भूटान के लोगों का भरोसा; कोरोना से सरकार नहीं, भगवान बुद्ध कर रहे हैं रक्षा
अंकित कुमार
नई दिल्ली: कोरोना वायरस ने दुनियाभर के लोगों को भले ही इस समय परेशान कर रखा है, लेकिन ये महामारी एक छोटे से देश भूटान का कुछ भी बिगाड़ पाई। भूटान में अब तक कोरोना के केवल 9 ही मामले सामने आए हैं और इस महामारी की वजह से किसी की भी मौत नहीं हुई है। इसे लेकर भूटान सरकार की दुनिया भर में प्रशंसा की जा रही है। लेकिन भूटान के लोगों में आम धारणा यह है कि उन्हें सरकार ने नहीं बल्कि भगवान बुद्ध ने बचाया है।
गौरतलब है कि कोरोना वायरस से बचाव के उपायों के दौरान ही भूटान में लगातार प्रार्थनाएं भी चल रही थी और लोगों का विश्वास है कि सरकार के प्रयास ने तो असर दिखाया है लेकिन हमारे बौद्ध देश पर भगवान बुद्ध की कृपा रही है।
लोगों की इस धार्मिक भावना से अलग हटकर बात की जाए तो भूटान सरकार ने वाकई काबिल-ए-तारीफ प्रयास किए हैं। वास्तविकता में अगर सरकार और राजा जिग्मे खेसर नामग्याल वांगचुक ने सभी प्रयास नहीं किए होते तो साढ़े सात लाख की आबादी वाले देश में यह रोग भयानक तबाही मचा सकता था।
भूटान के राजा ने कोरोना के बचाव कार्यों का हर जिले में जाकर खुद निरीक्षण किया था। 6 मार्च को कोरोना वायरस का पहला मामला भूटान में सामने आया था तब आशंकाएं जाहिर की गईं थीं कि देश में महामारी का व्यापक असर पड़ सकता है। गौरतलब है कि भूटान दुनिया के दो सबसे ज्यादा आबादी वाले देशों भारत और चीन के बीच में पड़ता है। भारत के साथ भूटान का खुला बॉर्डर है वहीं चीनी लोग भूटान को पर्यटन स्थल के रूप में बहुत पसंद करते हैं। इसलिए भूटान में महामारी फैलने की आशंका ज्यादा रही थी।
इतना ही नहीं इसी दौरान दुनिया के सबसे प्रभावित देशों से भूटानी छात्र स्वदेश भी वापस लौटे। यह ध्यान देने वाली बात है कि भूटान के भीतर भी कोरोना के तेज संक्रमण का खतरा मौजूद था। इस देश में डॉक्टर्स की कमी है, साढ़े सात लाख की आबादी वाले देश में महज तीन सौ के आस-पास ही डॉक्टर हैं।
सबसे दिलचस्प बात तो ये है कि देश के स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक भूटान में सिर्फ एक आइसीयू एक्सपर्ट मौजूद है, जो हार्ट संबंधी समस्याओं का विशेषज्ञ है। अंगुलियों पर गिने जा सकने लायक लेबोरेट्री एक्सपर्ट हैं और वेंटिलेटर की संख्या भूटान में नाममात्र के बराबर है। भूटान में पीपीई किट्स की भी कमी थी। दिलचस्प रूप से भूटान एक प्राकृतिक खूबसूरती वाला देश तो है ही, लेकिन इसकी 20 फीसद आबादी तीन क्लस्टर में रहती है, इसमें राजधानी थिंपू भी शामिल है।
भूटान में पहला कोरोना का मामला 6 मार्च को एक 76 वर्षीय अमेरिकी सैलानी कोरोना पॉजिटिव पाया गया था, तो आपको ये जानकर हैरानी होगी कि जिस जगह इस व्यक्ति को भर्ती किया गया था वहां पर खुद राजा के परिवार से उस व्यक्ति का निरीक्षण किया था। भूटान कोरोना से लड़ाई में मुख्यतौर पर विदेशी मदद के भरोसे ही था, लेकिन देश की यूनिवर्सल हेल्थ केयर स्कीम के तहत देश का हर नागरिक अपना इलाज फ्री में करा सकता था।
यह सच है कि भूटान में मामले बेहद कम आए हैं। पूरे देश में 120 क्वारंटीन फैसिलिटी सेंटर बनाए गए थे, बेहद सख्ती से लॉकडाउन फॉलो किया गया था। सभी बाहर से आने वाले यात्रियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। साथ ही सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पूरा ख्याल रखा गया था। इस बीच देश में जितने होटल थे उन्होंने भी अपनी इमारतें कोरोना से लड़ाई में मुफ्त में दे दीं थी। सरकार के साथ मिलकर सेल्फ हेल्प ग्रुप्स ने लोगों तक खाना पहुंचाया गया था। साथ ही भारत के साथ लगने वाले दक्षिणी हिस्से पर विशेष ध्यान दिया गया, इस दौरान रॉयल भूटान आर्मी ने सीमाओं पर रहने वाले लोगों के लिए तेजी के साथ बांस के मकान बनाए जिससे उन्हें खुले में न रहना पड़े।
इसलिए बौद्ध धर्म के अनुयायियों से भरे भूटान में लोगों का मानना भले ये हो कि उन्हें ईश्वरीय कृपा ने बचाया है। लेकिन सच ये है कि वहां कि सरकार कम संसाधनों के बीच जबरदस्त सतर्कता दिखाई। सरकार और राजा के प्रयासों की वजह से जो देश शुरुआत में बेहद मुश्किल में दिख रहा था, वहां कोरोना महामारी बढ़ने ही नहीं पाई।