नासूर बना खेल संघों का जंगल राज 

राजेंद्र सजवान

दिल्ली हाई  कोर्ट द्वारा 54 भारतीय खेल संघों की  मान्यता रद्द किए जाने के बाद से भारतीय खेल मंत्रालय, भारतीय ओलंपिक संघ और राष्ट्रीय खेल संघों में अफ़रा तफ़री मची है। यह तय है कि देर सबेर सभी को क्लीन चिट मिल जाएगी और एक बार फिर से सभी राष्ट्रीय खेल संघों (एनएसएफ) को देश के खेलों को जंगल राज की तरह चलाने का सर्टिफिकेट मिल जाएगा।

हमाम में सब नंगे:

सवाल यह पैदा होता है कि एक साथ तमाम खेल संघों की मान्यता समाप्त करने की नौबत क्यो आई? इसलिए क्योंकि अधिकांश या सभी खेल संघ राष्ट्रीय खेल कोड की अनदेखी कर रहे थे। यहाँ किसी एक या सभी खेल संघों का नाम लेना इसलिए ज़रूरी नहीं क्यों की हमाम में सब नंगे हैं। आज़ादी के बाद के रिकार्ड को उठा कर देखें तो शायद ही किसी खेल संघ ने नियमों का पालन किया हो। एक बार जब किसी को  फ़ेडेरेशन का शीर्ष पद मिल जाता है तो भारतीय खेलों के कर्णधार पद छोड़ना नहीं चाहते।  कई एक फ़ेडेरेशन ऐसी हैं जिनमें उनके अध्यक्ष चार-आठ साल की बजाय बीस-तीस सालों तक कुर्सी से चिपके रहते हैं।| ऐसा उनके खेल प्रेम के कारण नहीं होता  अपितु खेल विशेष को कब्जाने की भूख और खेल की आड़ में लूट मचाने की मानसिकता उनकी प्रेरणा  बन जाते हैं।|

अधिकारियों का शर्मनाक रिपोर्ट कार्ड:

आम भारतीय अक्सर पूछता है कि चीन के बाद दुनिया की सबसे बड़ी जनसंख्या वाला देश खेलों में फिसड्डी क्यों है? एक तरफ तो हम खेल महाशक्ति बनाने का दावा करते हैं तो दूसरी तरफ आलम यह है कि कुछ एक अवसरों को छोड़ ओलंपिक से खाली हाथ लौटते आ रहे हैं। जो देश सौ साल में मात्र एक व्यक्तिगत स्वर्ण पदक जीत पाया हो उसकी नाकामी को आईना दिखाने की ज़रूरत नहीं है| बेशक, खेल संघों के भ्रष्टाचार, लूट और सत्ता लोलुपता के चलते दुनिया के सबसे फिसड्डी खेल राष्ट्र बन कर रह गये हैं| ज़ाहिर है अधिकारियों का रिपोर्टकार्ड खिलाड़ियों से भी बदतर रहा है।

चालीस खेल खाली हाथ:

भारतीय खेलों के अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन पर नज़र डालें तो एशियाई खेलों में छूट पुट पदक मिलते रहे हैं लेकिन ओलंपिक में निशाने बाजी, बैडमिंटन, कुश्ती, मुक्केबाज़ी, हॉकी, टेनिस, वेटलिफ्टिंग में ही पदक मिले हैं। बाकी के लगभग चालीस खेल आज तक अपना ओलंपिक ख़ाता क्यों नहीं खोल पाए हैं? क्यों खेल मंत्रालय और आईओए की मिली भगत से भारी भरकम भारतीय दल ओलंपिक में भाग लेने जाते है? और क्यों देश वासियों के खून पसीने की कमाई को अधिकारियों की अय्याशी पर लुटाया जाता रहा है? माननीय कोर्ट ही इनसवालों के जवाब माँग सकता है|

गंदी राजनीति:     

हालाँकि सरकारी दिशानिर्देशों के चलते खेल फ़ेडेरेशनों के शीर्ष पदों पर राजनेताओं की घुसपैठ कुछ कम ज़रूर हुई है लेकिन आज भी नेता और प्रशासनिक अधिकारी अपनी पहुँच और पद का लाभ उठा कर खेल बिगाड़ रहे हैं। कोई भी नेता विधान सभा या संसद में पहुँचते ही सबसे पहले किसी खेल संघ पर नज़र गड़ा लेता है। इस खेल में उसे तोड़-फोड़ की गंदी राजनीति करनी पड़ती है| एसा तब ही संभव हो पता है जब कुछ विश्वासपात्र नेताजी के झाँसे में पड़ कर अपने वर्षों पुराने साथियों की पीठ में चुरा भोंक देता है| खेल संघों पर सरसरी नज़र डालें तो ज़्यादातर में एसए अवसरवादी क़ब्ज़ा जमाए हैं जिनका खेलों से कभी कोई लेना देना नहीं रहाज़ाहिर है उन्हें भारतीय खेलों और खिलाड़ियों की समझ नहीं होती।

कागजी खेल संघ:

कोर्ट द्वारा जिन खेलों की मान्यता समाप्त की गई है उनमे से ज़्यादातर छलावे और दिखावे से सिर्फ़ कागजों पर चल रहे हैं। कई एक राष्ट्रीय चैंपियनशिप आयोजित नहीं करते, उभरते खिलाड़ियों के लिए उनके पास कोई योजना नहीं है।  एक फ़ेडेरेशन तो ऐसी है जोकि स्कूली खिलाड़ियों को प्रोत्साहन देने के नाम पर देश का खेल भविष्य खराब कर रही है| हैरानी वाली बात यह है कि  कई खेल संघ वार्षिक आय व्यय का हिसाब किताब तक नहीं रखते, जिसे लेकर आईओए में घमासान मचा है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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