टोक्यो ओलंपिक: भारत के लिए घटते दिन, बढ़ती टेंशन 

राजेन्द्र सजवान

भारतीय ओलंपिक समिति (आईओए) के अध्यक्ष डॉक्टर नरेंद्र बत्रा ने देश के खिलाड़ियों को आगाह कर दिया है कि टोक्यो ओलंपिक के लिए एक साल या 365 दिन रह गए हैं। हालांकि खेलों का आयोजन इसी साल किया जाना था लेकिन कोरोना के चलते एक साल बाद 23 जुलाई 2021 से आयोजन का फैसला किया गया है।

जब आईओए अध्यक्ष देशवासियों और खिलाड़ियों को ओलंपिक के बारे में चेता रहे हैं तो जाहिर है कि टोक्यो ओलंपिक के लिए वह अपनी टीम सहित गंभीर हैं। वैसे भी डॉक्टर बत्रा काफी पहले घोषणा कर चुके हैं कि इस बार भारतीय खिलाड़ी अपना श्रेष्ठ देने के लिए तैयार हैं। उन्होंने बाकायदा 10 से 12 पदक जीतने की उम्मीद जतलाई है।

देखा जाए ओलंपिक ही खिलाड़ियों और किसी भी देश की खेल प्रतिष्ठा की सही तस्वीर पेश करता है। भले ही कोई खिलाड़ी एशियाड, विश्व चैंपियनशिप या कामनवेल्थ खेलों में रिकार्डतोड़ प्रदर्शन करे लेकिन जब तक उसके पास ओलंपिक पदक नहीं है तो उसे आधा अधूरा माना जाता है।

दुर्भाग्यवश, ओलंपिक खेलों में भारतीय खिलाड़ी ज्यादा कामयाब नहीं रहे हैं। आठ हॉकी स्वर्ण और एक स्वर्ण निशानेबाज अभिनव बिंद्रा जीत पाए हैं। कुल 28 पदक भारत के खाते में दर्ज हैं। यह प्रदर्शन 140 करोड़ की आबादी वाले देश के लिए न सिर्फ शर्मनाक है अपितु जगहंसाई वाला भी है। यह हाल तब है जबकि भारत भारी भरकम दल के साथ ओलंपिक में जाता है।

खेल मंत्रालय और आईओए कोविड 19 से पहले तक अब तक के श्रेष्ठ प्रदर्शन का दावा करते आ रहे हैं। अब दिनों की उल्टी गिनती भी शुरू हो गई है। इसके साथ ही हमारे खिलाड़ियों और खेल संघों ने नये बहाने भी तलाश लिए होंगे। मसलन कोरोना के कारण तैयारी प्रभावित हुई या 57 खेल संघों को कोर्ट ने अमान्य घोषित कर दिया। एक बहाना यह भी बनाया जा सकता है कि भारतीय ओलंपिक समिति की गुटबाजी ने खेल बिगाड़ दिया। जी हां, इस बहाने में दम है।

भारतीय खेलों का बड़ा दुर्भाग्य यह रहा है कि ओलंपिक रवानगी से पहले आईओए और खेल मंत्रालय के बीच जमकर धींगामुश्ती होती है और वापसी पर खराब प्रदर्शन के लिए एक दूसरे को कोसा जाता है।

फिलहाल मंत्रालय और आईओए के बीच ठीक ठाक चल रहा है लेकिन आईओए में जोकुछ हो रहा है बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है। अध्यक्ष-सचिव के बीच का विवाद दो गुटों में बंट गया है। यह सब किसी अपशकुन की तरफ इशारा करता है। एक दूसरे पर तीखे प्रहार करने से जहां एक ओर अधिकारी उपहास के पात्र बने हैं तो खेल संघों और खिलाड़ियों का मनोबल भी कमजोर पड़ेगा।

बेशक, दिन कम हैं और चुनौती बहुत बड़ी है। ऐसे में बेहतर यह होगा कि समय रहते आईओए अपने घर का झगड़ा निपटा ले। दोनों धड़ों को इस वक्त देश के खेलों के हित के बारे में सोचना होगा। वरना खराब प्रदर्शन का ठीकरा उनके सिर फूट सकता है।

याद रहे खेल मंत्रालय भारत को 2024 या 2028 तक खेल महांशक्ति बनाना चाहता है।

(लेखक वरिष्ठ खेल पत्रकार और विश्लेषक हैं। ये उनका निजी विचार हैचिरौरी न्यूज का इससे सहमत होना आवश्यक नहीं है।आप राजेंद्र सजवान जी के लेखों को  www.sajwansports.com पर  पढ़ सकते हैं।)

 

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