कोरोना: ट्रायल से लॉकडाउन 2.0 तक का सफर
शिवानी रजवारिया
नई दिल्ली: वैश्विक स्तर पर सभी देश कोरोनावायरस के साथ लड़ रहे हैं बड़े-बड़े महाशक्तिशाली देशों को भी कोरोना वायरस ने अपने आगे सर झुकाने पर विवश कर दिया है।
दुनिया के नक्शे पर एक ऐसा देश जो अपनी संस्कृति, संस्कार, उदारता के लिए जाना जाता है, जो अपनी ज़मीन से दुश्मनों के पैरों को उखाड़ना जानता है, आज भी कोरोना वायरस के सामने आंख में आंख डालकर खड़ा है। दुनिया के नक्शे पर भारत ने एक बार फिर अपनी उदारता की अनूठी छाप छोड़ी है। पूरी दुनिया उसकी महानता के गुणगान गा रही है।
अमेरिका, ब्राजील सहित 30 देशों ने इस महासंकट की घड़ी में भारत से मदद की गुहार लगाई है, अब खुद सोचिये जो देश खुद इतने बड़े संकट से गुजर रहा हो ऐसे में दूसरे देशों की मदद के लिए हाथ बढ़ाना उसकी महानता को नहीं दर्शाता है. संकट के समय मदद करने को तत्पर रहना ही भारत को विश्व में एक अलग स्थान दिलाता है.
आज जब कोरोना वायरस विश्व में हाहाकार मचाये हुए है, कोरोना से लड़ने की भारत की रणनीति की चर्चा जोर पकड़ने लगी है.
सभी देश अपने अपने तरीके से इससे निपटने की कोशिश कर रहे हैं। भारत में इससे जंग की शुरुआत 19 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अपील के साथ हुई। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 22 मार्च को सभी देशवासियों से 1 दिन का जनता कर्फ्यू रखने की अपील की उन्होंने लोगों से गुजारिश की कि कोई भी अपने घरों से बाहर ना निकले सभी लोग अपने घर के अंदर ही रहे। यह एक तरह लॉकडाउन की ओर इशारा था। जिसे आप 1 दिन का ट्रायल भी कह सकते हैं।
24 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना वायरस के खिलाफ बड़ा फैसला लेते हुए 21 दिन के संपूर्ण लॉकडाउन की घोषणा कर दी। जो जहां था वहीं ठहर गया। वायु उड़ानों से लेकर जमीन पर दौड़ते वाहनों की दौड़ पर भी रोक लगा दी गई। छोटे-बड़े सभी गांव, शहरों, कस्बों, छोटे-बड़े सभी व्यापार, कारखाने, छोटी-बड़ी आमदनी से लेकर सभी दुकानें, कारोबार व कंपनियों पर एक ही झटके में ताला पड़ गया।
लॉकडाउन के दौरान आम जनता और सरकार को ऐसी परेशानी और कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है जिसका खामियाजा देश को आगे तक भुगतना पड़ेगा।
21 दिन के इस लॉकडाउन के बीच कुछ ऐसी मार्मिक और भावनात्मक तस्वीरें सामने आई जिन्हें देख आंखों से आंसू आ गए, दिल भर आया। लॉकडाउन का सबसे अधिक प्रभाव दिहाड़ी मजदूरों पर पड़ा। दूरदराज से आकर रह रहे दिहाड़ी मजदूरों की जिंदगी में तो जैसे तूफान सा आ गया। परदेश में रह रहें मजदूर सर पर जिम्मेदारियों का बोझा उठाए अपने घरों की ओर बिना किसी सवारी के मीलों की दूरी पैदल तय करने के लिए तैयार हो गए।
सरकार ने सभी को यह आश्वासन दिया था कि किसी को भी किसी भी तरह की कोई भी परेशानी नहीं होगी। कई योजनाओं के तहत निम्न वर्ग के लोगों को सहायता दी जाएगी जो जहां है उनके लिए भोजन की व्यवस्था भी करने की बात कही है । 3 महीने तक मुफ्त राशन भी लोगों तक पहुंचाया जाएगा लेकिन सरकारी इंतजामों की जमीनी स्तर पर कुछ और ही कहानी होती है।
किसी भी जंग को जीतने के लिए सेना का अहम रोल होता है कोरोना वायरस संग इस जंग में सभी डॉक्टर्स पैरामेडिकल स्टाफ,नर्सेज,सफाई कर्मचारी एक सेना की तरह काम कर रहे हैं. जैसे सरहद पर एक फौजी अपनी जान हथेली पर रखकर देश की रक्षा करता है वैसे ही डॉक्टर्स सफेद वर्दी पहन कोरोना वॉरियर्स के रूप में देश की सुरक्षा में जुटे हैं. पर यह चित्र तब भयावह हो जाता है जब कोरोना वॉरियर्स पर आत्मघाती हमले होने की खबरें आती हैं जो लोगों की अज्ञानता का सबूत देती हैं। ऐसी घटनाएं महामारी के साथ-साथ एक और सोच के साथ लड़ने पर विवश कर देती हैं।
कोरोना वायरस से बचाव के लिए सोशल डिस्टेंसिंग ही एकमात्र उपाय हैं। लॉकडाउन के बीच दिल्ली और महाराष्ट्र के बस स्टेशन और रेलवे स्टेशन पर इकट्ठा हुई मजदूरों की भीड़ ने सोशल डिस्टेंसिंग की धज्जियां उड़ा दी। वहीं नई दिल्ली के निजामुद्दीन मरकज में मिली जमातियो की भीड़ ने कोरोना वायरस को दावत देने का काम किया। संक्रमण के आंकड़े बढ़ाने में जमात का इसमें विशेष योगदान रहा, जिसने सरकार की कमर तोड़ कर रख दी।
कोरोना संक्रमण के बढ़ते आंकड़ों ने सरकार के माथे पर चिंता की लकीर खींच दी जिसे मिटाने के लिए सभी राज्यों में एडवाइजरी जारी की गई और सभी नियमों का सख्ती से पालन करने का निर्देश दिया गया।
कोरोना वायरस की बढ़ती मरीजों की संख्या ने लॉक डाउन को दूसरे चरण तक ले जाने के लिए विवश कर दिया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सभी मुख्यमंत्रियों के साथ मिलकर लॉकडाउन की अवधि को बढ़ाकर 3 मई कर दिया। कुछ लोग अभी भी इसकी गंभीरता को नहीं समझ रहे है।
सभी लोगों के मन में एक ही सवाल है यह लॉक डाउन कब खत्म होगा और कब जिंदगी फिर से उसी रफ्तार से पटरी पर दौड़ेगी। फिलहाल यह सफर अभी लंबा है अभी और लड़ना बाकी है। पर जीत होगी और जरूर होगी।