ओलिंपिक में कोई बहाना नहीं चलेगा

राजेन्द्र सजवान

कोविड-19 के चलते कुछ खेलों, खेल आयोजकों और खिलाड़ियों ने अतिरिक्त साहस दिखाते हुए खेल मैदानों की तरफ कूच किया हैं। हालांकि ज्यादातर आयोजनों में खेल प्रेमियों की उपस्थिति पूरी तरह वर्जित है और खाली स्टेडियमों में मैच खेले जा रहे हैं। यह अनुभव भी खेल प्रेमियों को खूब भा  रहा है। ऐसा इसलिए क्योंकि खेलना और खेल देखना आम इंसान की बड़ी जरूरत बन चुकी है। ठीक वैसे ही जैसे हवा पानी के बिना जीना मुश्किल है।

भारतीय तैयारी बाधित:
जहां तक भारतीय खिलाड़ियों की बात है तो अभी कुछ भी तय नहीं है कि कब से खेल मैदानों पर रौनक लौटेगी। हालांकि कुछ एक खेलों में हल्की फुल्की छूट के साथ खेल शुरू हुए पर बड़ी चूक के चलते फैसला बदलना पड़ा। यूरोप में फुटबॉल खेली जा रही है तो इंग्लैंड और वेस्ट इंडीज के बीच खेली गई टेस्ट सीरीज के साथ क्रिकेट ने कोरोना को ठेंगा दिखा दिया है। अन्य कई देश भी तमाम सुरक्षा इंतजामों के साथ टोक्यो ओलंपिक की तैयारी में जुट चुके हैं।

भारतीय नजरिये से देखें तो हम दिन पर दिन ओलंपिक  तैयारियों में पिछड़ रहे हैं। ऐसे में खेल मंत्रालय,  भारतीय ओलंपिक समिति, खेल संघों और खिलाड़ियों के बड़े बड़े दावों  का  क्या होगा? कोई कहता है कि दर्ज़न भर पदक जीतेंगे तो कोई और अधिक की उम्मीद कर रहा है।

बड़ी दुविधा:
भारतीय खेलों की सबसे बडी दुविधा खुद खेल मंत्रालय और उसके मुंह लगे खेल संघ हैं। खेल संघों की हालत यह है कि खेल नियमों और मर्यादाओं का पालन करना उनके चरित्र में शामिल नहीं है। नतीजन 57 खेल  संघों  की मान्यता कोर्ट ने फिलहाल समाप्त कर दी है और बहाली में समय लग सकता है। ज़ाहिर है, मौका परस्त और बहानेबाज खेल संघों के लिए नया बहाना तैयार है। यदि दावे के अनुरूप  हमारे खिलाड़ी प्रदर्शन नहीं कर पाए तो झूठ बोलने और गुमराह करने वाले खेल संघों को  महामारी के अलावा एक और   बहाना
मिल जाएगा।

भाग्य भरोसे:
बीजिंग, लंदन और रियो ओलंपिक में भारतीय खिलाड़ियों को लगातार पदक मिले। अच्छे प्रदर्शन का ही नतीजा था कि सरकार ने खेलों पर ध्यान देना शुरू किया। लेकिन यह भी सच है कि ज्यादातर पदक विजेता खिलाड़ी अपने व्यक्तिगत प्रयासों और प्रशिक्षकों के कारण कामयाब रहे। खेल संघ तो बस कागजों पर खेलते आए  हैं। उन्हें भारी भरकम दल ओलम्पिक  में भेजने से मतलब होता है। फिर चाहे खाली हाथ ही क्यों न लौटना पड़ जाए। हर बार भाग्य का बहाना बनाना भी एक परंपरा सी बन गई है। लेकिन ओलंपिक  दर ओलंपिक  बहाने बनाने वालों को अब खबरदार कर देना चाहिए।  कोरोना के कारण सभी देश और खिलाड़ी प्रभावित हुए हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि जो गंभीर हैं और  जिन्हें  देश के मान सम्मान की चिंता है वही खिलाड़ी  सफल रहेंगे। लेकिन जिनके लिए खोखले दावे करना आदत बन गई है उनका भगवान मालिक।

खेल संघों की सजा तय हो:
खेल  मंत्रालय  और साई जानते हैं कि भारतीय खिलाड़ी और खेल बार बार  देशवासियों को झूठ  का आईना दिखाते हैं। यह सीधे सीधे खेल प्रेमियों की भावनाओं से खिलवाड़ है। देश  को धोखा देने जैसा है। ऐसे खेल संघों की सजा तय करने की जरूरत है। यह न भूलें कि हम 140 करोड़ की आबादी वाले देश हैं और हमारी सरकार चाहती है कि 2028 के ओलंपिक  खेलों में भारत पदक तालिका में बडी उछाल मारे और पहले दस देशों में हमारा स्थान हो। यह तो टोक्यो ओलंपिक  ही बताएगा कि भारतीय खिलाड़ी देश को खेल महाशक्ति बनाने के लिए कितने तैयार हैं!
कुल मिलाकर खिलाड़ियों, खेल संघों और सरकार की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है।

Indian Football: Clubs, coaches and referees included in 'Khela'!(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

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