बेरोज़गारी-भारतीय लोकतंत्र का अभिशाप
शिवानी रज़वारिया
वर्तमान समय की बात की जाए तो आज बेरोज़गारी कोरोना काल के इस महासंकट में सर चढ़ कर बोल रही हैं। हर आदमी ख़ुद को बेबस और लाचार महसूस कर रहा हैं। युवाओं का सब्र टूट रहा हैं। हर रोज़ एक नया रोष फूट रहा है।हमारे देश में आम आदमी का हर मुद्दा राजनीतिक मुद्दा होता है।और ग़र नहीं भी हो तो उसे राजनीति का हिस्सा बना ही लिया जाता है।
जन्म से मृत्यु तक देश के एक -एक नागरिक की जिंदगी देश को चलाने वाली सरकार से जुड़ी होती है। तो यह सामान्य सी बात है कि आम आदमी की जिंदगी में जो कुछ भी अच्छा या बुरा घटता है। उसकी प्रशंसा में या विरोध में बोलने का अधिकार उसको है और यह अधिकार ख़ुद देश के संविधान ने आम नागरिक को दिया है। और उसी अधिकार से युवा पीढ़ी आज अपनी आवाज़ बुलंद कर पा रही हैं।अपने भविष्य के लिए आवाज़ उठा रही हैं।
रोज़गार की बात हो या रोटी,कपड़ा,मकान की।आम आदमी से जुड़ा हर मुद्दा सरकार से होकर ही गुजरता है। देश को चलाने वाले प्रधानमंत्री पर सबसे पहली उंगली उठती है।क्योंकि देश का प्रधानमंत्री वह आदमी है जिसे देश की सुरक्षा के साथ साथ प्रत्येक नागरिक की सुरक्षा से लेकर उसके खाने,पहनने,रहने का इंतजाम करने की जिम्मेदारी सौंपी जाती है।तो ज़ाहिर सी बात है रोज़गार भी आम नागरिक के जीवन का अहम हिस्सा है।उसके हाथ सरकार की ओर ही उठते है। बेरोज़गारी…… no more!
आज जमाना सोशल मीडिया का है। सेकंडो में लाखों की तादाद में लोग एक साथ जुड़कर सरकार का तख्ता पलटने की ताक़त रखते हैं।और ऐसे नज़ारें हमें आए दिन सोशल मीडिया प्लैटफॉर्म्स पर देखने को मिलते हैं।# हेस्टैक मूवमेंट्स में कितनी ताकत है यह मौजूदा दौर में चल रही मुहिम को देखकर लगाया जा सकता है। आज का युवा जागरुक है उसे बातों या भाषण से ज्यादा देर तक बहलाया या फुसलाया नहीं जा सकता।
सरकार और राजनीतिक अखाड़ों के दाताओं को यह बात समझनी होगी और ज़मीनी स्तर पर पुख्ता काम करना ही होगा तभी हम एक आत्मनिर्भर भारत का सपना देख सकते हैं।
निष्पक्ष बात की जाए तो बेरोजगारी की समस्या सिर्फ आज की समस्या नहीं है। यह समस्या लंबे समय से चलती आ रही है। बेरोजगारी की मार ने न जानें कितने हुनरमंद लोगों के सपनों को तोड़ा है।जिसका कारण सरकार की अति अति धीमी कार्य प्रवृत्ति रही है। सरकार के फैसलों के नतीजों का समय हुनरमंद युवाओं के लिए इतना लंबा हो जाता है कि उनकी आंखों में बुन रहे नए-नए सपने निराशा का दामन थाम लेते हैं और यह निराशा उन्हें अंधेरे कमरे की ओर ले जाती है।पर शायद ही सरकार को इसका एहसास हो।जो युवा और उनके परिवार वाले सरकारी नौकरी का सपना देखते देखते जी रहें होते हैं।परीक्षाओं के नतीजों के आने के इंतज़ार का दर्द सिर्फ़ वहीं समझ सकते हैं।और ग़र परिणाम कोर्ट कचहरी के चक्कर में फंस जाएं। तब तो उनके सपने चूर ही हो जाते हैं।
कोई भी देश आत्मनिर्भर तभी हो सकता है जब उस देश का प्रत्येक नागरिक आत्मनिर्भर हो। आत्मनिर्भर होना देश की सबसे बड़ी ताकत है।आत्मनिर्भर बनने के लिए कई स्तर पर मजबूत होना आवश्यक है।जिस प्रकार एक किसान खेत में अपनी फसल को तैयार करता है उसी प्रकार देश के एक एक नागरिक को तैयार होना जरूरी है। तभी वह एक अच्छी फसल बनकर उभर पाएगा।
जन्म से ही उसके स्वास्थ्य के लिए अच्छी स्वास्थ्य सेवाएं,खाने के लिए पौष्टिक आहार, रहने के लिए घर, स्वच्छ वातावरण,अच्छी शिक्षा पद्धति और संस्कार व संस्कृति का ज्ञान किसी भी देश को आत्मनिर्भर बनाने की प्राथमिकता है।#आत्मनिर्भर नागरिक ज़रूरत
हमारे देश में ना ही सलाहकारों की कमी है न योजनाओं की और ना ही कार्यकारकों की,कमी है तो सिर्फ इंतजामों की।जो सिर्फ़ सरकार ही कर सकती है।
बेरोज़गारी…… no more!