शतायु हुए मैथिली के मूर्धन्य साहित्यकार पंडित गोविन्द झा
पटना। मैथिली साहित्य के युग पुरुष पंडित गोविन्द झा आज अपना 100वां जन्मदिन मना रहे हैं. तक़रीबन 250 से ज्यादा पुस्तकों (प्रकाशित, अप्रकाशित) के रचनाकार आज भी उतना ही सक्रीय हैं जितना 1944 में जब उनकी पहली पुस्तक मालविकाग्निमित्र – संस्कृत से अनूदित, मैथिली साहित्य परिषद्, दरभंगा से प्रकाशित हो कर आई थी.
1944 से चली आ रही मैथिली साहित्य की सेवा आज तक अनवरत जारी है. उम्र के इस पड़ाव पर पहुँच कर भी एक सच्चे सेवक की भांति नित्य साहित्य साधना ही उनका कर्म है.
पंडित गोविन्द झा भाषाविद हैं, मैथिली (मातृभाषा), संस्कृत, हिंदी और अँग्रेजी मे प्रवीणता के साथ साथ बंगला, असमिया, ओडिया, नेपाली और उर्दू की भी विशेष जानकारी रखते है.
दुनियां भर में शायद ही कोई अभी ऐसे साहित्यकार जीवित होंगे जो उम्र के इस पड़ाव में आकर भी साहित्य साधना कर रहे होंगे. लिखने की ऐसी उत्कट इच्छा कि 100 साल में भी सोशल मीडिया पर खासकर फेसबुक पर सक्रीय हैं. तक़रीबन हर एक दिन कुछ न कुछ भाषा से सम्बंधित या फिर अपने अथाह अनुभव को शेयर करते हैं. शायद ये भी एक कीर्तिमान ही होगा.
पंडित गोविन्द झा, विद्यां ददाति विनयं का प्रतिमूर्ति हैं, अपने पूरे जीवनकाल में शायद ही किसी को इन्होने कभी ‘दुरछी’ तक कहा होगा. ये मेरा सौभाग्य है कि उनका आशीर्वाद मुझे हमेशा मिलते रहता है. माँ मैथिली के ऐसे सपूत को बारम्बार प्रणाम.