शिवाजी स्टेडियम: जहाँ कभी चैम्पियनों के मेले लगते थे

राजेंद्र सजवान

भारतीय हॉकी और शिवाजी स्टेडियम के बीच के रिश्तों को वही बेहतर जानते हैं, जिन्होने 1964 से  दिल्ली का दिल कहे जाने वाले कनॉट प्लेस से सटे स्टेडियम में देश विदेश के चैम्पियन हॉकी खिलाड़ियों को खेलते देखा है। विश्व हॉकी के महानतम खिलाड़ी बलबीर सिंह सीनियर से लेकर 1975 के विश्व चैम्पियन, 1980 के ओलंपिक चैम्पियन, एशियाड विजेता और और तमाम छोटे-बड़े खिलाडी शिवाजी स्टेडियम का आकर्षण रहे। लेकिन पिछले कुछ  सालों से दिल्ली में हॉकी लगभग बंद पड़ी है या भारतीय हॉकी का नरक कहे जाने वाले नेशनल स्टेडियम तक सिमट कर रह गई है। नतीजन शिवाजी स्टेडियम में खेल का लुत्फ़ उठाने वाले बेचैन हैं और सरकार, खेल मंत्रालय, नई दिली नगर पालिका परिषद और हॉकी इंडिया से आग्रह, कर रहे हैं कि शिवाजी स्टेडियम में हॉकी की बहार फिर से लौटाने के लिए ठोस कदम उठाएँ।

इसमें दो राय नहीं कि नेहरू हॉकी सोसाइटी का सीनियर नेहरू हॉकी टूर्नामेंट देश का सबसे लोकप्रिय आयोजन रहा है, जिसमें हमारे सितारा खिलाड़ियों के अलावा विदेशी खिलाड़ियों की उपस्थिति समा बाँध देती थी। ख़ासकर, परंपरागत प्रतिद्वंद्वी पाकिस्तान के खिलाड़ी जब भी खेलने आए, शिवाजी स्टेडियम खचाखच भरा रहा। जब चार आठ आने का टिकट था तब  भी स्टेडियम में बैठने की जगह नहीं मिलती थी। पता नहीं कहाँ चूक हुई या कौनसा तकनीकी लोचा आड़े आया कि अब शिवाजी स्टेडियम हॉकी के लिए अयोग्य घोषित किया जा चुका है। इतना ही नहीं स्थानीय गतिविधियाँ भी ठप्प पड़ी हैं। खिलाड़ी हैरान परेशान हैं। उन्हें समझ नहीं आ रहा कि कहाँ खेलें और कहाँ भावी खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दें। नतीजन दिल्ली में हॉकी लगभग दम तोड़ चुकी है।

स्वर्गीय बलबीर सिंह से कुछ माह पहले टाइम्स ग्रुप के अवार्ड समारोह में भेंट हुई तो उनका पहला सवाल था, शिवाजी स्टेडियम जाते हैं? जब उन्हें पता चला कि अब वहाँ खेलने की मनाही है तो बहुत दुखी हुए। नेहरू, शास्त्री या रंजीत सिंह हॉकी टूर्नामेंट के चलते जब कभी उनसे मिला तो उनके चेहरे के भाव देखते ही बनते थे। कहते थे कि एक यही जगह है जहाँ पूरे देश के खिलाड़ियों और उसके चाहने वालों से दिल खोल कर मिल पाता हूँ। कुछ इसी प्रकार की राय रखने वाले देश के सर्वकालीन श्रेष्ठ कमेंटेटर और हॉकी एक्सपर्ट जसदेव सिंह भी अपने जीवन के आखरी सालों तक शिवाजी स्टेडियम के सम्मानित मेहमान होते थे। ओलंपिक और विश्व विजेता खिलाड़ियों के वह बेहद प्रिय थे तो हॉकी प्रेमियों से घंटों बातें किया करते थे। स्वर्ग सिधारने से कुछ साल पहले वह बीमारी के कारण छड़ी के सहारे चल पाते थे लेकिन शिवाजी स्टेडियम से उनका मोह आख़िर तक बना रहा।

इक्कीसवीं सदी में भारतीय हॉकी का ग्राफ काफ़ी गिर चुका था लेकिन ओलंपियन हरबिन्दर सिंह, अशोक ध्यान चन्द, अजित पाल सिंह, एमपी गणेश, ब्रिगेडियर चिमनी, गोविंदा, ज़फ़र इकबाल, असलम शेर ख़ान, महाराज किशन कौशिक, जगबीर सिंह, धनराज पिल्ले और कई अन्य खिलाड़ी मौका मिलने पर शिवाजी स्टेडियम या नेहरू सोसाइटी के दफ़्तर पहुँच कर पुरानी यादें ताज़ा कर लेते थे। यहीं पर भारतीय महिला हॉकी टीम ने कोरिया को हरा कर 1982 के एशियाई खेलों का स्वर्ण जीता  था। अब वह एतिहासिक हॉकी स्टेडियम अपनों की राजनीति का शिकार है और शायद हॉकी के लिए पूरी तरह बंद हो सकता है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

 

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