यूं ही केंद्र की राजनीति से बिहार नहीं भेजे गए हैं शाहनवाज हुसैन

सुभाष चन्द्र
कुछ वर्षों से न कुर्सी थी और न ही हनक। हां, पार्टी का पक्ष रखते आ रहे थे। जो व्यक्ति भाजपा की पहली सरकार बनने पर केंद्र सरकार में मंत्री बना हो। जिसे पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का चहेते कहलाने पर भी तनिक घमंड न हुआ हो, उसे जब केंद्र में भाजपा की मजबूत सरकार बनने पर एक अदद कुर्सी न मिली हो, तो दुख हो सकता था। लेकिन, उस व्यक्ति का मन तनिक भी मलान न हुआ। धैर्य के साथ पार्टी संगठन की ओर से जो जिम्मेदारी दी गई, उसे संभालता रहा। जहां भी पार्टी ने कहा, वहां गए। जो सामथ्र्य में रहा, उस कार्य को किया। हाल ही में कश्मीर के निकाय चुनाव में भाजपा का झंडा बुलंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका रहीं। अब भाजपा केंद्रीय नेतृत्व ने तय किया कि आप अपने गृह प्रदेश जाएं। पार्टी ने विधान पार्षद बनाने का निर्णय लिया। तय तो यह भी मान जा रहा है कि बिहार सरकार में मंत्री बनाए जाएंगे।

हम बात कर रहे हैं सैय्यद शाहनवाज हुसैन की। हाल ही में भाजपा ने उन्हें बिहार की राजनीति में एक बार फिर भेजा है। हालंाकि, सियासी गलियारे में इसे उनका डिमोशन माना जा रहा है। चर्चा तो यह भी है कि जब ये अटल बिहार वाजपेयी की सरकार में केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री थे, तो उस समय भाजपा महासचिव रहे नरेंद्र मोदी को उन्होंने कुछ घंटे अपने कार्यालय में प्रतीक्षा करवाया था। अब कुछ घंटे की मियाद उनके लिए छह साल हो गए। अब जाकर शाहनवाज हुसैन को सत्ता की कुर्सी दी जाने वाली है।
बता दें कि भारतीय जनता पार्टी उनका उपयोग तीर की तरह कर उनके जरिए कई निशाने साधने और संदेश देने की कोशिश कर रही है। सबसे बड़ा संदेश नेताओं व कार्यकर्ताओं को दिया गया है: वे धैर्य से रहें तो पार्टी उनका ख्याल जरूर रखेगी। करीब सात साल से सदन से निर्वासित चल रहे शाहनवाज को विधान परिषद में भेज कर बीजेपी ने उनके धैर्य और स्थिर चित का भी सम्मान किया है। इस दौर में बिहार भारतीय जनता पार्टी से कई मुस्लिम नेता जुड़े। पद न मिलने पर अलग हो गए या निष्क्रिय बने हुए हैं।
असल में, नीतीश कुमार, शाहनवाज हुसैन को पसंद नहीं करते हैं। सो, उनकाे बिहार भेज कर भाजपा ने नीतीश पर दबाव बनाने का दांव खेला है। दूसरा, बिहार में भाजपा में प्रदेश की राजनीति करने वाला कोई बड़ा नेता नहीं बचा है। सुशील मोदी के सांसद बनने के बाद से पार्टी को एक ऐसे चेहरे की जरूरत थी, जिसे लोग जानते हों और जो पार्टी व सरकार दोनों मंचों पर जोरदार तरीके से अपनी बात कह सके। तीसरा, शाहनवाज के जरिए पार्टी ने बिहार के मुस्लिमों को भी एक मैसेज दिया है। शाहनवाज हुसैन को विधान परिषद भेज कर भाजपा आरजेडी के एमवाई समीकरण को तोड़ने का प्रयास कर रही है। साथ ही उसकी नजर 2021 में बंगाल में चुनाव हाेने वाले हैं । पश्चिम बंगाल में मिशन 200+ लेकर चल रही भाजपा ने ममता बनर्जी द्वारा भाजपा को सांप्रदायिक और मुस्लिम विरोधी बताए जाने के काट के तौर पर शाहनवाज हुसैन का चेहरा सामने कर दिया है। भाजपा की मंशा प्रधानमंत्री के मंत्र, सबका साथ – सबका विकास और सबका विश्वास के तहत मुसलमानों को रिझाने की है। अगर शाहनवाज हुसैन आरजेडी से मुसलमानों को तोड़ने में सफल होते हैं तो वो ना सिर्फ बिहार में पार्टी काे ज्यादा मजबूत करेंगे बल्कि, पार्टी में उनका कद और भी बढ़ जाएगा।

ये शाहनवाज ही हैं, जिनकी लोकसभा में जीत से यह मिथ टूटा था कि मुसलमान भाजपा को वोट नहीं देते हैं। 1999 में शाहनवाज हुसैन इसी किशनगंज से भाजपा  उम्मीदवार की हैसियत से जीते थे। साल 2004 के लोकसभा चुनाव में उनकी हार के बाद से किशनगंज लोकसभा से राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन का खाता नहीं खुला। हालांकि, शाहनवाज भागलपुर से दो बार सांसद रहे। धारणा है कि सीमांचल में शाहनवाज बहुत हद तक भाजपा या एनडीए के प्रति मुसलमानों की नाराजगी कम करेंगे। यह भाजपा के अलावा उसकी सहयोगी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के लिए भी लाभकारी होगा। वे खुद सुपौल के हैं, जो सीमांचल से जुड़ा इलाका है।

पार्टी का मानना है कि शहनवाज के जरिए एक नया समाकरण तैयार हाे सकता है। गौरतलब है कि पूर्व केंद्रीय मंत्री शाहनवाज हुसैन, किशनगंज से 2014 लोकसभा चुनाव महज 10 हजार वोट से हार गए थे। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी शाहनवाज हुसैन को मध्य प्रदेश से चुनाव लड़ना चाहती थी लेकिन शाहनवाज हुसैन ने चुनाव लड़ने से मना कर दिया था। 2020 विधानसभा चुनाव जीत हासिल करने के बाद भाजपा ने सीमांचल इलाके में पकड़ रखने वाले शाहनवाज हुसैन को बिहार की राजनीति में उतारा है।
शाहनवाज बोलचाल में निहायत महीन हैं। जोर से नहीं बोलते हैं। कटु बोलने से भी परहेज करते हैं। लेकिन किसी के दबाव में झुकने की उनकी फितरत नहीं है। भाजपा के आम मंत्रियों पर दब्बू होने का आरोप लगता रहा है। भाजपा के कार्यकर्ता ही कहते हैं कि उनके ज्यादा मंत्रियों का मुंह मुख्यमंत्री के सामने मुश्किल से खुलता है। शाहनवाज इस कमी को पूरा करेंगे।

दरअसल, हिंदी पट्टी के प्रदेशों में बिहार ही इकलौता ऐसा प्रांत है जहां भाजपा अभी तक अपने बूते सरकार नहीं बना पाई। शेष राज्यों में भाजपा झंडा गाड़ चुकी है। ऐसे में बतौर मुस्लिम चेहरा भाजपा बिहार में शाहनवाज हुसैन को आगे कर एक नई राजनीतिक प्रयोग करती दिख रही है। पार्टी पहले मुस्लिम बाहुल्य प्रदेशों जैसे जम्मू कश्मीर , पश्चिम बंगाल , असम और केरल में मुस्लिम चेहरों को आगे करके जमीन तैयार करने का सफल प्रयोग करती रही है। भाजपा का नेतृत्व इस परिवर्तन का प्रयोग पूरे देश में पेश कर रही है। इस परिवर्तन के बाद अब विपक्षी दलों के सामने भाजपा को अल्पसंख्यक विरोधी करार देने में दिक्कत बढ़ेगी। उधर, शाहनवाज के कंधे पर भी बड़ी चुनौती होगी की केंद्रीय नेतृत्व के उम्मीदों को पूरा करे। शाहनवाज को बिहार की राजनीति में तब उतारा जा रहा है जब उन्हें ना सिर्फ विपक्ष कांग्रेस और राजद से चुनौतियों का सामना करना है बल्कि जदयू से संबंधों के उतार चढ़ाव को भी सुनियोजित ढंग से पार पाना है।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक हैं।)

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