मैराथन दौड़ों के लिए हालात बद से बदतर
राजेंद्र सजवान
कुछ माह पहले खिलाड़ियों को ढांढस बंधाया जा रहा था कि बस थोड़े दिनों की बात है कोरोना को निपटा दिया जाएगा और खेल फिर से पटरी पर लौट आएंगे। अब खिलाड़ियों समझाया जा रहा है कि कोरोना वायरस सालों साल हमारा पीछा नहीं छोड़ने वाला और शायद हमेशा हमारे साथ रहे।
कुछ ऐसे खेल हैं, जिनमें इस वायरस के ख़तरे या संक्रमण की आशंका बहुत ज़्यादा नहीं है। मसलन गोल्फ, टेनिस, बैडमिंटन, क्रिकेट, एथलेटिक के कुछ मुक़ाबले सोशल डिस्टेंस के पालन के साथ ज़ारी रखे जा सकते हैं।लेकिन बॉडी कांटेक्ट वाले खेलों और मैराथन दौड़ों का आयोजन आसान नहीं होने वाला।ख़ासकर, मैराथन का ज़िक्र इसलिए किया जा रहा है क्योंकि दुनियाभर में सैकड़ों विश्वस्तरीय और नामी मैराथन दौड़ों का आयोजन किया जाता है।
कई मैराथन ऐसी हैं जिनमें तीस से पचास हज़ार या अधिक धावक दौड़ते हैं, जिनके लिए दुनियाभर से लाखों आवेदन प्राप्त होते हैं और बाक़ायदा ठोक बजा कर अंतिम का चयन किया जाता है।लेकिन कोरोना के कारण मैराथन दौड़ों पर बड़ा संकट गहराता दिखाई पड़ रहा है, जिसका असर भारत पर भी पड़ेगा।कारण इन दौड़ों में कुछ एक किलोमीटर तक सोशल डिस्टेनसिंग का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।एक साथ जब हज़ारों दौड़ेंगे तो सारे नियम क़ानून धरे के धरे रह जाएँगे।
भारत में भी हर साल लगभग पाँच सौ से अधिक छोटी बड़ी दौड़ों का आयोजन किया जाता है, जिन्हें फुल मैराथन, हाफ मैराथन, 15, 10, 7,5 या 3 किलो मीटर के वर्गों में बाँटा जाता है।बोस्टन मैराथन, लंदन मैराथन, न्यूयार्कसिटी, बर्लिन, शिकागो, टोक्यो, पेरिस, एम्सटर्डम, टोरोंटो, फ़्रैंकफ़र्ट मैराथन आदि मैराथन दौड़ों की चकाचौंध यूरोप, अमेरिका, अफ्रीका और एशिया सहित पूरी दुनिया को आकर्षित करती आई हैं।
यह सर्व विदित है कि इन दौड़ों में केन्या और इथोपिया जैसे अफ्रीकी देशों का डंका बजता आया है और अधिकांश मैराथन इन्हीं देशों के एथलीट जीतते आए हैं।छुट पुट अवसरों पर जापान, ब्रिटेन जैसे देशों ने भी दौड़ जीती हैं।
जहाँ तक भारत की बात है तो अपने देश में मैराथन के मायने सिर्फ़ खानापूरी और कमाई का धंधा भर है।हालाँकि लोगों में स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता के लिहाज़ से ऐसे आयोजन कारगर साबित हुए हैं लेकिन विदेशियों की उपस्थिति में अपने एथलीट हमेशा से फिसड्डी रहे हैं।
भारतीय पुरुष-महिलाएँ शायद ही कभी किसी दौड़ में विजयी रहे हों।भारत में पुणे, चेन्नई, मुंबई, गोवा, कोलकात्ता, नवी मुंबई, चंडीगढ़, दिल्ली, बंगलुरू आदि शहरों पर आयोजन होते हैं जिनमें प्राय केन्या और इथोपिया के एथलीट चैम्पियन बनते आए हैं। अब विदेशी और स्वदेशी मैराथन दौड़ों का आयोजन कब और कैसे होगा यह तो वक्त ही बताएगा।लेकिन इतना तय है कि भारत में मैराथन का का धंधा फिलहाल चौपट होने की कगार पर है और ख़ासकर एयर टेल हाफ मैराथन प्रभावित हो सकती है, जिसमें करोड़ों का कारोबार होता है।
(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार है, चिरौरी न्यूज का इससे पूर्णतः सहमत होना आवश्यक नहीं है। )