला अज़ार उन्मूलन के लक्ष्यों को हासिल कर लिया है। अपनी इस स्थिति को बनाए रखने के लिए उसे और अधिक सतर्क रहने और मेहनत करने की ज़रूरत है। इन्हें पूर्ण रूप से काला अज़ार मुक्त राज्य होने का प्रमाणपत्र तीन साल के अंत में मिलेगा।

जिन खण्डों में अभी भी प्रति 10000 जनसंख्या पर एक से अधिक मामले सामने आ रहे हैं, वहां के ज़िलाधीशों और ज़िला/खण्ड स्तर पर कार्यरत अधिकारियों से काला अज़ार की नियमित समीक्षा के लिए थोड़ा समय निकालने और काला अज़ार उन्मूलन की दिशा में आ रही परेशानियों से निपटने के लिए ज़िला स्तर पर कार्य करने वाली टीम की मदद करने की अपील करते हुए डॉ. हर्ष वर्धन ने कहा कि “इस दिशा में ऐसी स्पष्ट गतिविधियों और ज़िम्मेदारियों वाले एक मानक दृष्टिकोण को अपनाने की ज़रूरत है, जिससे आसानी संकेतों के आधार पर इसकी निगरानी की जा सके।काला अज़ार सामान्यतः समाज के निचले सामाजिक-आर्थिक स्तर वाले उन लोगों को ज़्यादा प्रभावित करता है, जिनके घरों में बीमारियों से बचने के लिए किसी कीटनाशक या दवा का छिड़काव तक नहीं किया जाता। इनमें ज़्यादातर वे लोग हैं, जिनके पास अपनी ख़ुद की ज़मीन नहीं है, जिस वजह से वे पक्के मकान के लिए आवेदन नहीं कर पाते।

इस बीमारी के उन्मूलन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए उन्होंने निम्नलिखित गतिविधियों के महत्व पर प्रकाश डालाः

दूर-दराज के क्षेत्रों में रहने वाले “सबसे ग़रीब” अथवा वंचित वर्ग के लिए एक कार्य योजना विकसित करना।

सामुदायिक स्तर पर अधिकतम फायदा लेने के उद्देश्य से पोशन अभियान के तहत कला-अज़ार उन्मूलन कार्यक्रम का लाभ उठाना।

प्रधानमंत्री आवास योजना-ग्रामीण जैसे प्रमुख कार्यक्रम के माध्यम से इन लोगों को बेहतर आवास के अवसर उपलब्ध कराना (मंत्री ने कहा कि झारखंड में इस दिशा में काफी प्रगति की है।)

राज्यों के स्तर पर जारी आवास योजनाओं के तहत इन लोगों को बेहतर आवास के अवसर प्रदान करना। झारखंड राज्य ने इस दिशा में अपने यहाँ बिरसा मुंडा आवास योजना और भीमराव अंबेडकर आवास योजना के तहत सराहनीय काम किया है। ग्रामीण स्तर पर कार्य करने वाले चिकित्सकों की भागीदारी को बढ़ाना, जो सामान्यतः रेफरल, निगरानी और आईईसी की दिशा में मरीजों के लिए इलाज़ का पहला बिन्दु होते हैं।

जागरूकता, सामुदायिक संबद्धता, पर्यावरण प्रबंधन और सामाजिक सशक्तीकरण के सिए ग्रामीण विकास विभाग के साथ समन्वय और पंचायती राज व्यवस्था के संबद्धता को बढ़ाना, और  लंबे समय तक बुखार, संबधित लक्षण और निदान और उपचार तक सुगम और निःशुल्क पहुँच, आईटीएन/एलएलआईएन का पर्याप्त इस्तेमाल और मुआवज़ा/प्रोत्साहन राशि के लिए आईईसी के संदेशों पर विशेष रूप से ध्यान देना।

इस बीमारी से निपटने के लिए डॉ. हर्ष वर्धन ने संभावित समाधानों के बारे में विस्तार से बताया। जैसे लोगों को जागरूक कर उन्हें संवेदनशील बनाना, मानव संसाधनों का समुचित प्रशिक्षण, प्रधानमंत्री मोदी के महत्वाकांक्षी ‘सबके लिए आवास’ योजना को त्वरित गति से वर्ष 2022 तक पूरा करना,आंखों में परेशानी पैदा करने वाले पीकेडीएल मामलों पर विशेष ध्यान देने के साथ काला अज़ार और पीकेडीएल के मामलों में प्रतिकूल दवा प्रतिक्रिया रिपोर्टिंग प्रणाली को मजबूत करना, ज़िलास्तर पर काला अज़ार/एचआईवी के मामलों का संस्थागत प्रबंधन आदि इसमें शामिल हैं।

भारत में विश्व स्वास्थ्य संगठन के प्रतिनिधि डॉ. रोडेरिको ऑर्फिन ने भी अपनी उपस्थिति दर्ज़ कराकर इस कार्यक्रम की शोभा बढ़ाई। कार्यक्रम में सुश्री रेखा शुक्ला, संयुक्त सचिव (एनवीबीडीसीपी) और और स्वास्थ्य मंत्रालय के अन्य वरिष्ठ मौजूद थे। विभिन्न राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों में अपनी सेवाएं दे रहे वरिष्ठ अधिकारी भी डिजिटल माध्यम से कार्यक्रम में जुड़े।

 

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