सतर्क, सहयोगी और जिम्मेदार नागरिक बनकर ही कोरोना से जीत सकते हैं: डॉक्टर बिपिन कुमार सिंह

श्वेता झा  

कोरोना की दूसरी लहर से लोग परेशान हैं, तीसरी की संभावना बनी हुई हैं, लोग डर और दहशत के साये में जीने को मजबूर हैं.  सोशल मीडिया में कोरोना से बचने के लिए कई सारे नुस्खे घूम रहे हैं. ऐसे में जिनकी बात सबसे ज्यादा सुनी जा रही है वो हैं डॉक्टर. सही समय पर सही सुझाव और सही इलाज़ होने से कई लोगों की जिंदगियों को बचाने का काम डॉक्टर कर रहे हैं.

चिरौरी न्यूज़ के लिए वरिष्ठ पत्रकार श्वेता झा ने कटिहार के मशहूर सर्जन और एक्स रेजिडेंट डॉक्टर लोकनायक अस्पताल के डॉक्टर बिपिन कुमार सिंह से खास बातचीत की, जिसमें उन्होंने कोरोना से सम्बंधित सभी बातों को जानने की कोशिश की. पेश है बातचीत के प्रमुख अंश …

Doctor Bipin Kumar Singh

प्रश्न- कोरोना नहीं हुआ तो भी अभी के समय में क्या सावधानियाँ रखनी चाहिए? तीसरी लहर की क्या संभावना हैं?

उत्तर– कोविड-19 नहीं ही हुआ हैं, ये कहना कठिन हैं, लगभग ढ़ाई करोड़ लोग संक्रमित हो चुके हैं, आप नहीं हुए, ये कहना कठिन हैं, अभी के समय में, म्यूटेड एरोसेल हैं. अपनी सुरक्षा का प्रयास करें, डबल मास्क का प्रयोग करें, घर से बहुत जरूरी हो तभी निकले, सेल्फ लॉकडाउन का पालन करें, सांस का ख्याल रखें, लंग्स के ऊपर ध्यान दें, व्यायाम, योगा करें, खान-पान का ध्यान रखें, मात्र 2.5 प्रतिशत लोगों को अस्पताल जाने की जरूरत हैं, अधिकतर लोग होम-आइसोलेशन में ठीक हो रहे हैं. अपनी इम्यूनिटी बढ़ाने पर ध्यान दें, गिलोय, हल्दी-दूध, कुछ प्राथमिक लक्षण दिखें तो, विटामिन सी, जिंक, अश्वगंधा का प्रयोग शुरू कर दें.

तीसरी लहर को जागरूकता और नागरिकों के संयमित व्यवहार और शासन और प्रशासन के सहयोग से रोका जा सकता हैं. घर-घर वैसिनेशन को बढ़ावा देकर संकट से बचा जा सकता हैं.

प्रश्न- अगर किसी के अंदर माइल्ड-सिम्टम हों तों, क्या तुरंत टेस्ट करवाना चाहिए?

उत्तर- तुरंत परेशान होकर जाँच नहीं करवाए, संसाधन सीमित हैं, समझदारी से प्रयोग करें, बाहर जाकर टेस्ट करवाने पर  अगर नहीं हो, तो भी होने की संभावना बन जाती हैं, इसलिए अपने सिम्टम्स पर गौर करें, पिछले वेब से अलग पैटर्न हैं, किसी-किसी को अंदर से बुखार जैसा महसूस होता हैं, तो किसी का 99 तक, किसी को दस्त, तो घबराऐं नहीं, घर पर डाॅक्टर की उचित सलाह पर उपचार करें, आगे कुछ और तकलीफ हों, बदन दर्द, सांस लेने में तकलीफ आदि तो डॉक्टर की सलाह पर ही जाँच करवाऐं, होम क्वारंटाइन, होम आइसोलेशन का पालन करें. बिना मतलब का अफरा-तफरी नहीं मचाए.

प्रश्न- हृदय घात बहुत बढ़ रहा हैं, क्या ये कोरोना की वजह से हैं, या कुछ अन्य खास वजह हैं?

उत्तर- इसका सबसे बड़ा कारण हैं, Unknown Fear, टेंशन, डिप्रेशन, मूड -स्विंग होना, कुछ जानकर की मृत्यु की खबर सुनकर, फिलहाल अस्पताल में मूड स्टेब्लाइज करने के लिए, मजबूरी में मानसिक रोगियों को दी जाने वाली दवाईयों का प्रयोग करना पड़ रहा हैं, अपने को व्यस्त रखें, इस समय, अपनी पसंद का काम करें, परिवार को समय दें, खुश रहें, मजबूरी को मौका में बदलने की कोशिश करें. ये जो भ्रांति फैल रही हैं, 5 जी रेडियेशन का असर हैं, तो ये होता तो सब पर असर होता, कुछ पर ही नहीं.

प्रश्न- प्लाज्मा थैरेपी कितनी कारगर हैं, और प्लाजमा डोनेट करने के कोई साइड इफेक्ट भी हैं?

उत्तर- ये पूरी तरह कारगर नहीं हैं, ये जब सही समय पर दिया, जाए और इसकी एंटीबाॅडी का सही से पता चले, तभी कुछ हद तक कारगर हैं, इससे बेहतर monocholonyl antibody हैं, इसलिए इसके लिए विशेष परेशान नहीं होना चाहिए, प्लाजमा बैंक, प्लाजमा डोनर की लिस्ट, ब्लड बैंक का अपडेट होना, अधिक जरूरी हैं, क्योंकि इसका एक निश्चित समय होता हैं, उस समय उपलब्ध नहीं हो पाएगा, प्लाजमा तो, इसका उपयोग नहीं के बराबर हैं.  प्लाजमा डोनेट करना, ब्लड डोनेशन हैं, ब्लड से ही प्लेटलेस, प्लाज्मा अलग किया जाता हैं. लोगों में ये भ्रांति फैली हुई हैं, कि प्लाजमा डोनेट करने पर, हमारी एंटीबाॅडी कम हो जाएगी, जबकि ऐसा कुछ नहीं हैं.

प्रश्न- रेमिडेसिविर और स्टेरॉयड कितना कारगर हैं, कब प्रयोग करना चाहिए?

ये अभी नहीं कहा जा सकता कितना कारगर हैं, पर इसके प्रयोग पर भी टाइमिंग के अनुसार प्रभाव हैं, संक्रमित होने के दस दिन के अंदर रेमिडेसिविर कारगर हैं, अन्यथा नहीं, इसी तरह स्टेरॉयड भी अगर समय से पहले प्रयोग कर लिया जाए तो ये इम्युनिटी को प्रभावित करता हैं, पहले तीन दिन हमारे शरीर के अंदर खुद की इम्यूनिटी डेवलप होती हैं, पर जब संक्रमण फेफड़े में प्रवेश करने वाला होता हैं, तो वही स्टेरॉयड देकर उसको रोका जा सकता हैं,कुछ हद तक. मरीज की देखभाल करने वाले को, उसके सिम्टमस का रजिस्टर बनाना चाहिए, चौथे, पाँचवें दिन बुखार तेजी से बढ़ रहा हैं, कुछ अन्य लक्षण नजर आ रहे हों, तो डाॅक्टर की उचित सलाह लेकर आगे का काम करें.

प्रश्न- देखने में आ रहा हैं, मार्केट में नई-नई दवाईयाँ, इंजेक्शन आ रहे हैं, चारों तरफ अफरातफरी मची हैं, ये रिसर्च और ट्रायल बेस हैं, या कुछ अन्य कारण?

उत्तर- कोविड-19 ,नई बिमारी हैं, रिसर्च तो चल ही रहा हैं, पर अफरातफरी का कारण हैं, डिमांड के अनुसार सप्लाई नहीं होना, लोगों में जागरूकता की कमी हैं, इसलिए कालाबाजारी भी हो रहा हैं, व्यवस्था /सिस्टम के प्रति लोगों के मन में अविश्वास भर गया हैं, इसलिए भी परिस्थिति हाथ से बाहर जा रही हैं. हर पेशेंट के लक्षण के अनुसार भी अलग-अलग दवाईयाँ दी जा रही हैं. साजिश भी हो सकती हैं, अभी कुछ कहा नहीं जा सकता.

प्रश्न – ऐसे माहौल में अवसाद से कैसे बचा जाए?

उत्तर- नकारात्मक बातों से दूर रहें. आप अगर फेसबुक खोलते ही पाँच जानने वालों की मौत की खबर देखेंगें तो निश्चय ही, आपके मस्तिष्क में भय घर कर लेते. अब मुख्य मुद्दा हैं, बचा कैसे जाए तो सकारात्मक पहलू शामिल करें, अपनी दिनचर्या में, अपने पसंद का काम करें, बागवानी, कुकिंग, पेंटिग, सिगिंग, डांस, किताबें पढ़े, किताबों पर से धूल हटाऐं, किताबों से प्रेम करें, बच्चों को समय दें, उनके साथ खेलें, परिवार के साथ समय व्यतीत करें. मानसिक रूप से सकारात्मक रहें, रिपोर्ट में नकारात्मक रहने के लिए. मजबूरी को मौका में बदलें.

प्रश्न- आखिरी सवाल, क्या सिटी-स्कैन से कैंसर का खतरा हैं?

उत्तर – बिल्कुल संभावना हैं, पुरानी मशीनों के वनिस्पत नए से कम खतरा हैं, पर खतरा हैं, पुराने मशीन का रेडियेशन कम रहता है, पर एक्सपोजर समय अधिक रहता हैं, नए का रेडियेशन तो अधिक हैं, पर एक्सपोजर समय बहुत कम हो जाता हैं, इसलिए खतरा कम हो जाता हैं. सिटी-स्कैन बार-बार नहीं कराना चाहिए, पूरी जिंदगी में तीन बार तक करवाते हैं तो कैंसर होने के चांस नहीं के बराबर हैं, नहीं तो बिल्कुल कैंसर होने की संभावना हैं. अभी एम्स के डायरेक्टर गुलेरिया सर ने भी इसको खतरनाक बताया, पर रेडियोलाॅजी डिपार्मेंट ने तुरंत कहा, बहुत खतरनाक नहीं हैं, पर इससे कैंसर होने संभावना बनी रहती हैं.

अंत में आप डाॅक्टर, ब्यूरोक्रैटस, हेल्थ वर्करस, फिल्ड में जो समाजसेवी काम रहे हैं, उन लोगों के लिए क्या संदेश देना चाहेंगें

अफरा-तफरी नहीं मचाए, कर्तव्य का पालन करें, सहयोग करें, अनावश्यक भंडारण नहीं करें, दवाई, इंजेक्शन, आॅक्सीजन का, समझदारी से प्रयोग करें, जिम्मेदार नागरिक बनें, बिमारी का बहाना बनाकर घर में नहीं बैठे, अपनी जिम्मेदारी से नहीं भागे.

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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