निशानेबाजों ने शर्मसार किया; कौन है असली गुनहगार

राजेंद्र सजवान

वाह रनिंदर जी, आप तो बड़े निशांची निकले। निशानेबाजों के खराब प्रदर्शन के लिए पहले ही सजा सुना दी। आपने अपने पूरे कोचिंग स्टाफ को बदलने का बयान जारी कर एक शातिर प्रशासक की छवि दर्शाई है। आप सचमुच धन्य हैं।

लेकिन क्या आप जानते हैं कि जब कोई राजा हार जाता है, उसकी फौज आत्म समर्पण करती है या हथियार डाल देती है तो उसे भी बंदी बना दिया जाता है या उसे अपदस्त कर दिया जाता है। 135 करोड़ की जनसंख्या वाला देश यह जानना चाहता है कि आपने एकतरफा फैसला क्यों सुनाया है? देश के खेल जानकार, एक्सपर्ट्स, खिलाड़ी और अधिकारी कह रहे हैं कि निशानेबाजी में शर्मनाक प्रदर्शन के असली गुनहगार आप और आपकी टीम है।

भारतीय राष्ट्रीय रायफल संघ(एनआरएआई) के अध्यक्ष की हैसियत से आपने अनेकों बार बड़े बड़े दावे किए। यहां तक कहा गया कि भारतीय निशानेबाज इस बार टोक्यो में बमबारी करने वाले हैं और कम से कम पांच से सात पदक जीतेंगे। आपके बहकावे में आ कर पूर्व खेल मंत्री किरण रिजिजू भी बड़ी बड़ी डींगें हांक रहे थे । आईओए के आपके कुछ परम मित्रों ने भी हमेशा की तरह आपकी पीठ थपथपाई। लेकिन हासिल क्या हुआ?

खराब प्रदर्शन पर हो हल्ला मचना स्वाभाविक है। टोक्यो से आ रही खबरों से पता चलता है कि टीम एकजुट नहीं थी। अनुशासन की कमी थी और निशानेबाज अपने कोचों और सीनियर्स की बात मानने के लिए कदापि तैयार नहीं थे।  कुछ और गड़बड़ियों का उल्लेख सार्वजनिक करना ठीक नहीं होगा। लेकिन हमारी प्रतिभावान निशानेबाज मनु भाखर ने तो स्वदेश लौटते ही कोच जसपाल राणा के सर हार का ठीकरा फोड़ दियाहै,जोकि पहले ही टीम से बाहर कर दिए गए थे। आखिर राणा का कुसूर क्या था?

15 निशानेबाज बड़े बड़े दावों के साथ गए और खाली हाथ लौट आए। गरीब देश का पैसा बर्बाद किया गया। आपके खिलाड़ी कोच आपस में लड़ते रहे। देश के जाने माने खिलाड़ी, कोच और अन्य कह रहे हैं कि सबसे पहले फौज के मुखिया को इस्तीफा देना चाहिए, तत्पश्चात अन्य को सजा देने की बात करें।

रनिंदर को यह नहीं भूलना चाहिए कि टोक्यो रवाना होने से पहले ही टीम में गुटबाजी शुरू हो चुकी थी,जिसका सीधा असर प्रदर्शन पर पड़ा है। खराब प्रदर्शन न सिर्फ देशवासियों की उम्मीदों से धोखा है, सीधे सीधे उनके खून पसीने की कमाई को बर्बाद किया गया है।

यहां तक कहा जा रहा है कि गरीब देश की सरकार ने अमीरों के शौक(खेल) पर बेवजह के करोडों बर्बाद किए हैं। एनआरएआई पर सरकार और खेल मंत्रालय को गुमराह करने के आरोप भी लगाए जा रहे हैं। यह कहना कि ज्यादातर निशानेबाज छोटी उम्र के हैं, एक और छलावा है। कौन नहीं जानता कि भारतीय खिलाड़ी कभी बड़े होते ही नहीं। 14 से 18 साल की उम्र वे आठ साल में भी नहीं टापते। हालांकि फेडरेशन के कुछ मुंह लगे कह रहे हैं कि हमारे खिलाड़ी अभी छोटे हैं और अगले दो -तीन ओलम्पिल में भाग लेने के बाद पदक जीतेंगे, जैसा कि अभिनव बिंद्रा के साथ हुआ।

लेकिन बिंद्रा धुन के पक्के थे। वह धनाढ्य परिवार से हैं और सरकार की भीख पर निर्भर नहीं रहे। उनसा अनुशासित निशानेबाज शायद गगन ही हो सकता है। एनआरएआई को यह नहीं भूलना चाहिए कि निशानेबाजी को अगले कामनवेल्थ खेलों से बाहर किए जाने पर बहुत हो हुल्लड़ मचाया गया था। लेकिन आज निशानेबाजी से जुड़े लोग खुद कह रहे हैं कि भारतीय निशानेबाजों के शर्मनाक प्रदर्शन ने उनके खेल को संकट में डाल दिया है।

एक बात और, जिस कोच को पिछले साल द्रोणाचार्य अवार्ड दिलाया गया था उसे बाहर क्यों किया गया? उसके अपराध कोसार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? यह सही है कि ओलंम्पिक समाप्त होने के बाद खेल बिगाड़ने वालों पर कोई कार्यवाही नहीं होने वाली। ऐसा वर्षों से होता आ रहा है। लेकिन नैतिकता भी कोई चीज होती है। बेहतर होगा फेडरेशन अध्यक्ष, सबसे पहले इस्तीफा दे कर उदाहरण पेश करें। तत्पश्चात मौजमस्ती करने वाले कोचों और निशानेबाजों पर गंभीर कार्यवाही जरूरी है।उन सभी ने देश का नाम खराब किया है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

 

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