ये सिर्फ पुस्तकालय की शुरुआत नहीं है…
ईश्वर नाथ झा
सोशल और ट्रेडिशनल मीडिया पर ख़बरों की भीड़ में जब कोई खबर आपके गाँव घर से सम्बंधित हो, तो ध्यान जाना स्वाभाविक है। बीते दिनों एक न्यूज़ थी लाइब्रेरी के जीर्णोद्धार से सम्बंधित। गाँव के कुछ लोगों ने कई सालों से बंद पड़ी पुस्तकालय को फिर से जीवित करने का बीड़ा उठाया, व्हाट्सएप पर एक ग्रुप बनाया गया और सभी के सहयोग से पुस्तकालय का जीर्णोद्धार किया गया। इसमें पुस्तकालय के सचिव नवीन झा ने अग्रणी भूमिका निभाई है। पुस्तकालय बिहार के मधुबनी जिला अंतर्गत सरिसब-पाही गाँव में डॉ सर गंगानाथ झा के नाम पर है।
डॉ सर गंगानाथ झा भारत के शैक्षिक इतिहास में अमर हैं। संयोग से डॉ सर गंगानाथ झा के पुत्र डॉ अमरनाथ झा का जन्मदिवस नये पुस्तकालय भवन पर जोर-शोर से मनाया गया। पुस्तकालय का एक बार फिर से सुचारुरूप से कार्य करना न केवल महान विभूतियों को सच्ची श्रद्धांजलि साबित हुई बल्कि इसी बहाने समाज में नई सुखद शुरुआत हुई है।
सरिसब-पाही से कुछ किलोमीटर ही दूर एक जगह है पैटघाट। यहाँ भी कुछ उत्साही लोगों ने तन-मन-धन लगाकर एक लाइब्रेरी यदुनाथ सार्वजनिक पुस्तकालय बनाया है। अब यहाँ कई लोग रोजाना आकर किताबें पढ़ते हैं।
मेरे जैसे कई लोगों के लिए ये एक सुखद आश्चर्य से कम नहीं था, क्योंकि जिस तरह का माहौल और जैसी शैक्षिक व्यवस्था अभी राज्य में है, वहां के गाँव से अगर इस तरह की ख़बरें आ रही है तो ये माना जा सकता है कि मिथिला की मिट्टी में अभी भी बहुत कुछ बाकी है जिस से समाज को एक नई दिशा दिखाई जा सकती है।
हम जिस समाज में रह रहे हैं, हमारा दायित्व हो जाता है कि उसके लिए कुछ करें, दुर्भाग्य से बदलते समय और सामाजिक परिवेश हमें ऐसी भावनाओं से दूर लेकर चला गया है। बिहार में शिक्षा का क्रमिक ह्रास हुआ है या ये कहें कि जानबूझकर किया गया है। बिहार के ज्यादातर स्कूलों और कॉलेजों में बच्चों को केवल परीक्षा देने के समय और रिजल्ट के समय में देखा जाता है। जिनके पास कोई उपाय नहीं है वह इन स्कूल-कॉलेजों में सिर्फ डिग्री के लिए पढ़ते हैं और जिनके पास उपाय है वह बिहार से बाहर अपनी पढाई पूरी करते हैं। जब शहरों की स्कूलों की हालत ख़राब है तो गाँव में कौन ध्यान देता है।
लेकिन सरिसब-पाही और पैटघाट गाँव के जैसे अगर सभी गाँव के लोग जागरूक हो जाएँ और अपने अपने गाँव में पढाई लिखाई की व्यवस्था करने की कोशिश करने लगें तो वह दिन दूर नहीं जब बिहार में अलग तरह की जागरूकता आएगी। एक ऐसी जागरूकता जो अपनी शैक्षिक और सांस्कृतिक विरासत के लिए होगी। इन दोनों लाइब्रेरी को फिर से इस्तेमाल के लायक बनाना ही केवल मकसद नहीं है, इसके द्वारा समाज को एक सन्देश देने की कोशिश है कि समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर चला जाय तो जड़वत हो चुके समाज में भी परिवर्तन लाया जा सकता है।
दरअसल कुछ लोगों के द्वारा केवल लाइब्रेरी को ही जीवित नहीं किया गया है, गाँव की सूख चुकी सामाजिकता की जड़ में पानी सींचा गया है जिसपर आनेवाले समय में मिथिला की संस्कृति का पुष्प और फल लगेंगे। इस बार मिथिला के सरिसब-पाही और पैटघाट गाँव से हमें सामाजिकता का पाठ सीखने को मिल रहा है, क्या पता आने वाले दिनों में और दूसरे गाँवों से हमें कुछ और सीखने को मिले जिसका प्रभाव समाज पर दूरगामी हो।
गाँव ने हमेशा शहरों को कुछ न कुछ सीख दिया है। महात्मा गाँधी ने भी भितिहरवा गाँव को ही चुना था। शायद इन दो गावों में भी कुछ ऐसा छुपा हो जिसे अभी हम नहीं देख पा रहे हों। जिन्होंने इसकी शुरुआत की है उन्हें भी इसका आभास नहीं कि जाने अनजाने में उन्होंने एक ऐसी विरासत की नींव रख दी है जिसे आनेवाली पीढियां सहेज कर रखना चाहेगी।