भारत में पिछले एक साल में 10 में से सात ग्राहक बने टैक सपोर्ट स्‍कैम का शिकार: माइक्रोसॉफ्ट सर्वेक्षण

  • पिछले 12 महीनों में भारत में 10 में से सात ग्राहक हुए हैं टैक सपोर्ट धोखाधड़ी का शिकार
  • सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग आधों के लगातार इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार बनने की संभावना थी, चाहे धोखाधड़ी किसी भी तरह की हो
  • वर्ष 2017 में धोखेबाज़ों से बातचीत जारी रखने वाले 31% लोगों में अपना पैसा गंवाया, जो वर्ष 2018 की तुलना में 17 अंक ज्यादा था; इस तरह की धोखाधड़ी में मिलेनियल्स और पुरुषों के द्वारा पैसा गंवाने की सबसे ज़्यादा संभावना थी

चिरौरी न्यूज़

नई दिल्ली: माइक्रोसॉफ्ट ने आज अपनी 2021 ग्लोबल टेक सपोर्ट स्कैम रिसर्च रिपोर्ट के निष्कर्ष जारी किए। इनसे पता चला है कि पिछले 12 महीनों में भारतीय ग्राहकों के टैक सपोर्ट धोखाधड़ी का शिकार बनने की दर 69% रही, जो कि वर्ष 2018 की 70% की दर के बराबर ही है। इसके उलट अगर वैश्विक स्तर पर देखें तो इसी अवधि में टैक सपोर्ट धोखाधड़ी में पांच प्रतिशत की कमी आई और यह 59% रही।

भारत में सर्वेक्षण में शामिल लगभग आधे ग्राहक (48%) लगातार इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार होते रहे। वर्ष 2018 की तुलना में इसमें आठ अंकों की वृद्धि हुई और यह वैश्विक औसत (16%) से तीन गुना ज़्यादा है। सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से तीन में से एक (31%) ने धोखाधड़ी करने वालों से बातचीत जारी रखी और आखिरकार अपना पैसा गंवाया, इसमें वर्ष 2018 (14%) की तुलना में 17 अंकों की वृद्धि हुई।

भारत में वर्ष 2021 में मिलेनियल्स (24-37 वर्ष का आयुवर्ग) के इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार होने की बहुत संभावना थी। इस आयुवर्ग में 58% लोगों को पैसे का नुकसान हुआ। भारत में धोखाधड़ी करने वालों से बातचीत करने वाले 73% पुरुषों के पैसा गंवाने की संभावना थी।

माइक्रोसॉफ्ट को पूरी दुनिया से हर महीने तकनीक आधारित धोखाधड़ी का शिकार होने की लगभग 6,500 शिकायतें मिलती हैं। हालांकि इन शिकायतों में अब कमी आई है, पहले के वर्षों में हर महीने इन शिकायतों की औसत संख्या 13,000 हुआ करती थी। दुनिया भर में तकनीक आधारित धोखाधड़ी कैसे बढ़ रही है यह समझने और ग्राहकों को ऑनलाइन पर सुरक्षित रहना कैसे सिखाया जाए, यह जानने के लिए माइक्रोसॉफ्ट ने एशिया प्रशांत के चार मार्केट्स – भारत, ऑस्ट्रेलिया, जापान और सिंगापुर सहित 16 देशों में यूगव (YouGov) से सर्वेक्षण करवाया। माइक्रोसॉफ्ट वर्ष 2018 और वर्ष 2016 में इसी तरह का सर्वेक्षण करवा चुकी है।

माइक्रोसॉफ्ट डिजिटल क्राइम्स यूनिट एशिया की असिस्टेंट जनरल काउंसल, रीजनल लीड, मैरी जो श्रेड ने कहा: “टैक सपोर्ट धोखाधड़ी की संख्या पूरी दुनिया में बढ़ रही है और इसमें हर उम्र के लोगों को निशाना बनाया जाता है। सर्वेक्षण से पता चलता है कि दुनिया के बाकी हिस्सों की तुलना में भारतीय ग्राहकों के इस तरह की धोखाधड़ी का निशाना बनाए जाने की संभावना ज्यादा है क्योंकि वे धोखाधड़ी से जुड़ी बातचीत को कम अनसुना करते हैं और नतीजतन ज़्यादा पैसा गंवाते हैं। ज़रूरत इस बात की है कि ग्राहक तत्काल इस खतरे को समझें और इस तरह की धोखाधड़ी से खुद को बचाएं। यूज़र्स को ऑनलाइन शिकार बनाने के लिए धोखेबाज़ अपनी रणनीति को लगातार बदलते रहते हैं। सामान्य कॉल से शुरू हुई यह धोखाधड़ी अब अत्याधुनिक चालों को अपनाने तक पहुंच गई है, उदाहरण के लिए, लोगों के कंप्यूटर पर नकली “पॉप-अप” आना। हम ऑनलाइन सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध हैं और हमें उम्मीद है कि सर्वेक्षण से मिले निष्कर्ष के आधार पर लोगों को बेहतर तरीके से शिक्षित करने में मदद मिलेगी ताकि वे इन धोखों का शिकार होने से बच सकें।”

भारतीय ग्राहकों के सभी तरह की धोखाधड़ी के शिकार होते रहने की ज़्यादा संभावना है

पूरी दुनिया की तुलना में भारतीय ग्राहकों के धोखाधड़ी का शिकार होते रहने की ज़्यादा संभावना थी, चाहे धोखाधड़ी किसी भी प्रकार की हो। वर्ष 2018 से 2021 के बीच भारत में अनचाही कॉल से होने वाली धोखाधड़ी की घटनाएं 23% से बढ़कर 31% हो गई हैं, और इस तरह की धोखाधड़ी का भारतीय ग्राहक सबसे ज्यादा जवाब देते हैं। सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से लगभग आधे (45%) ने इस तरह की बातचीत की और धोखेबाजों के निर्देश के हिसाब से काम किया। इसके विपरीत, इसी अवधि के दौरान अनचाही कॉल से होने वाली धोखाधड़ी की वैश्विक दर दो अंक गिरकर वर्ष 2018 के 27% की तुलना में 2021 में 25% पर आ गई।

हालांकि पॉप-अप विज्ञापनों (51%), वेबसाइटों पर रीडायरेक्ट करने (48%), या अनचाही ईमेल (42%) से जुड़ी धोखाधड़ी के मामलों में वर्ष 2021 में 2018 की तुलना में क्रमशः 5%, 1% और 2% की गिरावट आई है। भारत में इसी अवधि में ग्राहकों के इसी तरह की धोखाधड़ी के लगातार शिकार होते रहने की संभावना, क्रमशः 11% , 16%, और 7% ज़्यादा है।

अधिकांश के कुछ पैसे वापस आए, लेकिन उन पर आर्थिक के अलावा दूसरे प्रभाव भी पड़े.

भारत में वर्ष 2021 में इस तरह की धोखाधड़ी में पैसा गंवाने वालों को औसतन 15,334 रुपये का नुकसान हुआ। हालांकि, इस तरह पैसा गंवाने वालों में से 88% लोग कुछ पैसा वापस पाने में कामयाब हुए और उन्हें औसतन 10,797 रुपये वापस मिले। पैसे गंवाने वालों में से 43% ने बैंक ट्रांसफर से भुगतान किया था और यह भुगतान का सबसे आम तरीका रहा, इसके बाद 38% ने उपहार कार्ड, 32% ने पेपाल, 32% ने क्रेडिट कार्ड, और 25% ने बिटकॉइन से भुगतान किया।

धोखेबाज़ों से बातचीत जारी रखकर वर्ष 2021 में पैसा गंवाने वाले 77% भारतीय ग्राहकों ने गंभीर या मध्यम स्तर का तनाव का महसूस किया, जो कि 69% के वैश्विक औसत से 8% ज़्यादा है। वर्ष 2021 में कंप्यूटर से जुड़ी किसी धोखाधड़ी का शिकार होने वाले 82% लोगों ने अपने कंप्यूटरों की जांच या मरम्मत में समय बिताया, जो 76% के वैश्विक औसत से थोड़ा ज़्यादा है। कंप्यूटरों की जांच करना बहुत ज़रूरी है क्योंकि कुछ धोखेबाज़ कंप्यूटर पर मैलवेयर डाल देते हैं और बातचीत बंद होने के काफी दिनों बाद शिकार व्यक्ति के कंप्यूटर को रिमोट एक्सेस कर लेते हैं।

मिलेनियल्स और पुरुषों के इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार होने की सबसे ज़्यादा संभावना है

भारत में सभी आयु वर्ग के बीच मिलेनियल्स के इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार होकर पैसा खोने (58%) की सबसे ज़्यादा संभावना थी, इसके बाद जेन ज़र्स (24%) का नंबर आता है। पुरुष इस तरह की धोखाधड़ी का सबसे ज़्यादा शिकार होते हैं और उनके द्वारा पैसे गंवाने की संभावना काफी ज्यादा है। भारत में तकनीक आधारित धोखाधड़ी में वर्ष 2021 में 73% पुरुषों ने पैसा गंवाया, जबकि इसकी तुलना में केवल 27% महिलाओं ने पैसा गंवाया।

भारतीय ग्राहकों के इस तरह की धोखाधड़ी का शिकार बनने की संभावना ज़्यादा है क्योंकि वे अनचाही कॉल पर ज़्यादा भरोसा करने लगते हैं और उन्हें भरोसा रहता है कि यह कॉल कंपनी की तरफ से है। 2021 के सर्वेक्षण में 47% लोगों ने सोचा कि इस बात की काफी संभावना है कि कोई कंपनी अनचाही कॉल, पॉप-अप, टेक्स्ट मैसेज, विज्ञापन या ईमेल के माध्यम से उनसे संपर्क करेगी, और इसमें वर्ष 2018 (32%) की तुलना में 15 अंकों की वृद्धि हुई। भारत में प्रत्येक आयु वर्ग में लोगों ने अपने कंप्यूटर अनुभव को काफी ऊंची रेटिंग दी जो कि कंप्यूटर से जुड़े कौशल के मामले में अति-आत्ममविश्वास को दर्शाता है।

माइक्रोसॉफ्ट धोखाधड़ी से निपटने के लिए क्या कर रहा है

माइक्रोसॉफ्ट की डिजिटल क्राइम यूनिट (डीसीयू) कानून लागू करने वाली एजेंसियों के साथ सहयोग करके, टैक्नोलॉजी को मजबूत बनाकर और ग्राहकों को शिक्षित करके इस समस्या से निपटने में सहायता कर रही है। माइक्रोसॉफ्ट वर्ष 2014 से तकनीक आधारित धोखाधड़ी के खिलाफ लड़ रही है। कंपनी कई वर्षों से एशिया, अमेरिका और यूरोप में धोखेबाज़ों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने में कानून लागू करने वाली एजेंसियों की मदद कर रही है।

डीसीयू तकनीकी आधारित धोखाधड़ी से निपटने के लिए कई तरह से काम करती है: (1) तकनीक की सहायता से धोखाधड़ी करने वाले नेटवर्क की जांच करना और मामलों को कानून लागू करने वाली एजेंसियों के पास भेजना (2) अलग -अलग तरह की धोखाधड़ी से ग्राहकों को बचाने के लिए माइक्रोसॉफ्ट के उत्पादों और सेवाओं को मजबूत बनाना, और (3) ग्राहकों को इस तरह की धोखाधड़ी के बारे में शिक्षित करना और उन्हें इसे पहचानने, इससे बचने और रिपोर्ट करने के तरीकों के बारे में जानकारी देना।

मैरी जो ने कहा, “टैक सपोर्ट स्‍कैम (धोखाधड़ी) इंडस्ट्री के लिए तब तक चुनौती बनी रहेगी जब तक कि पर्याप्त संख्या में लोगों को इस तरह की धोखाधड़ी के तौर-तरीकों और उनसे बचने के बारे में शिक्षित न कर दिया जाए। भारत और एशिया पैसिफिक के ग्राहकों के पास खुद को बचाने का सबसे अच्छा तरीका यह है कि वे धोखेबाज़ी के इस तरीके के बारे में जानकारी लें, किसी तथाकथित टेक कंपनी के नाम पर आने वाली अनजान कॉल्स पर भरोसा न करें, और अनजान लोगों को अपने कंप्यूटर का रिमोट एक्सेस देने से बचें।”

माइक्रोसॉफ्ट ग्राहकों को सलाह देती है कि माइक्रोसॉफ्ट या किसी दूसरी प्रतिष्ठित कंपनी के नाम पर आने वाली नोटिफिकेशन या कॉल्स के समय नीचे बताई बातों का ध्यान रखें :

  • अपने कंप्यूटर पर आने वाले पॉप-अप मैसेज पर तुरंत भरोसा न करें, पॉप-अप में दिखाई दे रहे नंबर पर कॉल न करें और न ही पॉप-अप में आए लिंक पर क्लिक करें।
  • केवल कंपनी की आधिकारिक वेबसाइटों या माइक्रोसॉफ्ट स्टोर से ही सॉफ्टवेयर डाउनलोड करें। थर्ड-पार्टी साइटों से सॉफ्टवेयर डाउनलोड करने समय सावधान रहें, क्योंकि हो सकता है कि उनमें कंपनी की जानकारी के बिना स्कैम मैलवेयर या ऐसा कोई दूसरा खतरनाक सॉफ्टवेयर डाल दिया गया हो।
  • यदि आपको लगता है कि आप किसी तकनीक आधारित धोखाधड़ी का शिकार हुए हैं, तो www.microsoft.com/reportascam पर इसकी जानकारी दें और कानून लागू करने वाली एजेंसियों जैसे, कंज़्यूमर प्रोटेक्शन ऑथोरिटी में रिपोर्ट भी दर्ज करें।

 

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