तो क्या ग्रीको रोमन भारतीय कुश्ती की अवैध संतान है?

राजेंद्र सजवान

देखिए तो कैसी विडंबना है कि जिस ग्रीको रोमन कुश्ती ने 1896 के एथेंस ओलंपिक से काफी पहले पहचान बना ली थी उसे भारतीय कुश्ती की नाजायज संतान जैसा दर्जा प्राप्त है। ताज़ा उदाहरण जार्जिया के भारतीय टीम कोच को अपदस्त किए जाने का है, जिस पर नाकाबिल होने का ठप्पा लगाया गया है।

टोक्यो ओलंपिक में भाग लेने वाले सभी आठ (अब सात) भारतीय पहलवान फ्रीस्टाइल शैली के हैं। ग्रीको रोमन शैली का एक भी पहलवान ओलंपिक कोटा हासिल नहीं कर पाया। बतौर सजा भारतीय खेल प्राधिकरण ने ग्रीकोरोमन पट्ठों के विदेशी ग्रीको-रोमन कोच टेमो कासरशविली को उनके कोच के कर्तव्यों से मुक्त कर दिया है। या यूं भी कह सकते हैं कि जार्जिया के कोच को अयोग्य घोषित कर स्वदेश लौटने का फरमान जारी कर दिया गया है।

खेल मंत्रालय का यह फैसला काबिले तारीफ है। अब देखना यह होगा कि भविष्य में कितने विदेशियों को बाहर का रास्ता दिखाया जाता है, क्योंकि रिजल्ट तो कोई भी नहीं दे रहा। हॉकी , फुटबाल, एथलेटिक और तमाम खेलों में अपने कोचों को दरकिनार कर फ्लॉप विदेशियों को पालने की परंपरा रही है।

जहां तक ग्रीको रोमन कुश्ती की बात है तो इस शैली की कुश्ती को साई, कुश्ती फेडरेशन और देश के अखाड़ों ने शायद कभी गंभीरता से लिया ही नहीं। फिर भी अपने दम पर और कुछ समर्पित देसी कोचों की मेहनत से ग्रीको रोमन अपना अस्तित्व बचाने में सफल रही है। इतना ही नहीं कई अवसरों पर फ्री स्टाइल पहलवानों की नाकामी पर ग्रीको रोमन पहलवानों की सफलता ने आंच नहीं आने दी।

2010 के एशियाई खेलों और कामनवेल्थ खेलों में ग्रीको रोमन का प्रदर्शन बढ़ चढ़ कर रहा। कामनवेल्थ खेलों में चार स्वर्ण और तीन कांस्य जीत कर उपेक्षित पहलवानों ने अपनी शैली का कद बढ़ाया था। रियो ओलंपिक 2016 में हरदीप और रविंदर खत्री ने ग्रीको रोमन वर्ग में भारत का प्रतिनिधित्व किया। इतना ही नहीं ग्रीको रोमन कोच महावीर को द्रोणाचार्य अवार्ड भी मिला है।

सवाल यह पैदा होता है कि जब भारतीय खेल प्राधिकरण और कुश्ती फेडरेशन ग्रीको रोमन कुश्ती को फ्री स्टाइल की बराबरी का दर्जा देते आए हैं तो फिर कमी कहां रह गई? फ्री स्टाइल की तरह ग्रीको के छह ओलंपिक कोटा वर्ग हैं ,जिनमें एक भी भारतीय पहलवान भाग नहीं लेगा। यह सचमुच बड़े शर्म की बात है। विदेशी कोच को हटाना भी समस्या का हल नहीं है। सभी जिम्मेदार लोगों को अपनी गिरेबां जरूर टटोलनी चाहिए।

भारतीय कुश्ती के उद्गम स्थल और देश के अखाड़ों पर सरसरी नजर डालें तो ज्यादातर अखाड़ों में ग्रीको के लिए कोई जगह नहीं है। फ्री स्टाइल के नाकाम पहलवान ही इस शैली में भाग लेते हैं। पुणे के आर्मी सेंटर, इंडियन नेवी, केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल, चंडीगढ़, खरखोदा और यूपी के कुछ अखाड़ों ने ग्रीको रोमन कुश्ती को ज़िंदा रखा हुआ है।

धर्मेंद्र दलाल, रविंदर, राजिंदर, अनिल , संजय, हरदीप जैसे नामी पहलवान भरईय कोचों की मेहनत का फल हैं। तो फिर क्यों अपने कोचों इससे पहले जॉर्जियाई कोच ने चीन में 2019 एशियाई कुश्ती चैंपियनशिप में अच्छी शुरुआत दिलाई थी, जिसमें भारतीय पहलवानों ने तीन रजत पदक और एक कांस्य पदक जीता।

दो बार के पूर्व विश्व चैंपियन जार्जिया के टेमो कासरशविली को फरवरी 2019 में नियुक्त किया गया था, और उनका कार्यकाल टोक्यो ओलंपिक के बाद समाप्त होने वाला था।

दूसरी तरफ आठ भारतीय फ्रीस्टाइल पहलवानों ने टोक्यो ओलंपिक में जगह बनाई है, जिनमें पुरुष वर्ग में रवि कुमार दहिया (57 किग्रा), बजरंग पूनिया (65 किग्रा), दीपक पूनिया (86 किग्रा) और सुमित मलिक (125 किग्रा) ने क्वालिफाई किया है जबकि महिला वर्ग में सीमा बिस्ला (50 किग्रा), विनेश फोगट (53 किग्रा), अंशु मलिक (57 किग्रा) और सोनम मलिक (62 किग्रा) ) ने क्वालिफाई हुई हैं। (सुमित मलिक डोप टेस्ट में फंसे हैं)।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार हैं.)

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